भोरे में रामाश्रय मर्डर कांड : रंगदारी देकर कोल्डस्टोरेज बनवाने थे, नए धंधे में नहीं दे रहे थे रंगदारी
कार्यालय संवाददाता. बिहार कथा. गोपालगंज. जब बिहार का विकास सुस्त था, बिजली नहीं थी. गोपालगंज में किसानों को अपनी आलू की उपज रखने के लिए कोल्डस्टोरेज नहीं थे. तब गोपालगंज के भोरे के हरिहर कुशवाहा के छोटे भाई रामाश्रय कुशवाहा ने कोल्ड स्टोरेज बनाया था. इसके लिए भी रंगदारी देनी पडी. गैस एजेंसी चल ही रही थी. पेट्रोल पंप खोला तो भी रंगदारी दिए थे. दो दिन पहले नया पेट्रोल पंप खुला और एक मल्टीप्लेक्स बनवा रहे थे. उनके निजी धंधे से कितने लोगों को रोजगार का अवसर उपलब्ध हुए. बस लास्ट वाले धंधे पर मल्टीप्लेक्स जो बनवा रहे थे और पेट्रोल पंप शुरू किए थे इसी में रंगदारी नहीं दिए थे और जान चली गई. देर शाम तब भोरे में तनाव बना रहा. पुलिस ने पडोसी राज्य यूपी से भी पुलिस फोर्स मदद के लिए बुला ली. मर्डर किसने किया अभी पता नहीं. लेकिन कुशवाहा की दुश्मनी किससे थी. आइए एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं.
नयागांव तुलसिया के संतीश पांडे नए नए उभरे हुए थे. दबदबा शुरू हो गया था. एक बार पुलिस के एनकाउंटर में भोरे में ही घेर लिए गए. तब वहां के बडे सुरमा थे विद्या खांव. यह बात गौरतलब है कि भारे में खांव सरनेम लिखने वाले भूमिहार समाज के लोग हैं. विद्या खांव ने अपने समाज के लोगों को लेकर सतीश पांडे को बचाया था. मतलब जहां पुलिस एनकाउंटर करने वाली थी, पुलिस के इस एजेंडे को ध्वस्त कर सतीश पांडे के खास हो गए थे. विद्या खांव के बूची खांव भी कम प्रभावशाली नहीं रहे. लेकिन उनके कई धंधे हैं. लेकिन अपराध मुख्यधारा का धंधा नहीं रहा. खांव साहब के परिवार में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अपनी एक जमीन एक गोड समाज के व्यक्ति को बेच दिया. उसके भी हालात बदले तो गोंड समाज के उस व्यक्ति खांव साहब से खरीदी अपनी वह जमीन कुशवाहा के हाथों बेच दी. उसी जमीन पर तो मल्टीप्लेक्स बन रहा था. मतलब समाज के एक दबदबे परिवार की जमीन ट्रांसफर होते होते एक नए नए प्रभावशाली होते कुशवाहा के हाथों में आई.वह मल्टीप्लेक्स बनवा लेते तो क्या होता. कितने लोगों को रोजगार का अवसर मिलता. रोजगार का अवसर उपलब्ध कराना एक पक्ष है, लेकिन एक दूसरी सच्चाई यह भी है कि समाज में पिछडा कहे जाने वाले रामाश्रय कुशवाहा अभिजात्य जाति से भले ही सामाजिक रूप से मजबूत नहीं हो रहे हैं लेकिन आर्थिक रूप में मजबूत होने की राह पर थे. यदि कोई पिछडा ऐसा करता है तो सबसे ज्यादा किसकी आंखों में खटकता है.
गोपालगंज में होने वाले अपराध का एक तीसरा पक्ष यह भी है कि आमतौर पर जब कोई मर्डर या बडी अपराधिक वारदात होता है तो अनेक लोग दबी जुबान से सतीश पांडे का नाम उससे जोड देते हैं. ये लोग जाने अनजाने में सतीश पांडे के हनक को बरकरार रखने का काम करते हैं, जिससे खौफ का बाजार कायम रहे. लेकिन गोपालगंज में एक हकीकत यह भी है कि पिछले एक एक डेढ दशक में बेरोजगार नई पीढी की एक बडी फौज अपराध की धारा से जुड चुकी हैं. दबंगई उनका पैशन बन गया है. वे अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के लिए झट से मर्डर तक करने में नहीं हीचक रहे हैं. ये जिस जाति समाज से आते हैं, उस जाति के समाज इतरा कर उनका हौसला बढाते हैं. पुराना उदाहरण सतीश पांडे का है. ताजा उदाहरण नयागांव वाले अमित सिंह उर्फ फौजी का है. जिस तरह से सतीश पांडे पर गोपलगंज का ब्राह्मण समाज इतराता है, उसी तरह से अमित पर भी उसकी जाति समाज के लोग इतरा रहे थे. फिलहाल कुशीनगर एनकाउंटर में लगी टांग में गोली के बाद वह जेल में हैं. इसलिए रामाश्रय कुशवाहा का मर्डर किसने किया, यह तुरंत कहना बहुत मुश्किल है. पुलिस तो हर मामले की तरह इसमें भी जांच ही तो करेगी. अभी देखते जाइए, गोपालगंज में आने वाले दिनों में होता क्या क्या है!
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