बिहार में युवाओं को नहीं भा रही अफसरशाही, बीपीएससी पास कर छोड दे रहे नौकरी
नौकरी छोडने के लिए सरकार को दंड शुल्क भर कर पा ली नौकरशाही की नौकरी से आजादी
डेढ़ दर्जन से अधिक ने छोड़ दी BDO की नौकरी
बिहार कथा, पटना. एक समय था जब बिहार में बच्चे जन्म लेते ही उनके माता पिता डिप्टी कलक्टर, कलेक्टर बनाने का सपना संजो लेते थे. बच्चे युवा अवस्था में भी यही सपना देखते थे. लेकिन अब बिहार में यह हकीकत बदल चुकी है. भले ही बीपीएससी परीक्षा में बैठने वालों की संख्या बढी है, लेकिन एक और हकीकत यह हे कि बिहार में टैलेंटेड युवाओं को अफसरशाही नहीं भा रही है? आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की कठिन परीक्षा में सफल होकर ग्रामीण विकास पदाधिकारी सह प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) बनने के बाद भी कई युवाओं ने विश्वविद्यालय शिक्षक (University Teacher) बनने को प्राथमिकता दी है।
बीडीओं की नौकरी के बाद भी नए अवसर की तलाश में लगे ऐसे अनेक युवाओं ने पीजी के साथ नेट (NET) और पीएचडी (PhD) की उपाधि होने पर विश्वविद्यालय शिक्षक बनने को प्राथमिकता दी है। अपेक्षित डिग्रियां नहीं रहने पर वे राज्य सरकार में ही अन्य सेवा को तरजीह देते नजर आए हैं।
20 से अधिक ने दिया इस्तीफा
2019 में 20 से अधिक ग्रामीण विकास पदाधिकारी सह प्रखंड विकास पदाधिकारियों ने इस्तीफा दिया। इनमें से अधिक लोगों ने शिक्षा को चुना। वे असिस्टेंट प्रोफेसर (Assistant Professor) बने। बाकी अधिकारियों ने बिहार लोक सेवा आयोग की अन्य प्रतियोगिताओं के जरिए अन्य पदों पर जाना पसंद किया। श्रीमती हुस्न आरा, तौकीर हाशमी, रुपेंद्र कुमार झा, पंकज कुमार, रतन कुमार दास जैसे कुछ नाम इन पदाधिकारियों के हैं। ये सब किसी न किसी प्रखंड में पदाधिकारी थे। राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर बहाल हो गए। इसी तरह अमरेश कुमार, श्रीमती आरुप और मारकंडेय राय जैसे अधिकारी हैं, जो आयोग की परीक्षाओं में शामिल होकर अन्य पदों पर चले गए। हां, नौकरी छोडऩे के एवज में उन्हें आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी। उनपर राज्य सरकार ने जो कुछ खर्च किया था, उसकी वसूली की गई।
इस कारण छोड़ रहे नौकरी
प्रखंड विकास पदाधिकारी की तुलना में असिस्टेंट प्रोफेसर की तनख्वाह अधिक है। मगर, नौकरी बदलने की यह इकलौती वजह नहीं है। अफसरी छोड़ असिस्टेंट प्रोफेसर बने एक पूर्व बीडीओ का कहना था प्रशासन में काम का बोझ (Work Load) अधिक है। राज्य और केंद्र सरकार की शायद ही ऐसी कोई योजना है, जो प्रखंड के रास्ते से नहीं गुजरती है। प्रखंडों में काम बढ़ा है, लेकिन उस लिहाज से कार्यबल नहीं बढ़ा है। नतीजा यह है कि कम उम्र में ही यह अफसरी उम्र भर चलने वाली बीमारियां दे देती हैं। इसके अलावा जनप्रतिनिधियों की गैर-जरूरी दखलंदाजी भी परेशान करती है।
कहते हैं विभागीय मंत्री
ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार स्वीकार करते हैं कि प्रखंड अधिकारियों पर काम का बोझ अधिक है। सरकार कोशिश कर रही है कि कार्यबल बढ़े। इसमें समय लगेगा। पदाधिकारियों की रिक्तियां जल्द भर दी जाएंगी। आयोग ने दो किस्तों में 35 ग्रामीण विकास पदाधिकारियों की बहाली की अनुशंसा की है। प्रक्रिया पूरी करने के बाद इन्हें तैनात किया जाएगा।
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