बिहार की हिडेन हिस्ट्री : आजीवक-मक्खलि गोसाल
आजीवक-मक्खलि गोसाल
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ईसा मसीह के चरनी में जन्म लेने से अमूमन 520-30 साल पहले मगध में मक्खलि गोसाल ने अपनी गुहाल में जन्म लिया था। बाद में वह आजीवक सम्प्रदाय का सबसे बड़ा दार्शनिक साबित हुआ। उसके द्वारा स्थापित यह सम्प्रदाय उसकी मृत्यु 15-16 सौ साल बाद तक चलता रहा। यह उस मगध की धरती का सबसे बड़ा संत था, जो एक जमाने में गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर की ज्ञान की तलाश की भूमि रही है। वह मगध जो व्रात्यों और वेद, यज्ञ विरोधी निरीश्वरवादी दार्शनिकों का सबसे महत्वपूर्ण ठिकाना रहा है। जिस भूमि को आर्य हाल-हाल तक त्याज्य मानते रहे हैं।
मगध व्रात्यों और निरीश्ववादी दार्शनिकों का ठिकाना क्यों बना और आर्यों द्वारा त्याज्य होने के बावजूद उस धरती पर इतना बड़ा साम्राज्य कैसे खड़ा हुआ जो कम से कम एक हजार साल तक भारत की सत्ता का केंद्र बना रहा, यह प्रसंग फिर कभी। अभी इतना जानना महत्वपूर्ण होगा कि जिस वक्त यहां बौद्ध और जैन जैसे देश और दुनिया को हजारों साल तक प्रभावित करने वाले धर्म आकर ले रहे थे, उस वक़्त यहां और छह बड़े अनीश्वरवादी सम्प्रदाय विकसित हो रहे थे। इन सभी सम्प्रदायों ने एक सुर में यज्ञ और पशु बलि का विरोध किया, अहिंसा और प्रेम की वकालत की।
संभवतः इन संप्रदायों में वैसा आकर्षण नहीं था कि यह उस वक़्त के सम्राटों और बड़े व्यवसायियों को प्रभावित कर पाता, इसलिये ये बौद्ध और जैन सम्प्रदाय की तरह प्रसारित और दीर्घायु नहीं हो पाए। मगर इनके प्रतिपादकों का अपने वक़्त में खूब संपर्क हुआ और इनमें से कई लो प्रोफाइल हो कर समाज को प्रभावित भी करते रहे। इनमें से ही एक सम्प्रदाय आजीवकों का था, जिसके प्रणेता मक्खलि थे।
आजीवक सम्प्रदाय के ईसा पूर्व 500 से लेकर 12वीं सदी तक जीवित रहने के प्रमाण मिले हैं, इसके बावजूद हमें इस सम्प्रदाय और इसके प्रणेता मक्खलि के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती क्योंकि आज इनका कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं। हमें इनके बारे में जो कुछ पता चलता है वह उस दौर के जैन और बौद्ध साहित्यों से, जो उस वक़्त इनके प्रतिद्वंद्वी सम्प्रदाय थे। खास कर जैन साहित्य में इन्हें बहुत महत्व दिया गया है। महावीर को बार बार इन्हें पराजित करता हुआ बताया गया है। मगर साथ ही यह भी स्वीकार किया गया है कि उस वक़्त इनके मानने वाले महावीर को मानने वाले लोगों की तुलना में दस गुना अधिक थे।
इन ग्रंथों ने आजीवक सम्प्रदाय को नियतिवादी मानकर खारिज किया है, मगर मक्खलि गोसाल के जीवन पर मगही भाषा में उपन्यास लिखने वाले अश्विनी पंकज कहते हैं कि उनका नियतिवाद प्रकृति की शक्ति को स्वीकार करना और मनुष्य को उस शक्ति के आगे तुच्छ मानना था, वह भाग्यवाद नहीं था।
मक्खलि गोसाल एक कामगार परिवार से आते थे और उनके पिता गीत गाकर भिक्षाटन करते थे। इसलिये मक्खलि ने जिस आजीवक सम्प्रदाय को विकसित किया वह श्रमिकों का, आजीविका चलते हुए धार्मिक जीवन जीने का सम्प्रदाय था। वही सही अर्थ में ऐसे लोगों का सम्प्रदाय था जो काम को ही पूजा मानते थे। यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज आजीवक सम्प्रदाय के ज्ञान से हम वंचित हैं और उन्हें हासिल करने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है। मगर मक्खलि गोसाल के बारे में हमारे पास जो भी जानकारियां उपलब्ध हैं वे हमें उस वक़्त के मगध में उन अनीश्वरवादी विचारों की बहस और विविधता का आभास देती है। इस विचार मंथन से निकले बौद्ध धर्म ने पूरे एशिया को अपने विचारों की आगोश में ले लिया और इस बहाने भारतीयता का भी पूरे एशिया में प्रसार किया।
#व्रात्य3 #अनीश्वरवादी
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