बच्चे मरते हैं, मरने दें, आपको क्या? रसगुल्ला खाइए भाई!
– नवल किशोर कुमार
का सच्चो में लीची खाने से ही लइकन सब मरा है मुजफ्फरपुर में नवल भाई? बड़ा हल्ला सुन रहे हैं।
आपका क्या कहना है बुधनमा भाई?
हम का कहेंगे। जो अखबार वाला और टीवी वाला सब बोलता है, ओही तो कह रहे हैं। और जानते हैं कल तो बड़का धमाका हो गया। मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में ढेर सारा लाश मिला। इंसान का हड्डी था बिखरा हुआ। हम्मर तो माथा ही खराब हो गया सब देख के। आप जानते हैं कि नहीं इस बारे में?
भाई बुधनमा, आपकी यही समस्या है। एकदम नीतीशे कुमार हो गए हैं। एगो बात खत्मो नहीं करते हैं आउर दूसरा लाद देते हैं।
ठीक है त पहले वाला मामला सॉल्व करिए कि लीची खाए से लइकन सब मरा है कि झूठ बात है।
देखिए बुधनमा भाई। लइकन सबके मौत के पीछे लीची जिम्मेदार है कि नहीं, यह जांच का विषय है। हो सकता है कि लीची खाने से नहीं बल्कि बगान में लीची जब तोड़ा जाता है तब जो कचरा इकट्ठा होता है और उसके कारण कुछ तत्व होते होंगे जिससे इंसेफलाइटिस का कीड़ा फैलता होगा। काहे से कि लीची खाने से मौत होती तो यह पूरे बिहार में होता। अब तो दिल्ली में भी खूब लीची बिकता है। यहां भी लइकन सब बीमार पड़ता। सो एगो बात तो है कि लीची खाए से बीमारी नहीं होता है। इसका कारण लीची के पत्ते आदि हैं। लेकिन यह भी जांच का विषय है।
हां, इ बात तो आप ठीके कह रहे हैं। पटना के मुसल्लहपुर हाट गए थे कल हम। वहां लीची का कचरा देखे। वहां तो सैंकड़ों ट्रक लीची उतरता है। पूरा बाजार बदबू दे रहा था। उ तो पटना में है इसलिए डेली सब साफ कर देता होगा। नहीं तो मुजफ्फरपुर में का हालत होगा, कौनो समझ सकता है।
लेकिन नवल भाई, इसका इलाज क्या है? ऐसे ही लइकन सब हर साल मरते रहेगा?
बुधनमा भाई, मेरा विचार तो है कि राज्य सरकार को अगले पांच वर्ष तक बिहार में लीची के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। देखा जाय कि क्या फर्क पड़ता है। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि मुजफ्फरपुर के सब सवर्ण ऐसा होने नहीं देगा। लीची में सबके जान बसल है। गरीब के लइकन मरता है तो मरे।
आप क्या कह रहे हैं नवल भाई। लइकन सब मरता रहे, ऐसा कौन सरकार चाहेगी?
भाई बुधनमा, वर्ष 2007 से हम पत्रकार हैं। तब से देख रहे हैं कि मुजफ्फरपुर में बच्चे मर रहे हैं। हर बार नीतीश कुमार और उनकी सरकार अफसोस जताती है। लेकिन करती कुछ नहीं है। मुजफ्फरपुर की जनता भी कम लतखोर थोड़े न है। देखे नहीं वहां का एगो भूमिहार ब्रजेश ठाकुर कैसे पाप किया बच्चियों के साथ और उसके पाप में बिहार सरकार के मंत्री व अधिकारी तक शामिल रहे। मुजफ्फरपुर का चरित्र ही सामंती है।
नवल भाई, आप तो खिसिया गए। कोई जिला कैसे सामंती हो सकता है। हां, वहां भूमिहार-ब्राह्मण सब आगे है। दलित-पिछड़ा आज तक दलित-पिछड़ा है। लेकिन इसके लिए तो लालू यादव-नीतीश कुमार आदि भी जिम्मेदार हैं। सब के सब मुजफ्फरपुर में सामंती ताकतों को हवा देते रहे हैं। एगो कौन था उ मुन्ना शुक्ला और उ आनंद मोहन सब के सब तो वहीं का गुंडा-लखेरा था।
हां जानता हूं। लेकिन यह सच है बुधनमा भाई कि मुजफ्फरपुर जिला का चरित्र ही सामंती है। जानते हैं वहां आज भी भूमिहार-ब्राह्मण कॉलेज है। एगो लंगट सिंह कॉलेज है। जिस जिले के कॉलेजों का नाम इस तरह का होगा, उसका चरित्र सामंती होवे न करेगा। खैर आ जादे समय नहीं है इसलिए आपके दूसरे सवाल का जवाब देता हूं। आपने कहा कि एसकेएमसीएच में लाशें मिली। तो कल दिलचस्प घटना हुई।
क्या हुआ?
