भारत के किस राज्य में बीवियाँ किराए पर मिलती है?
नोट- यदि सत्य का सामना करने की शक्ति न हो तो कृपया न पढ़ें ।
भारत के किस राज्य में बीवियाँ किराए पर मिलती है?
Ranjan Chauhan
यूँ तो पुरुष प्रधान कहे जाने वाले हमारे समाज ने चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, कला सरीखे अनेक प्रकार के क्षेत्रों में अकल्पनीय विकास किया है। परन्तु इन असंख्य ऐतिहासिक सफलताओं का श्रेय सिर्फ़ पुरुषों को देना उन अनगिनत महिलाओं का अपमान होगा जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और कहीं कहीं पर तो पुरुषों से भी आगे बढ़कर वर्तमान समय के अभूतपूर्व विकसित समाज को संभव बनाया है ।
लेकिन यह भी सत्य है कि हमारे समाज ने उन्हीं नारियों के साथ अनेक ही अत्याचार किए हैं और दुनिया में सबसे विकसित प्रजाति कहे जाने वाले मनुष्यों की जननी स्त्रियों पर अन्याय का इतिहास बाबा आदम जितना ही पुराना है । इसी अशोभनीय अन्याय का ही एक और उदाहरण है धरिचा प्रथा ।
क्या है धरिचा प्रथा?
भारत देश के मध्य में स्थित हृदय कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के शिवपुरी में प्रचलित यह धरिचा प्रथा मध्य प्रदेश के हृदय विहीन होने का जीता जागता उदाहरण है।
इस कुप्रथा के रुप में महिलाओं की एक मंडी लगती है, जहां भारत में देवी की उपाधि प्राप्त महिलाओं समेत मासूम बच्चियों को भी ख़रीदा व बेचा जाता है ।
सब्ज़ियों के बाज़ार के भाँति ही महिलाओं की बोली लगाई जाती है एवं सौदा पक्का होने पर 10 रुपये से लेकर 100 रुपये के स्टांप पर लिखकर बेच दिया जाता है ।
वैसे तो असंतुलित लिंगानुपात को कारण बताकर आज के आधुनिक समाज में भी इस प्रकार का अमानवीय कार्य धड़ल्ले से हो रहा है । परन्तु लिंगानुपात के बहाने की पोल खोलता एक सच ये भी है कि ख़रीदी गई स्त्री केवल तब तक ही पुरुष के साथ रहती है जब तक वह उसके परिवार को एक तय मूल्य चुकाता रहता है । और ऐसा न कर पाने की स्थिति में बेचारी महिला फिर उसी क़तार में लगा दी जाती है जब तक कि कोई नया ख़रीदार न मिल जाए ।
हमारे देश में जहां एक ओर पुरुष व नारी की समानता के प्रतीक अर्धनारीश्वर स्वरूप भगवान शिव की पूजा की जाती है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी ही माताओं बहनों तक को बेच कर अपने राक्षसी स्वभाव का एक अति घृणित प्रमाण देते हैं और यह सिर्फ़ एक जगह की बात नहीं है। आज भी हमारे समाज में ऐसी कुरीतियाँ कई स्थानों पर व्याप्त हैं । इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के भी कई स्थानों पर अधिक आयु वाले लड़कों के लिए लड़कियाँ न मिलने पर बिहार व पहाड़ क्षेत्रों से वधु ख़रीद कर लाना आमतौर पर देखा जा सकता है ।अब चाहे लिंगानुपात का असंतुलन और लड़कों के लिए वधु का न मिल पाना कारण हो या फिर मात्र कुछ पैसे, परन्तु सत्य तो यही है कि किसी महिला को उसकी इच्छा के विपरीत बेचने और ख़रीदने का अधिकार किसी को भी नहीं होना चाहिए ।
सरकारों द्वारा किए गए नारी सशक्तिकरण के दावों पर करारा प्रहार करती ये कुप्रथाएं न केवल उन ढोंगी संस्थाओं का सत्य उजागर करती है जो स्वयं को नारी व नारीवाद का ठेकेदार बताते हैं, बल्कि हमारे समाज की दोगली मानसिकता को भी उजागर करती है।
मैं भलीभाँति जानते समझते यह कह रहा हूँ क्योंकि यदि आज के आधुनिक युग में भी इस प्रकार के नीच कृत हो रहें हैं तो फिर हमें शर्म आनी चाहिए कि हमने मात्र भौतिक वस्तुओं का विकास किया एवं मानव मूल्यों के विकास पर शायद कभी ध्यान ही नहीं दिया। hi.quora.com से साभार
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