हम भारत के लोग कैसा भारत चाहते हैं
रुचिर गर्ग
बहुत क्षोभ होता है जब यह देखने को मिलता है कि कोई राजनीतिक दल अपने एजेंडा के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए संगठित तरीके से सोशल मीडिया पर घटिया हथकंडे अपना रहा हो ।
सीएए , एनपीआर और एनआरसी के पक्ष में मिस्ड कॉल से समर्थन जुटाने के लिए एक टॉल फ्री नम्बर जारी किया गया और कुछ समय में ही यह खबर वायरल हो गई कि लोगों को आकर्षित करने के लिए किस तरह इस नम्बर पर मुफ्त नेटफ्लिक्स से लेकर लड़कियों से चैट करने तक के फर्जी ऑफर दिए जा रहे हैं ।
आज मीडिया पर जो खबरें हैं ,सोशल मीडिया जिस तरह के मज़ाक से भरा पड़ा है वो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के वैचारिक खोखलेपन को ही बताता है ।
ये बताता है कि जहां विचार ना हों वहां हथकंडों से राजनीति की जाती है । ये बताता है कि जहां बौद्धिक विमर्श का अभाव हो वहां राजनीति किस तरह इवेंट में तब्दील कर दी जाती है । ये बताता है कि जहां विचारधारा के नाम पर सिर्फ उन्माद हो , जिस विचारधारा का दर्शन सिर्फ नफरत पर आधारित हो वहां भारत जैसे देश की उपस्थिति एक विचार की तरह कभी नहीं हो सकती ।
ये वो देश है जिसकी ताकत करुणा है । ये विचारों का देश है , ये मतभिन्नताओं का देश है ।यहां आध्यात्म भी है और वैज्ञानिकता भी ।यहां प्रज्ञा है ,तर्क है।ये आर्यभट्ट,कौटिल्य ,चाणक्य का देश है। ये बुद्ध, महावीर, कबीर ,नानक ,खुसरो और स्वामी विवेकानंद का देश है।यहां आस्तिक दर्शन भी है और नास्तिक दर्शन भी ।
यहां गांधीवाद ,समाजवाद या मार्क्सवाद को कभी इवेंट आधारित राजनीति करने की ज़रूरत नहीं पड़ी । इन्हें कभी मिस्ड कॉल आधारित राजनीति नहीं करनी पड़ी । इसलिए नहीं करनी पड़ी क्योंकि इनके पास कुर्बानियों का , सेवा और समर्पण का , संघर्ष का ,शहादतों का गौरवशाली इतिहास है । इनके पास विचार हैं । अगर ये विचार ना होते तो शायद भारत भी आज़ादी के बाद उसी कूपमंडूकता का शिकार हो जाता जिसने तब पाकिस्तान का रुख कर लिया था ! अगर ये विचार ना होते तो भारत के पास आज गर्व करने लायक संविधान ना होता ,भारत शायद दुनिया में सिर उठा कर ना कह पाता – हम भारत के लोग !
एक तरफ आज़ादी की महान विरासत की बुनियाद पर खड़ा हमारा संविधान है, जो अपनी शक्ति जनता से हासिल करता है और दूसरी तरफ एक ऐसी विचारधारा इस देश के संविधान को तहस-नहस करने पर तुली है जो अपनी शक्ति लड़कियों से चैट करने या फ्री नेटफ्लिक्स का प्रस्ताव देकर मिस्ड कॉल से हासिल करना चाहती है ।
इस फर्क को समझिए । थोड़ा भारत के पन्ने उलटिये । आप गर्व करेंगे । लेकिन अगर आज चूक गए ना तो पीढियां सज़ा पाएंगी !
एक बार को आप किसी भी विचारधारा की मत सुनिए । सिर्फ सवाल कीजिये ? सवाल कीजिये कि जनता के वास्तविक दुःख दर्द हरने में विफल हो चुकी एक राजनीतिक सत्ता क्यों धर्म के आधार पर समाज का बंटवारा करना चाहती है ?
सवाल कीजिये कि इस देश को एनआरसी,एनपीआर या सीएए जैसे हथकंडे चाहिए या बेहतर शिक्षा ,बेहतर रोजगार,फलते-फूलते उद्योग-धंधे ,पड़ोसियों से दोस्ताना रिश्ते और मोहब्बत और सद्भाव से भरापूरा समाज चाहिए ?
सवाल कीजिये कि आपको ” हो चित्त जहां भय-शून्य,माथ हो उन्नत ” लिखने वाले रवींद्रनाथ टैगोर का देश चाहिए या अपने ही नागरिकों को पाकिस्तान भेजने की धमकियों से भरा देश चाहिए ?
इनकी नफरत के विचार सत्ता के लिए हैं और ये भी मत सोचिएगा कि ये कानून सिर्फ किसी एक धर्म के खिलाफ है । ऐसा तो है ही लेकिन ये कानून इस देश के गरीबों के खिलाफ है ,आदिवासियों के खिलाफ है ,आमजनों के खिलाफ है । ये इस देश की एकता और अखंडता के खिलाफ है । दरअसल ये भारत के खिलाफ है ।
आज भारत को इस खोखले विचार और उन्मादी नफरत से लड़ना है । ये आज़ादी के बाद आज़ादी बचाने की सबसे बड़ी जंग है ।
आज गांधी ,नेहरू ,पटेल,बोस,भगतसिंह,आज़ाद या अशफाकुल्लाह नहीं हैं । लेकिन इनके विचार हैं ,इनका त्याग और बलिदान हमारे सामने है । हमारे सामने हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारा संविधान है, इसे ना बचा पाए तो पीढियां माफ ना करेंगी ।
आज नौजवान इनसे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म के साथ कह रहे हैं – हम देखेंगे !
मौका है …नौजवानों के स्वर में स्वर मिलाइए ।
जय हिंद !
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