मुझे कश्मीर में प्लॉट नहीं, कश्मीरी दोस्त चाहिये
पुष्यमित्र
आजकल कभी कभी मन होता है कि हर मुद्दे पर क्यों बोला जाये। अपनी राय जाहिर करते रहना कोई जरूरी है क्या? और क्या लोग मेरी भावनाओं को समझ भी पायेंगे। कहा जाता है कि अगर आसपास ज्यादातर लोग नशे में टुल्ल हो तो बजाय इसके कि लोगों को समझाया जाये, खुद ही एक पैग चढ़ा लेना अधिक समझदारी का काम है। मगर फिर कबीर याद आ जाते हैं।
आज जब कश्मीर में फौज की टुकडियां भर कर कश्मीर भंग कर दिया गया और धारा 370 को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी तो अनायास ही गांधी याद आ गये।
जब मैं स्कूल में था तो किताब के पिछ्ले पन्ने पर गांधी जी का जन्तर छ्पा होता था। उसमें लिखा होता था कि अगर किसी भी फैसले के वक़्त भ्रम की स्थिति हो तो यह देख लेना चाहिये कि तुम्हारे इस फैसले से उस व्यक्ति पर क्या असर पड़ेगा जो सबसे गरीब इन्सान है। मतलब वे हर फैसले को निर्धनतम और संसाधन हीन व्यक्ति की कसौटी पर कसना चाहते थे।
अब इस फैसले के बाद जब मेरी टाईम लाईन मुबारकबाद और घटिया चुटकलों से भरी है। जब कई समझदार लोगों को इस फैसले को सही बताता देख रहा हूं तो अनायास ही यह सवाल मन में आता है कि क्या कश्मीर का आवाम इस फैसले से खुश होगा?
आप और हम आज भले डल झील में छठ मनाने या गुल्मर्ग में प्लॉट खरीदने की बातें कर लें, मगर ज्यादातर लोगों के लिए यह सिर्फ जुबानी चकल्लस होगी। हमारे लिए अमूमन इस बात का कोई मतलब नहीं है कि कश्मीर में 370 रहे या जाये। हमारा जीवन जैसा इस फैसले के पहले था, वैसा ही इस फैसले के बाद भी रहेगा। इस मसले पर हम बस तमाशाई हैं। मगर घाटी के हर व्यक्ति का जीवन इस फैसले के बाद प्रभावित होगा। हर इन्सान इस खबर के बाद खुद को थोड़ा कुचला हुआ महसूस कर रहा होगा।
मगर हम कश्मीरीयों की परवाह क्यों करें। वे तो आतंकवादी हैं, देश विरोधी हैं, गद्दार हैं। पाकिस्तान परास्त हैं। वे खत्म हो जायें, बला से। हमें क्या। उन्होने जब कश्मीरी पण्डितों को वहां से जबरन खदेड़ दिया था, तब क्या हुआ था। वे तो इसी लायक हैं कि उन्हें दबाकर, गुलाम बना कर रखा जाए।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपके लिहाज से यह फैसला बिल्कुल सही है । पर मैं ऐसा नहीं सोचता। क्यों? क्योंकि चर्चिल एक वक़्त में ठीक ऐसा ही हमारे बारे में, हिन्दुस्तान के बारे में सोचता था। मगर उसकी सोच गलत थी, यह हमने साबित किया।
मगर अब, आजादी के सत्तर साल बाद हम ठीक उसी तरह सोचने लगे हैं, जैसा कभी साम्राज्यवादी अंग्रेज सोचते थे। अब हमें लगने लगा है कि इस दुनिया में सर्वशक्तिमान बनने का यही तरीका है। जो आपसे असहमत है उसे कुचल दो। आगे बढ़ो।
हम कश्मीर तो चाहते हैं, मगर कश्मीरीयों को नहीं चाहते। हम कश्मीर पर हिन्दुस्तान का पूरा अधिकार चाहते हैं। मगर हमने अपने इतिहास में कभी ऐसा नहीं सोचा कि हम एक ऐसा हँसता खेलता मुल्क बने कि कश्मीर क्या, पाकिस्तान भी हमारा हिस्सा बनने के लिए तरसे। अनुरोध करे कि हमें हिन्दुस्तान में शामिल कर लीजिये।
कश्मीर तो 70 साल से हमारे साथ है। हम कभी कश्मीरीयों को यह अहसास नहीं दिला पाये कि यह तो तुम्हारा अपना मुल्क है। ऐसा वतन कहां मिलेगा। हम तो इस मामले में रावण जैसा धैर्य भी नहीं दिखा पाये कि सीता की हां का इन्तजार करते। हमने जमीन जीतने पर फोकस किया, दिल जीतने की कोशिश नहीं की।
मुझे अशोक की याद आती हैं। कलिंग युद्ध के बाद उसने तय किया था कि वह अब सिर्फ धम्म विजय करेगा। आज पूरे ऐशिया में बौद्ध धर्म का पताका लहरा रहा है। चीन, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, कम्बोडिया, श्रीलंका, म्यांमार इन सब मुल्कों की बड़ी आबादी के गुरु बुद्ध हैं। हजारो साल से हैं। भौगोलिक साम्राज्य मिटते हैं और बनते हैं। मगर दिल पर बने साम्राज्य हमेशा बरकरार रहते हैं।
मगर अशोक एक ही था। गांधी एक ही थे। बुद्ध एक ही थे। जब तक मनुष्यता रहेगी, इनके विचार जगमगाते रहेंगे। मेरे जैसे इंसानों को प्रचलित मगर अनुचित बातों के खिलाफ विचार प्रकट करने की हिम्मत देते रहेंगे। मैं असहमत हूं। आपकी खुशी, आपके अश्लील चुटकलों में शामिल नहीं हूं। मुझे कश्मीर में प्लॉट नहीं चाहिये, मुझे कश्मीरी दोस्त चाहिये। कि जब कभी श्रीनगर या गुलमर्ग जाऊं तो मेरे दोस्त का दरवाजा मेरे लिए खुला रहे।
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed