बिहार का वह स्थान जहां अंधे ऋषि को मिली थी रोशनी, रामायण काल में आए थे श्रीराम
सारण। बिहार के प्राचीनतम शहरों मं शुमार गौतम स्थान रिविलगंज में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा व सरयू नदी के संगम स्थली पर हर साल लगने वाला गोदना-सेमरिया नहान मेला धार्मिक, पौराणिक तथा ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां हजारों की संख्या में लोग सरयू नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं तथा पुण्य के भागी बनते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल व भव्य मेला लगता है। जिसमें श्रद्धालुओ का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। यह मेला कब से लगता है सही जानकारी किसी को नहीं है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मोक्ष दायिनी सरयू नदी में स्नान ध्यान, पूजा-अर्चना के बाद दान देने को लेकर कई धार्मिक किवदंतियां रामचरित मानस में वर्णित हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से देश में चार महत्वपूर्ण धार्मिक क्षेत्र आते हैं। जिसमें गौतम क्षेत्र भी एक है। पहला भृगु क्षेत्र (वर्तमान बलिया उत्तर प्रदेश), दूसरा गौतम क्षेत्र (गोदना, सारण) तीसरा हरिहर क्षेत्र (सोनपुर, सारण) और चौथा वाल्मिकी क्षेत्र (वाल्मिकी नगर, पं.चंपारण) है।
ऋषि श्रृंगी की तपोभूमि रही है यह नगरी
महर्षि गौतम की यह नगरी कभी ऋषि श्रृंगी की भी तपोभूमि रही है। गौतम ऋषि भी सप्तर्षियों में माने गये हैं। वे जन्मांध थे। स्वर्ग की कामधेनु की कृपा से उनका तम (अंधेरा) समाप्त हो गया वह देखने लगे। तब गौतम कहलाए। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। (जो रागेय राघव लिखित महायात्रा कथा के भाग अंधेरा रास्ता में वर्णित है) कहा जाता है कि गौतम ऋषि मिथिला नरेश जनक जी की सभा में अपने पुत्र सतानंद जी को स्थापित करने के बाद अपनी धर्मपत्नी अहिल्या तथा पुत्री अंजनी के साथ इस स्थान पर आये तथा इसे अपनी तपोभूमि बनाया। माता अंजनी हनुमान जी की माता थीं इस कारण इस स्थान को हनुमान जी का ननिहाल होने का भी गौरवशाली इतिहास है।
गोदना में पधारे थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
रिविलगंज नगर क्षेत्र में चार किमी की परिधि में सरयू नदी तट पर लगने वाला इस मेला क्षेत्र के एक सिरे पर महर्षि गौतम का मंदिर है तो दूसरे सिरे पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम का भगनावशेष है। रामचरित मानस में वर्णित कथा के अनुसार रामायण युगीन काल में गोदना में मर्यादा पुरुषोत्तम राम पधारे थे। गोदना स्थित गौतम ऋषि मंदिर प्रांगण में भगवान श्रीराम का पदचिह्न आज भी मौजूद है। जो कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला मेला में आये लोगों का दर्शन का केन्द्र बिन्दु होता है। मेला आये श्रद्धालु भक्तगण उस चरण चिह्न का सहृदय दर्शन कर
पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर परिसर में शिवजी, दुर्गाजी, राधा कृष्ण, हनुमानजी, अहिल्या उद्धार मंदिर के साथ श्रीरामचन्द्रजी का चरणचिह्न भी मौजूद है। महर्षि गौतम, पत्नी अहिल्या, पुत्री अंजनी, राम-लक्ष्मण एवं गुरु विश्वामित्र की प्रतिमा भी मंदिरों में स्थापित है।
