हर राज्य में हैं प्रवासी व शरणार्थी… कौन किस राज्य से निकाला जाएगा !
डॉ.सुरजीत कुमार सिंह,प्रभारी निदेशक बौद्ध अध्ययन केंद्र,महात्मा गांधी विश्वविद्यालय वर्धा.
वर्धा/ सरकार चाहती है कि पूरे देश में राष्ट्रीय भारतीय नागरिक रजिस्टर लागू किया जाएगा। इस पर मेरा यह कहना है कि लागू करने से पहले उत्तर प्रदेश के तराई के इलाके में जो जमीन गरीब लोगों की थी, उस पर जिन लोगों ने सन 1965 के बाद कब्जा कर रखा है, क्या उनका भी रजिस्टर बनाया जाएगा। नेपाल के बॉर्डर के किनारे-किनारे, जो बहुत बड़ी संख्या में बेशकीमती तराई की जमीनों को जबरदस्ती तरीके से जोत लिया गया है और उस पर खेती की जा रही है, क्या उन लोगों की भी जांच की जाएगी। इसके अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के इलाके में जो हजारों और लाखों की संख्या में लोगों ने आकर वहां की डेमोग्राफी खराब कर दी है, क्या वहां की भी जांच की जाएगी। आप बस्तर ही चले जाइए वहां पर जाकर देखेंगे की पूरे बस्तर मंडल के शहरों और कस्बों में आदिवासी लोग ही अल्पसंख्यक हो गए हैं। आदिवासी लोगों की जमीनों पर पंजाब के किसानों ने और दूसरे सिंधी-पंजाबी-मारवाड़ी लोगों ने कब्जा कर रखा है। क्या इसका भी रजिस्टर बनेगा।
क्या रजिस्टर इस बात का बनेगा कि जाटों-गुर्जरों की प्यारी दिल्ली, जो कि अपने आप में एक बहुत अच्छा शहर था, उसको 1947 के बाद आकर बसे विस्थापित लोगों ने बिगाड़ दिया। उसके बाद आप आज दिल्ली में कहीं भी जाइए बहुत बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश-बिहार-राजस्थान-झारखंड-
कोलकाता शहर भद्रलोक बंगालियों का शहर था उस पर सबसे अधिक कब्जा पूर्वांचल के और बिहार के प्रवासी मजदूरों ने किया, क्या उन लोगों को वापस भेजा जाएगा। इसके अलावा अवैध बांग्लादेशी लोग कोलकाता के राजनीतिक सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर अतिक्रमण किए हुए हैं, क्या उनको वापस भेजा जाएगा।
अंडमान निकोबार दीप समूह चले जाइए, जोकि वहां की सात आदिवासी जातियों का प्रदेश है, लेकिन वहां पर आप जाकर देखेंगे बंगालियों मद्रासी और बहुत कम संख्या में उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों ने कब्जा कर रखा है। बंगालियों ने तो वहां पर लूट,अतिक्रमण, गुंडागिरी और जाहिलपन मचाया हुआ है। अंडमान निकोबार दीप समूह लगता ही नहीं है कि वह आदिवासियों का एक इलाका रह चुका है। लगता है कि जैसे आप कोलकाता से चले और आप दूसरे किसी बंगाल के टापू पर आ गए, क्या उन सभी अतिक्रमण करने वाले बंगालियों को अंडमान निकोबार दीप समूह के सभी दीपों से बाहर किया जाएगा। आश्चर्य की बात यह है वहां पर जेलें काटने का काम और फांसी पर चढ़ने का काम सेलुलर जेल में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और बिहार और पंजाब के लोगों ने किया। लेकिन वहां पर ज़मीनों पर अवैध कब्जा करने का काम और अवैध रूप से रहने का काम, साथ ही प्रतिबंधित वन विभाग की सरकारी जमीनें कब्जाने का काम बंगालियों ने ही अधिक किया। क्या इनको बाहर किया जाएगा,अंडमान निकोबार दीप समूह से, नील आइसलैंड आदि से।
ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तर, बिलासपुर, नारायणपुर, जगदलपुर, कोरबा, जशपुर आदि आदिवासी इलाकों की है। जहां पर पंजाब के सरदारों और सिन्धी मारवाड़ियों ने जमीने ले रखी हैं और उन्होंने वहां अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है, क्या इन सबको वहां से बाहर किया जाएगा।
उत्तर पूर्व भारत के सात प्रांत के कुछ शहर व कस्बे और गाँव आदि भारत विरोधी अवैध गतिविधियो, अवैध अप्रवासन, घुसपैठ आदि का गढ़ हैं। आप वहाँ आसाम के धुबरी जिले को देखिये, मणिपुर के सिंहसेनापति और चंद्रचूड़ जिले को देखिये, त्रिपुरा के किनारे वालों जिलों को देखिये, इसके अलावा बड़े नगरों की बात करें तो इम्फाल, आइज़ोल, शिलोंग, दीमापुर, न्यू तिनसुखिया, डिब्रूगढ़, तेजपुर, गुवाहाटी, लूमडिंग आदि शहरों की डेमोग्राफी, बाहर के लोगों ने बिगाड़ी है। क्या इन शहरों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
इसके अलावा एक बहुत पुरानी आर्य और अनार्य की लड़ाई है, क्या उनकी पहचान की जाएगी। मुझे लगता है भारत की संसद के दोनों सदनों को एक संयुक्त सत्र बुलाकर, इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, तब जाकर एनआरसी लागू करना चाहिए।
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