‘वंदे भारत’ से जम्मू-कश्मीर का ‘पुरसा हाल’

यात्रा संस्मरण ;  जयशंकर गुप्त

तकरीबन दो दिनों के एकाकी, बाहरी दुनिया से कटे रहने जैसे कटरा (जम्मू) प्रवास के बाद पांच अक्टूबर, शनिवार की सुबह 11बजे ‘श्रीशक्ति एक्सप्रेस’ से दिल्ली लौट आया। गये थे दो दिन पहले, तीन अक्टूबर की सुबह 10.25 बजे कटरा के लिए शुरू हुई हाई स्पीड ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ की उद्घाटन यात्रा में शामिल होकर। रेल राज्यमंत्री सुरेश सी अंगडि, रेल मंत्रालय के आला अफसरों, कर्मचारियों और मीडिया टीम के साथ नई नवेली ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ में सवार होकर शाम के 6.50 बजे कटरा पहुंचे तो घंटा भर पहले शुरू हुई बरसात थमने को थी। लेकिन उससे मौसम सर्द या कहें खुशगवार हो गया था। हमारा प्री पेड टेलीफोन कनेक्शन जम्मू क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही निष्क्रिय हो गया था। जिसके पास पोस्ट पेड कनेक्शन थे, उनके फोन तो चालू थे लेकिन इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं थी। यह स्थिति पूरे कटरा प्रवास के दौरान बनी रही।

‘वंदेभारत एक्सप्रेस’ की सुखद यात्रा

बिना अतिरिक्त इंजिन के डिब्बेवाली साफ सुथरी ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ की यात्रा सुखद रही। पूरी तरह से वातानुकूलित एवं आधुनिक सुविधाओं से सज्ज इस हाई स्पीड ट्रेन में चेयरकार वाली 16 बोगियां हैं जिनमें दो बोगियां एक्जीक्यूटिव क्लास की हैं। साथ में पेंट्रीकार और ड्राइवर के केबिन भी हैं। इस ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इससे 8 घंटे में नयी दिल्ली से कटरा के बीच का सफर तय होगा. फिलहाल अभी दिल्ली से कटरा जाने में ट्रेन से 11-12 घंटे का समय लगता है. ऐसे में वंदे भारत एक्सप्रेस के चलने से 4 घंटे का समय कम लगेगा. इसके हिसाब से ही इसका किराया भी है। चेयरकार वाले साधारण डिब्बे में एक तरफ की यात्रा का किराया 1630 रु. है जबकि एक्जीक्यूटिव क्लास के यात्री को 3015 रु. का टिकट लेना होगा। बोगियों में लेग स्पेस ज्यादा है। नाश्ते और भोजन का बेहतर इंतजाम है। एक्जीक्यूटिव क्लास की रिवाल्विंग सीटें भी ज्यादा आरारामदायक हैं जबकि साधारण चेयरकार में कुर्सियां पीछे की तरफ झुकती नहीं ताकि यात्री आठ घंटे की यात्रा में थोड़ा पसर कर झपकी ले सके।
नयी दिल्ली से कटरा के लिए मंगलवार को छोड़कर सप्ताह में छह दिन चलनेवाली वंदे भारत एक्सप्रेस का व्यावसायिक परिचालन 5 अक्टूबर की सुबह छह बजे से हुआ। कटरा पहुंचने का इसका निर्धारित समय दोपहर दो बजे का है। रास्ते में यह अंबाला कैंट, लुधियाना और जम्मू तवी स्टेशनों पर दो दो मिनट के लिए रुकेगी। वापसी उसी दिन तीन बजे होगी। रेलवे स्टेशनों पर इस ट्रेन की सुरक्षा के लिए खास इंतजाम किए गये हैं।
इस तरह की पहली वंदे भारत एक्सप्रेस इसी साल 15 फरवरी को नयी दिल्ली से वाराणसी के लिए शुरू की गई थी। साथ चल रहे रेल राज्यमंत्री सुरेश सी अंगडि ने
बताया कि रेलवे अगले दो तीन वर्षों में वंदे भारत जैसी 40 हाई स्पीड रेल गाड़ियां चलाएगा। उन्होंने कहा कि यात्रियों की जेब,समय और सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस तरह की और अधिक रेल गाड़ियां चलाई जायेंगी जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होंगी और कम समय में यात्रा पूरी करेंगी लेकिन किराया भी महंगा होगा। क्या रेलवे निजीकरण की तरफ बढ़ रहा है! यह पूछने पर उन्होंने बताया कि जिस तरह से सड़क मार्ग और आकाश मार्ग की यात्राएं पब्लिक सेक्टर के साथ ही निजी क्षेत्र के लिए भी खोल देने से प्रतिस्पर्धा बढ़ी और इसके चलते सेवा-सुविधाएं भी बढ़ी हैं, वही प्रयोग रेलवे में भी किया जाएगा। यहां भी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि किसी ढाबे में एक कप चाय आपको पांच-दस रुपये में मिल जाती है, वही चाय किसी बड़े, सितारा होटल में 100-200 रु. की भी मिलती है। बस यात्रा की भी तमाम कटेगरीज हैं। कोई साधारण बस से यात्रा करता है तो कोई वातानुकूलित, वाल्वो बसों में भी सफर करता है।
बहरहाल, तीन अक्टूबर की शाम हम सभी लोग कटरा से थोड़ी दूर, जम्मू रोड पर स्थित कंट्री रेजार्ट होटल पहुंच गए। मंत्री जी और अधिकतर पत्रकार साथी, रेल कर्मी अगली सुबह, ऊपर माता वैष्णव देवी का दर्शन करने गये। कुछ लोग रात में भी निकल गये थे। शरीर और स्वास्थ्य के भी गवाही नहीं दे पाने की वजह से इस बार हम ऊपर माता वैष्णव देवी के दरबार में नहीं जा सके। नीचे से ही प्रणाम कर लिया। 1991 से तकरीबन हर साल हम उनके दरबार में सपरिवार हाजिरी लगाते हैं पिछली बार जनवरी महीने की शुरुआत में गये थे। नये साल, 2020 की शुरुआत में भी अगर कोई अनहोनी नहीं हुई तो सपरिवार जाने का इरादा है।

