ईशा मुहम्मद की पहल पर हो रहा शिव व जानकी मंदिर का जीर्णोद्धार
सुनील कुमार मिश्र (हथुआ)
समाज में आपसी अविश्वास व नफरत के बढ़ते माहौल के बीच उचकागांव प्रखंड की महैचा पंचायत स्थित अंबिका क्षेत्र समाजिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। इस पंचायत के लोग भाईचारा के साथ रहते हैं। साथ ही धार्मिक व सामाजिक आयोजन मिल-जुल कर करते हैं। बेशक धर्म व संप्रदाय अलग है, लेकिन भाईचारा सब पर भारी है। इस गांव में स्थित हथुआ राज के प्राचीन शिव मंदिर व राम जानकी मंदिर का कायाकल्प गांव के एक मुस्लिम श्रद्धालु ईशा मुहम्मद गद्दी की पहल पर हो रहा है। ईशा पेशे से अधिवक्ता हैं। जिन्होंने इन दोनों मंदिर के कायाकल्प की जिम्मेवारी उठायी है। पूरी तरह खंडहर हो चुके इन दोनों मंदिरों को अपने पुराने रूप में लाने के लिए ईशा के नेतृत्व में ग्रामीणों की एक कमिटी गठित की गयी। कमिटी में शामिल राज नारायण सिंह, आनंद सिंह, डा. गौरी शंकर, राजरीख सिंह, ललन चौहान आदि के नेतृत्व में जनसहयोग से मंदिर को सजाया-सवारा गया। ईशा की प्रेरणा पर बड़ी संख्या में लोग मंदिर से जुड़ कर मंदिर के विकास में अपना सहयोग दे रहे हैं।
हथुआ राज ने दी आठ प्रतिमाएं
ईशा मुहम्मद की पहल पर हथुआ राज परिवार ने इस मंदिर में आठ प्रतिमाएं स्थापित की है। हथुआ महाराज बहादुर मृगेन्द्र प्रताप साही ने बताया कि मुस्लिम श्रद्धालु ईशा की मांग पर आठ प्रतिमाएं मंदिर कमिटी को सौंपी गयी है। जिसमें मां अंबिका भवानी, श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण, महावीर की दो, गणेश तथा नंदी की दो प्रतिमाएं शामिल हैं। इसके अलावा शंकर, पार्वती की प्रतिमा निर्माणधीन है। ईशा के नेतृत्व में दर्जनों ग्रामीण गाजे-बाजे व भजन-कीर्तन के साथ हथुआ पैलेस पहुंच कर प्रतिमाओं को राज परिवार से ग्रहण किया। अब प्राण प्रतिष्ठा के बाद महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा। जिसके बाद इस प्राचीन मंदिर में नियमित पूजा अर्चना शुरू कर दिया जाएगा।
अष्टधातु की प्रतिमा हुई थी चोरी
इन दोनों प्राचीन मंदिर में स्थापित अष्टधातु की कीमती प्रतिमाएं वर्षो पहले चोरी हो गयी थी। बताया जाता है कि हथुआ राज के स्व. महाराज गुरू महादेव आश्रम प्रसाद साही राज-पाट छोड़ कर सन्यासी बन गए थे। बाद में अंबिका स्थान पर अपना निवास बना कर रहने लगे। साथ ही मंदिर की देख-रेख करने लगे। वर्ष 1951 में उनके निधन के बाद मंदिर उपेक्षित हो गया था।
ईशा कहते हैं इंसानियत है सबसे बड़ा धर्म
ईशा कहते हैं कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। ईश्वर व अल्लाह तथा वेद व कुरान एक ही है। बस इबादत का तरीका अलग-अलग है। कोई जाति व धर्म हो, सब एक ही है।
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