बिहार की हिडेन हिस्ट्री : कौण्डिन्य- फुनान वंश का संस्थापक
कौण्डिन्य- फुनान वंश का संस्थापक
पुष्यमित्र के फेसबुक timeline से साभार
प्राचीन भारत के इतिहास में कई कौण्डिन्य का जिक्र मिलता है। एक कौण्डिन्य उन सात ब्राह्मणों में से एक था जिसने राजकुमार सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध होने की भविष्यवाणी की थी और बुद्धत्व प्राप्त होने पर वह सबसे पहले उनका शिष्य बना। उसके साथ के चार अन्य शिष्य उसी की प्रेरणा से गौतम बुद्ध के शिष्य बने थे। हालांकि इतिहास इसके आगे उस कौण्डिन्य के बारे में कुछ नहीं बताता। मगर यहां हम उस कौण्डिन्य के बारे में बात करेंगे जिसने दक्षिणी कम्बोडिया और दक्षिणी वियतनाम के संयुक्त क्षेत्र मेकाँग डेल्टा में ईसा की पहली सदी में फुनान वंश की स्थापना की। आने वाले वक्त में यही फुनान वंश कंबोडिया, दक्षिणी वियतनाम, थाईलैंड और आसपास के मुल्कों में हिन्दू धर्म पर आधारित सभ्यता के विकसित होने का आधार बना। हालांकि इससे काफी पहले ईसा पूर्व तीसरी सदी में उत्तरा और सोना नामक बौद्ध भिक्खुओं को इस क्षेत्र में जिसे उस वक़्त सुवर्णभूमि कहा जाता था, थेरवाद के प्रसार के लिए भेजा गया था। उन दोनों भिक्खुओं ने क्या किया यह तो नहीं मालूम, मगर इतिहास कहता है उस क्षेत्र में थेरवाद का प्रसार काफी बाद में हुआ, लगभग 1200 साल बाद। वह भी श्रीलंका के थेरवादी भिक्खुओं के जरिये। इस बीच उस क्षेत्र में फुनान, खमेर और एक अन्य हिन्दू शासकों के वंश का साम्राज्य चलता रहा था।
इतिहासकार कहते हैं, वह कौण्डिन्य जो आज के दक्षिण पूर्वी एशिया और उस वक़्त की सुवर्णभूमि में हिन्दू संस्कृति का प्रसारक बना वह बिहार का और मिथिला का रहने वाला था। जाने माने इतिहासकार उपेंद्र ठाकुर ने अपनी कई किताबों में कौण्डिन्य के मिथिलावासी होने की बात लिखी है और लिखा है कि कौण्डिन्य मिथिला के ब्राह्मणों का एक गोत्र है। इस गोत्र के लोग प्राचीन काल से ही सुवर्णभूमि और दक्षिण भारत के इलाके में जाकर बसते रहे हैं। यह कौण्डिन्य भी उसी गोत्र का ब्राह्मण था। हालांकि आज से दो हजार साल पहले एक ब्राह्मण ने समुद्र यात्रा करके दूर देश जाने की हिम्मत की और वहां जाकर प्रेम विवाह किया, यह बड़ी हैरत भरी बात लगती है। खासकर तब जब 20 वीं सदी में इसी मिथिला के एक राजा को ब्राह्मणों ने समुद्र यात्रा की वजह से जात बाहर कर दिया था। कुछ और पुस्तकों में यह जिक्र है।
कंबोडिया और दक्षिणी वियतनाम के इलाके में आज भी कौण्डिन्य की कथा प्रचलित है कि कैसे एक ब्राह्मण पूर्व दिशा से अपनी नौका से चल कर इस इलाके में आया और उसने यहां की राजकुमारी नाग कन्या सोना से विवाह कर लिया और फुनान वंश की स्थापना की। वहां चौथी सदी में रचित एक ग्रंथ में भी इस कथा का जिक्र मिलता है। फुनान वंश ने वहां छह सौ साल राज किया, इस अवधि में एक और कौण्डिन्य भारत से आया और उसने भी इस वंश के जरिये वहाँ राज किया। फिर कुछ अवधि के लिये चेनला वंश ने राज्य किया फिर खमेर वंश का राज आया। ये सभी हिन्दू शासक थे। कहते हैं गुप्त और पल्लव साम्राज्य से भी इन राज घराने को मदद मिलती रही। इसी बीच अंगकोरवाट मन्दिर की स्थापना हुई। इस इलाके का नाम कम्बोज रखा गया, जो बाद में कम्बोडिया हो गया।
12वीं सदी में जब भारत से बौद्ध धर्म खत्म हो रहा था,
श्रीलंका से आये थेरवादी भिक्खुओं ने यहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया और हिन्दू धर्म यहां से खत्म होने लगा। यह तो खैर सुवर्णभूमि का इतिहास है। मगर मेरे लिये उस कौण्डिल्य का इतिहास ज्यादा दिलचस्प और ज्यादा चकित कर देने वाला है, जो ईसा की पहली सदी में सुवर्णभूमि गया था और उसने वहां 6 सौ साल तक चलने वाले एक साम्राज्य की स्थापना की। जो बिहार का रहने वाला था। सवाल यह भी है कि क्या वह खुद सुवर्णभूमि गया था या भारत के तत्कालीन राजाओं ने उसे भेजा था?
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