जम्मू में भी हालात सामान्य नहीं!

होटल कंट्री रेजार्ट में वाय फाय की सुविधा तो थी लेकिन स्पीड बहुत कम। और वह भी कब कारगर होती थी और कब गायब हो जाती थी, कह पाना मुश्किल है। टैक्सी ड्राइवर कुलदीप शर्मा ने बताया कि 5 अगस्त के बाद से ही जम्मू कश्मीर क्षेत्र में टेलीफोन और इंटरनेट की सुविधाएं बंद हो गई थीं। इधर कुछ दिनों से जम्मू क्षेत्र में तो टेलीफोन की लैंड लाईन और पोस्ट पेड मोबाइल फोन की सुविधा शुरू कर दी गई है लेकिन इंटरनेट की सुविधा अभी शहरी क्षेत्रों में कुछ सरकारी दफ्तरों और होटलों में ही उपलब्ध है। वह भी नहीं के बराबर। वाय फाय की शिकायत करने पर एक होटलकर्मी ने कहा, हुजूर आप एक दिन में परेशान हो गये, हम इसे पिछले दो महीनों से झेल रहे हैं। दिल्ली में आप लोग छाप और दिखा रहे हैं कि हालात सामान्य हो रहे हैं। यहां आप खुद ही देख लो। दो महीनों से बिजनेस, व्यापार, पर्यटन, शैक्षणिक गतिविधियां ठप सी हैं। होटल, गेस्ट हाउसेज वीरान-सुनसान पड़े हैं। नव रात्रों के कारण इधर माता के श्रद्धालुओं की आमद थोड़ी बढ़ी है। इससे कटरा बाजार और होटल, रेस्टूरेंटों में भी कुछ चहल पहल बढ़ी है।
कटरा में या कहें कि जम्मू क्षेत्र के हिंदू बहुल इलाकों में हिंदू-मुसलमान विभाजन साफ दिखता है। अधिकतर हिन्दुओं को लगता है कि धारा 370 और 35ए के हट जाने से स्थानीय विकास के बंद पड़े रास्ते खुल जाएंगे। निवेश बढ़ेगा और रोजगार के साधन भी जबकि कुछ लोग इसे राजनीतिक सोशेबाजी भर मानते हैं। लेकिन मुसलमान कुछ भी बोलने से झिझकते, संकोच करते हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता है। कुछेक लोग दबी जुबान कहते हैं, हालात नार्मल होने के बाद ही कुछ पता चल सकेगा। उनके अनुसार, भाजपा के लोगों के लिए यह चुनावी राजनीति का मुद्दा हो सकता है। इसका लाभ भी उन्हें मिल सकता है लेकिन हमारे लिए तो यह हमारे मुस्तकबिल से जुड़ा है। ना जाने आगे हमारा यहां क्या होनेवाला है।

