‘नीतीश शाह’ को जनता ने कहा, राम-राम

—— वीरेंद्र यादव ———–
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपचुनाव में जनता ने नकार दिया है। भाजपा और लोजपा के कंधे पर सवार होकर भी नीतीश कुमार विधान सभा की अपनी तीन सीटों को नहीं बचा सके। दरौंदा में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जदयू को ठेंगा दिया। जिस निर्दलीय उम्मीदवार व्यास सिंह को भाजपा ने पार्टी से निष्कासित कर दिया था, वही व्यक्ति जदयू का सुपड़ा साफ करने सफल रहे। हालांकि नाथनगर में अतिपिछड़ा वोटों ने नीतीश की लाज रखी और वही सीट बचाने में जदयू सफल रहा।
उपचुनाव के बीच में ही भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि 2020 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार एनडीए विधान सभा चुनाव लड़ेगा और सीएम के उम्मीदवार नीतीश कुमार ही होंगे। इसके बाद भाजपा के अंदर नीतीश के खिलाफ उठ रही आवाज थम गयी थी। इसके बावजूद एनडीए विधान सभा उपचुनाव की पांच सीटों में से चार पर पराजित हो गया। इन पांच में चार सीट पहले जदयू के पास ही थी, जबकि किशनगंज पर कांग्रेस का कब्जा था। इस बार इस सीट पर ओवैसी की पार्टी ने जीत दर्ज कर विधान सभा में प्रवेश पा लिया है। 
अमित शाह द्वारा नीतीश कुमार को 2020 का कप्तान मान लेने के बाद माना जा रहा था कि नये सामाजिक ध्रुवीकरण में बिहार में एनडीए को हराना मुश्किल हो गया है। लेकिन दरौंदा में भाजपा कार्यकर्ताओं ने ही जदयू को हरा दिया। इसकी दूसरी व्याख्या है कि अमित शाह द्वारा नीतीश को नेता मान लिये जाने के बाद मुसलमान वोटरों का नीतीश को लेकर संशय की स्थिति दूर हो गयी और उसने नीतीश को पूरी तरह छोड़ दिया। इसके साथ ही नित्यानंद राय के कारण यादवों का एक बड़ा तबका भाजपा की ओर देख रहा था, नित्यानंद की विदाई के बाद उसका भी भाजपा से मोहभंग हो गया। यही कारण है कि बेलहर और सिमरी बख्तियारपुर में यादव वोटरों ने राजद के पक्ष में जबरदस्त मतदान किया। इसका फायदा राजद को हुआ। नाथनगर में भी राजद ने जदयू के उम्मीदवार का पसीना छोड़ा दिया।
दरअसल अमित शाह के स्पष्टीकरण के बाद यह तय हो गया है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बिहार के प्रशासनिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप बढ़ायेगा और नीतीश कुमार के पास उसे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। धारा 370, तीन तलाक जैसी मुद्दों पर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की चुपी ने उन्हें अपने ही आधार वोटों में अविश्वसनीय बनाया है। नीतीश कुमार सरकार चलाने के संकट से जरूर उबर गये हैं, लेकिन विश्वास बचाने का संकट उनके समक्ष खड़ा हो गया है। इस विश्वास के संकट से नीतीश कैसे उबरेंगे, यही 2020 का भविष्य तय करेगा।






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