बिहार की हिडेन हिस्ट्री : सम्वेत शिखर-पारसनाथ

सम्वेत शिखर-पारसनाथ

पुष्यमित्र
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पारसनाथ की पहाड़ी जिसे जैन धर्म को मानने वाले सम्वेत शिखर भी कहते हैं, झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित है. आप सोचिये उस जिले का नाम ही गिरि का डीह है. यानी पहाड़ों का घर आंगन. उसी पहाड़ों की बस्ती में एक चोटी है, पारसनाथ जो झारखंड राज्य की सबसे बड़ी चोटी है. इस चोटी का महत्व आप इसी बात से समझ सकते हैं कि जैन धर्म के 24 में से 12 यानी आधे तीर्थंकरों ने यहीं मोक्ष प्राप्त किया, इसके अलावा दूसरे धर्म के श्रमण भी यहां तपस्या के लिए जुटते रहे. आजीवक संप्रदाय के सबसे महत्वपूर्ण साधक मक्खलि गोशाल के बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने यहीं कैवल्य प्राप्त किया है. फिर भी इस चोटी को हम पारसनाथ के नाम से ही जानते हैं. पारसनाथ यानी पार्श्वनाथ, जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर.

प्राचीन भारत के आध्यात्मिक गुरुओं का जिक्र जब भी होता है तो हमारे सामने दो ही नाम आते हैं गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर. मगर जब आप पार्श्वनाथ के बारे में पढ़ना शुरू करते हैं तो लगता है कि उनका योगदान कतई इन दोनों से कम नहीं है. और कई दफा अपने विचारों में वे इन दोनों से आगे नजर आते हैं. इसलिए कई दफा इतिहासकार और आध्यात्मिक जगत के जानकार यह कह बैठते हैं कि बुद्ध और महावीर दोनों पर पार्श्वनाथ का बड़ा असर है. मगर धर्म और विचार के इतिहास में पार्श्वनाथ की वैसी ख्याति नहीं है, जैसी बुद्ध और महावीर की है.

इन दोनों से तकरीबन ढाई सौ साल पहले पैदा होने वाले पार्श्वनाथ ने दुनिया को चार चीजें सिखायीं. सच बोलो, हिंसा मत करो, चोरी-बेइमानी मत करो और जितना जरूरी हो उतना ही संग्रह करो. सत्य, अहिम्सा, आस्तेय और अपरिग्रह. ये इतनी बेसिक बातें हैं कि आज भी इंसान अगर इन्हें अपना ले तो सुख से जी सकता है. मगर इंसान इन्हें आज भी उनके जन्म के तीन हजार साल बाद भी अपनाने के लिए तैयार नहीं है. क्योंकि ये साधारण से लक्ष्य भी असाधारण किस्म की नैतिकता और धैर्य की मांग करते हैं. जिसके लिए इंसान तैयार नहीं हो पाता, हिम्मत नहीं कर पाता.

दिलचस्प है कि वर्धमान महावीर जिनके नाम से जैन धर्म की पहचान है, ने इनकी शिक्षाओं में एक ही बात जोड़ी है, वह है ब्रह्मचर्य. सत्य, अहिंसा और आत्मसंयम गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का भी आधार है. वैसे तो अहिम्सा का विचार भारतीय धर्म ग्रंथों में काफी समय पहले से मिलता है. अहिंसा परमो धर्म का वाक्य हिंदू और जैन धर्म दोनों में खूब मिलता है. बौद्ध धर्म में भी अहिंसा की महत्ता बतायी गयी है. मगर पार्श्वनाथ वे पहले ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी शिक्षा में अहिंसा को शामिल किया. इतिहासकार पार्श्वनाथ को पहला ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं, उनसे पहले के जैन गुरुओं को मिथकीय चरित्र मानते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि भारत के इतिहास में संभवतः पार्श्वनाथ ही ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिनके होने का प्रमाण है. 

जैन धर्म और भारतीय परंपरा को पार्श्वनाथ की दूसरी सबसे बड़ी देन है, स्त्रियों की स्वीकार्यता. वे स्त्रियों के संघ की शुरुआत करते हैं और यह कहते हैं कि उन्हें भी कैवल्य प्राप्त हो सकता है. जबकि उनके ढाई सौ साल बाद पैदा हुए महावीर स्त्रियों के कैवल्य की बात को खारिज करते हैं. खुद गौतम बुद्ध के मन में भी संघ में स्त्रियों के प्रवेश को लेकर हिचकिचाहट रही है और वे उन्हें पुरुषों के हिसाब से चलने कहते हैं. जबकि पार्श्वनाथ स्त्री और पुरुष को बराबरी का दर्जा देते हैं. संभवतः अपने धर्म में जाति भेद नहीं मानने की शुरुआत भी पार्श्वनाथ ने ही की है. 

बाद के दिनों में जब जैन धर्म दो भागों में बंट जाता है तो श्वेतांबर जैन पार्श्वनाथ को अधिक महत्व देने लगते हैं और दिगंबर महावीर को. क्योंकि महावीर मानते हैं कि कैवल्य प्राप्त करने के लिए मुनियों का निर्वस्त्र होना जरूरी है, जबकि पार्श्वनाथ ऐसी किसी बाध्यता से इनकार करते हैं. वे सहज जीवन जीते हुए कैवल्य की बात करते हैं. उनके उपदेशों में ब्रह्मचर्य भी नहीं है. बस सत्य, अहिंसा, चोरी न करना और उतना ही संग्रह करना जिससे जीवन चल जाये है.

उनके निर्वाण के 27-28 सौ साल बाद गांधी जब देश की आजादी के लिए अपने हथियारों की तलाश करते हैं तो उनकी शिक्षाएं ही काम आती हैं, सत्य और अहिंसा से सत्याग्रह और इमानदारी और आत्मसंयम उनके जीवन का रास्ता बनता है. और इस तरह ये शिक्षाएं देश के काम आती हैं. यह सब कपोल कल्पना नहीं है. गांधी जी के जीवन में सत्य, अहिंसा और आत्मसंयम की सीख देने वाले एक श्वेतांबर जैन उपासक ही हैं, जिनका नाम है रायचंद भाई मेहता. कहते हैं उनका गांधी के जीवन पर गहरा असर रहा है. मगर गांधी उनके प्रभाव में जैन धर्म के उपासक नहीं बने, देश के उपासक बने. उन्होंने पार्श्वनाथ की शिक्षा रायचंद भाई से हासिल की और उसे देश को बदलने में प्रयोग किया.

(स्पष्टीकरण- इस आलेख का मकसद किसी धर्म, उसके गुरु या उसके किसी हिस्से पर टिप्पणी करना है. इसके जरिये इतिहास और धर्म से मिली सीखों को आज की परिस्थिति में परखना है.)

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