कश्मीर में खौफ बरकरार

कश्मीर घाटी के इलाकों में हालत और भी बदतर है। वहां तो चुनिंदा जगह, इलाकों को छोड़ दें तो इंटरनेट की सुविधा बंद है और पोस्ट पेड मोबाइल भी चालू नहीं हैं। स्कूल, कॉलेज खुल रहे हैं, टीचर जाते हैं लेकिन छात्र नदारद। सेब की फसल तैयार खड़ी है। राष्ट्रीय राजमार्गों के अभी कुछ खुलने और ट्रकों की आवाजाही शुरू होने से सेब की पेटियां बाहर की मंडियों में जाने लगी हैं लेकिन उचित कीमत नहीं मिल पा रही। कटरा में लोगों ने बताया कि अभी तक बाहर भेजे जानेवाले सेब की पेटियों में पिछले साल के मुताबिक 40 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
जम्मू कश्मीर के मौजूदा हालात का प्रतिकूल असर पड़ोसी पंजाब के बिजनेस व्यापार पर भी पड़ा है। हर साल, सर्दियों से पहले, अगस्त के पहले सप्ताह में जम्मू के ठंडे इलाकों और खासतौर से कश्मीर घाटी से तकरीबन 250-300 करोड़ रु. का होजियरी और ऊनी कपड़ों, शालों के आर्डर पंजाब में लुधियाना, अमृतसर के उत्पादकों-व्यापारियों को मिलते थे। सितंबर से घाटी में ठंड शुरू हो जाती है। चंडीगढ़ में ट्रिब्यून अखबार के एक बिजनेस पत्रकार के अनुसार इस बार कश्मीर घाटी से ठंड के लिए आर्डर नहीं के बराबर आए।
कश्मीर घाटी में लोगों का बेखौफ स्वतंत्रतापूर्वक घरों से बाहर निकलना-घूमना अभी भी सामान्य नहीं हो सका है। अलगाववादी, आतंकवादियों के साथ ही सेना, सुरक्षा बलों और पुलिस का खौफ बना रहता है। पुलिस, सुरक्षा बलों और सेना के जवान और उनकी बख्तरबंद गाड़ियां चप्पे चप्प पर तैनात हैं। एक पत्रकार बताते हैं कि कश्मीर घाटी में आबादी से अधिक पुलिस सुरक्षाबलों और सेना के जवान ही दिखाई पड़ते हैं। इसे
खौफ कहें या प्रतिरोध लोग अपने घर और दुकानें आमतौर पर बंद रखते हैं। जरूरत के मुताबिक ही उनके दरवाजे और शटर खुलते हैं। अलगाववादियों के साथ ही राजनीतिक दलों के नेता-कार्यकर्ता, युवक, नाबालिग बच्चे भी या तो गिरफ्तार-नजरबंद हैं या घरों में दुबके रहते हैं। उनके दुख दर्द और रोजमर्रा की मुसीबतों से जुड़ी सूचनाएं बाहर नहीं जा पा रही हैं। उनके लिए राहत की बात सिर्फ एक ही है कि आम तौर पर भी वे लोग सर्दियों से पहले अगले कुछ महीनों के लिए राशन पानी और रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुओं का भंडार जमा कर लेते हैं क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण राजमार्ग बंद से हो जाने से वाहनों की आवाजाही बंद सी हो जाती है। इस समय वही भंडार उनके काम आ रहा है जिसे मिल बांटकर वे काम चला रहे हैं।

