छात्र आंदोलन, उपद्रव और पुलिस

पुष्यमित्र
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यह मेरे जीवन का संयोग रहा है कि इन तीनों से मेरा वास्ता रहा। पहले 11वीं कक्षा में नवोदय में आंदोलन किया, फिर मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई के दौरान आंदोलन किया। पहले आंदोलन का मसला सुविधाओं का अभाव और स्कूल में फैला भ्रष्टाचार था, दूसरा आंदोलन डिग्री की वैधता पर संकट की वजह से था।

नवोदय में हम छात्र अपने लिए निर्धारित सुविधाएं, मेस के खराब भोजन और स्कूल प्रबंधन के भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन कर रहे थे। आंदोलन उग्र था, मगर कमोबेस अहिंसक था। आखिरकार एक वक्त ऐसा आया जब स्कूल प्रबंधन ने हमें होस्टल खाली करने का नोटिस जारी कर दिया। हमें होस्टल खाली कराने के लिए पुलिस आ गयी। वह दृश्य भुलाये नहीं भूलता कि स्कूल परिसर में घुसे पुलिसकर्मियों को हमने कंधे पर उठा कर परिसर से बाहर भेज दिया। कुछ बच्चों ने उनके साथ अभद्रता भी की। मगर किसी पुलिस कर्मी ने किसी बच्चे पर थप्पड़ तक नहीं चलाया। अभी सोचता हूँ कि वह भी एक दौर यह, जब पुलिस प्रशासन में इतनी तहजीब थी कि छात्रों पर बल प्रयोग नहीं करना है। प्रशासन होस्टल तो खाली नहीं करवा पाया, क्योंकि हमने उनसे घर जाने का किराया मांग लिया था जो 1993 में तकरीबन 15 हजार रुपये हो गया था। स्कूल प्रशासन के पास इतना पैसा नहीं था। खैर

2000 में हमने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि में आंदोलन किया, वजह थी हमारी डिग्री की मान्यता संकट में आ गयी थी। उस वक़्त हम थोड़े मेच्योर थे, हमने तय किया था कि पूरा आंदोलन अहिंसक और गांधीवादी तरीके से होगा। हमें समर्थन देने उस वक़्त भाजपा, संघ और ABVP के लोग भी पहुंच गए थे, मगर हमने उन्हें साफ साफ मना किया। हम धरना प्रदर्शन, नाटक नुक्कड़ और पोस्टर के जरिये विरोध जता रहे थे। मगर इस बीच प्रशासन ने कुछ छात्रों को हमारे बीच इम्प्लांट कर दिया। उन छात्रों ने वीसी की गाड़ी का सीसा तोड़ दिया और उनके बहाने प्रशासन हम पर बल प्रयोग की कोशिश करने लगा। वे छात्र हमारी नजर में थे, हमने साफ कह दिया कि ये हमारे साथ नहीं हैं, प्रशासन इन पर जो चाहे कार्रवाई करे। उस वक़्त हम साफ नहीं होते तो प्रशासन को बल प्रयोग का बहाना मिल जाता।

ये दो अनुभव बताते हैं कि छात्र आंदोलन को कितनी सतर्कता की जरूरत होती है, प्रशासन बल प्रयोग का बहाना तलाशने के लिए किस किस किस्म के खुराफात कर सकता है और पुलिस को छात्र आंदोलन के वक्त कितनी सतर्कता बरतनी चाहिए। अफसोस इस वक़्त इन तमाम संवेदनशीलताओं का विलोप हो गया है।

पुष्यमित्र के facebook timeline से साभार






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