अहिल्या थीं गौतम ऋषि के पास धरोहर
कथा के अनुसार ब्रह्मा ने अनिंध सुंदरी बनायी जिनका नाम था अहिल्या। ब्रह्माजी ने उसे गौतम ऋषि के पास धरोहर रख दिया। ऋषि ने हजारों वर्ष बाद ब्रह्मा के पास अहिल्या को ज्यों की त्यों लौटाने के लिए ले गये, ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर ऋषि से ही विवाह करा दिया। वैसे अहिल्या के जन्म के बारे में अलग-अलग कथाएं भी मिलती हैं। ब्रह्मापुराण और विषणु धर्मोतर पुराण के अनुसार अहिल्या की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा जल से की गयी थी। वहीं भागवत पुराण के अनुसार अहिल्या पुरू वंश के राजा मुद्गल की पुत्री थीं।
अहिल्या अत्यंत रूपवती थी, जिन्हें देखकर देवराज इंद्र मोहित हो गये थे। परन्तु अहिल्या के पतिव्रता धर्म और ऋषि गौतम के भय से प्रकट रूप से कुछ नहीं कर सकते थे। अत: उन्होंने छल का सहारा लिया और अर्धरात्रि में ही मुर्गा का रूप धारण कर सुबह होने का संकेत दे दिया। गौतम ऋषि ने प्रात: काल हुआ जानकर स्नान करने के लिए नदी को प्रस्थान कर गये। इसी बीच इंद्र गौतम का वेश में उनके कुटिया में आये और अहिल्या का सतीत्व भंग कर दिया। उधर नदी घाट पर आकाशवाणी हुई कि ऋषि तुम्हारे साथ छल हुआ है। गौतम अपने कुटिया को लौटे तो देखा कि उन्हीं के वेश में इंद्र कुटिया से निकल रहे हैं। समझते देर न लगा ऋषि ने इंद्र को शाप दे दिया कहा इंद्र तुम्हारे शरीर में एक हजार नारियों के चिह्न रूप
अवयव हो जाये। क्षण मात्र में इंद्र का शरीर उन अवयवों से भर गया। शापग्रस्त इंद्र ने ब्रह्मा तथा अन्य देवताओं के साथ आकर ऋषि की प्रार्थना की उनकी प्रार्थना से ऋषि शांत हुए और उन अवयवों को सहस्त्र नेत्र बना दिये। तभी से देवराज इंद्र का नाम सहस्त्राक्ष भी हो गया। इंद्र को इस प्रकार शाप देने के बाद गौतम ने अपनी पत्नी अहिल्या को भी शाप दिया कहा-दुराचारिणी, तू भी यहां कई हजार वर्षो तक पत्थर बनी रहेगी। पत्थर सा दृश्य बनी अहिल्या द्वारा काफी अनुनय विनय करने तथा अपने को निरपराध होने की बात कहने पर ऋषि ने अहिल्या को अपने शाप से मुक्ति का रास्ता भी बताया कहा कि कई हजार वर्ष बाद दशरथनंदन श्री रामचन्द्र जी अपने भाई लक्ष्मण के साथ आयेंगे यहां और वे तेरी आश्रयभूत शिला (पत्थर) पर अपना दोनों चरण रखेंगे उसी समय तू पापमुक्त हो जायेगी तथा भक्तिपूर्वक श्रीराम जी का पूजन कर उनकी परिक्रमा और नमस्कार पूर्वक स्तुति कर शाप से छूट जायेगी और पूर्ववत मेरी सुखपूर्वक सेवा करने लगेगी।
कथानुसार गुरु विश्वामित्र भाई लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम ने अयोध्या से जनकपुर जाते समय यहां पधारे थे तथा अहिल्या को शापमुक्त किये थे। भगवान श्रीराम ने यहां सरयू नदी में स्नान भी किये थे। रामचरित मानस की रचना करते हुए तुलसी दास ने सर्वप्रथम मानस नंदनी सरयू नदी की वंदना करते हुए लिखा है ‘कोटि कल्प काशी बसे मथुरा बसे हजार, एक निमित सरयू बसे तूलै न तुलसी दास’। रामचरित्र मानस के अनुसार संसार के समस्त प्राणियों सभी तरह के पाप का नाम एक मात्र सरयू नदी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान मात्र से हो जाता है और प्राणी बैकुंठ के हकदार होता है।
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