मीडिया कर्मियों का दर्द और आक्रोश

मीडिया का हाल भी बुरा है। जम्मू और श्रीनगर में भी हवाई अड्डे के पास या सुरक्षित इलाकों में मुख्यालय वाले इलाकों से कुछ अखबार छप पा रहे हैं। कुछ टीवी चैनलों का प्रसारण भी हो रहा है लेकिन सबके लिए अधिकतर समाचारों का श्रोत सरकारी विज्ञप्तियां ही होती हैं। तीन अक्टूबर, गुरुवार को श्रीनगर में तमाम पत्रकार संगठनों, वीडियो जर्नलिस्टों, फोटोग्राफर्स और कैमरामैन्स और संपादकों ने कश्मीर प्रेस क्लब से लेकर लाल चौक पर स्थित प्रेस एन्क्लेव तक शांतिपूर्ण मौन जुलूस निकाला। पत्रकार मीडिया के लिए पहले जैसी
टेलीफोन और इंटरनेट की सुविधाएं बहाल करने, मीडिया कर्मियों के लिए स्वतंत्र एवं भय मुक्त आवाजाही सुनिश्चित करने की मांग कर रहे थे। उनका आरोप है कि सरकार घाटी से स्वतंत्र सूचनाएं बाहर नहीं जाने देना चाहती। हिन्दुस्तान टाइम्स के जम्मू संस्करण में मीडियाकर्मियो के मौन जुलूस के बारे में प्रकाशित सचित्र समाचार के अनुसार श्रीनगर में मीडिया फेसिल्टेशन सेंटर में 400 पत्रकारों के लिए 9 कंप्यूटर और एक मोबाइल फोन की सुविधा उपलब्ध है। नेट की सुविधा धीमी है। लिहाजा पत्रकारों को नेट ऐक्सेस और मोबाइल फोन सुविधा के इस्तेमाल के लिए कतारबद्ध होकर लंबा इंतजार करना पड़ता है। मौन जुलूस में शामिल पत्रकारों के हाथों में लगे प्लेकार्डों पर लिखा है, ‘जर्नलिज्म इज नाट क्राइम’ यानी पत्रकारिता अपराध नहीं है और ‘स्टाप कम्युनल जर्नलिज्म, एंड इन्फार्मेशन क्लैम्पडाउन’ आदि। पत्रकारों ने सरकार को ज्ञापन देकर जानना चाहा कि यह हालत कब तक बनी रहेगी। कब तक उन्हें सिर्फ सरकारी सूचनाओं, आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियों, यदाकदा होनेवाली एकल संवादवाली प्रेस कान्फ्रेंसेज पर आधारित पत्रकारिता करनी होगी।
कुल मिलाकर कश्मीर घाटी और जम्मू क्षेत्र के अधिकतर इलाकों में हालात अच्छे तो क्या कहें, सामान्य भी नहीं हैं। सरकार भी लगातार यही कह रही है कि वहां हालात तेजी से सुधर रहे हैं। सुधर तभी रहे होंगे जब अच्छे नहीं होंगे!

(नोट: यह संस्मरणात्मक रिपोर्ताज मामूली संपादन के साथ आज के’देशबंधु’ अखबार में प्रकाशित।)






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