होना क्या है भाई बुधनमा। हमको खबर मिली कि एसकेएमसीएच में लाशें मिली हैं तो पहले तो हमको लगा कि कोई अफवाह फैला रहा है। अब हम ठहरे पत्रकार आदमी तो लगे खोजे ऐसन आदमी के जो पुष्टि करे कम से कम। दो-तीन दोस्त सब हैं मुजफ्फरपुर के। उन सबको फोन मिलाया। किसी से बात नहीं हो सकी। फिर मैंने से सोचा कि काहे नहीं सरकारी अधिकारियों से ही पूछ लिया जाय। तो हम लगा दिए मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन को फोन। बड़े सीधे आदमी हैं डा. शैलेश प्रसाद सिंह। फोन उठा लिए। मेरे सवाल के बाद उन्होंने कहा कि – “सर, हम तो नहीं जानते हैं इस घटना के बारे में। अभी हम थोड़ा बाहर हैं सर। लेकिन का सच्चो में लाश मिला है सर। बाप रे बाप। सर हमको थोड़ा समय दें। हम पता करके बताते हैं। ”
फिर क्या हुआ नवल भाई? कुछ बोले सिविल सर्जन साहब?
हां, बेचारे सिविल सर्जन ने अपने से फोन किया और उन्होंने नरकंकाल मिलने की पुष्टि की। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि एसकेएमसीएच प्रत्यक्ष तौर पर जिला प्रशासन के अधीन नहीं आता है। उसकी देखरेख की जिम्मेदारी प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय की है। इसलिए वे इस संबंध में अधिकृत तौर पर कोई जानकारी नहीं दे सकते हैं।
अब एकर का मतलब हुआ? सिविल सर्जन तो जिला के मेडिकल का हेड होता है।
हां भाई बुधनमा। बिहार में नीतीश कुमार है तो सब मुमकिन है। ऐसहीं होता है बिहार में। थाना की सीमा को लेकर तो विवाद होता ही रहता है। अब एगो बेचारा सीधा आदमी है डा. शैलेश प्रसाद सिंह। उसको क्या दोष देना।
फिर क्या हुआ नवल भाई?
मामला साफ नहीं हो रहा था कि कितने लोगों का नरकंकाल और लाशें मिली हैं और वे कौन लोग थे। तो मैंने एसकेएमसीएच के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को फोन मिलाया। तब उन्होंने भी नरकंकाल मिलने की घटना की पुष्टि की और सफाई देते हुए कहा कि लाशों की अंत्येष्टि की जिम्मेवारी जिला प्रशासन की होती है। उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि एसकेएमसीएच में आसपास के कई जिलों से दुर्घटना आदि में मरे लोगों की लाशें तथा लावारिस लाशें अंत्यपरीक्षण के लिए लायी जाती हैं। इसके अलावा अस्पताल में भी लावारिस वार्ड है जहां लावारिस मरीजों का इलाज किया जाता है। दुर्घटना के कारण मरे लोगों की लाशें तथा इलाज के दौरान मरे लावारिस मरीजों की लााशें अंत्यपरीक्षणोपरांत पुलिस को 72 घंटे के अंदर सुपूर्द कर दिया जाता है। साथ ही अस्पताल के रोगी कल्याण समिति की ओर से प्रति लाश दो हजार रुपए का भुगतान भी अंत्येष्टि के लिए जिला प्रशासन को दिया जाता है।
इतना सारा बात सुपरिटेंडेंट बिना कुछ कहले बता दिया। फिर मैंने पूछा कि कसूरवार कौन है? जो उनका जवाब था कि ये नरकंकाल उस इलाके में मिले हैं जहां पोस्टमार्टम हाउस है। यह इलाका जिला प्रशासन के अधीन आता है। अस्पताल प्रशासन का काम पोस्टमार्टम करना है। लाशों की अंत्येष्टि की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है।
अच्छा एगो बात बताइए नवल भाई कि दारू वाला कानून में लिखा है नीतीश कुमार ने कि यदि किसी के घर में दारू के बोतल मिल जाएगा तो उसका घर सीज कर लिया जाएगा, पूरे परिवार को (लइकन , औरत और बुढ़ा सबके छोड़के) जेल में डाल दिया जाएगा। फिर जब एतना बड़का कांड हो गया। डेढ़ सौ से अधिक लइकन सब इंसेफलाइटिस से मर गया, सौ अधिक लोगों का नरकंकाल और लाश मिला है मुजफ्फरपुर में। नीतीश कुमार और उनके अफसर सब को जेल में डाल नहीं देना चाहिए?
धत्त…. ऐसा थोड़े होता है। नीतीश कुमार राजा आदमी है। कानून गरीब आदमी के लिए होता है। छोड़िए देखिए कि लीची के कारण बच्चों की मौत हो रही है और इ नीतीश कुमार कैसे उनकी मरनी के भोज खा रहे हैं?
(तस्वीर पुरानी है और फोटोशाप्ड यानी लैपटॉप पर पकावल है, पाठकों के मनोरंजन के लिए है। बिहार सरकार के लिए बच्चों की मौत किसी मनोरंजन से कम थोड़े न है।)
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