रोहित बेमुला से डॉ पायल तक जाति उत्पीड़न की कथा

“देश में जातिवाद ख़त्म हो गया है!”; “जातिवाद सिर्फ़ ग्रामीण इलाक़ों में होता है, शहरों से ये एकदम ग़ायब हो चुका है।” ; “सिर्फ़ अनपढ़ लोग जातिवाद को बढ़ावा देते हैं, शिक्षित लोगों के मन में जातीय भावना नहीं है।” ऐसी तमाम बातें कहने वाली जनता को मुंबई के हॉस्पिटल की एक घटना ने आईना दिखा दिया है। एक आईना, जिसमें अपनी तस्वीर बेहद बदसूरत लग सकती है, लेकिन यही सच्चाई भी है।
भारत जो कि हमेशा से एक जातिवादी मुल्क की तरह काम करता आ रहा है, वहाँ तमाम तब्दीलियों के बावजूद आज भी कई चीज़ें और मान्यताएँ ऐसी हैं जो न सिर्फ़ लोगों के ज़ेहन में मौजूद हैं, बल्कि एक हिंसात्मक प्रवृत्ति के साथ काम कर रही हैं। इस दशक में ये जातीय हिंसा की घटनाएँ लगातार बढ़ी हैं, और जिस “पढ़े-लिखे” तबक़े का हम दंभ भरते नहीं थकते हैं, उसी पढ़े-लिखे तबक़े ने इसे बढ़ावा देने का काम किया है। एक सिलसिला जो जातीय भेदभाव से जूझ रहे हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला से शुरू हुआ था, वो आज मुंबई के एक अस्पताल की रेज़िडेंट डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या तक पहुँच गया है। इन दोनों आत्महत्याओं के बीच में कई ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जो सीधे तौर पर जातीय भेदभाव, जातीय हिंसा को उजागर करती हुई, और जातिवाद का आक्रामक लहजे में जश्न मनाती हुई दिखती हैं।

क्या है पूरी घटना?

घटना है 22 मई की। मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल और टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की पोस्ट ग्रेजुएशन द्वितीय वर्ष की एक छात्रा डॉक्टर पायल तड़वी ने अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ख़ुदकुशी की तारीख़ को दोपहर में पायल ने एक सर्जरी की थी, और उस दौरान उन्हें किसी उलझन में नहीं देखा गया था। जब उनकी दोस्तों ने उन्हें फ़ोन किया तो कोई जवाब नहीं मिला। रात को जब वे लोग उनके कमरे में पहुँचे तो दरवाज़ा बहुत देर तक नहीं खुला। हड़बड़ी में जब सिक्योरिटी गार्ड को बुला कर दरवाज़ा तोड़ा गया तो देखा गया कि डॉक्टर पायल ने अपने कमरे के पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी।

पायल आदिवासी समुदाय से आती थीं। और आरक्षण के तहत उनका इस कॉलेज में दाख़िला हुआ था। पायल की मौत के बाद उनके परिवार ने बयान जारी करते हुए कहा कि उनकी बेटी जातीय भेदभाव की शिकार थी। पायल की माँ ने बताया है कि पायल की तीन सीनियर डॉक्टर, जिनके नाम डॉ हेमा आहूजा, डॉ भक्ति महिरे और डॉ. अंकिता खंडेलवाल हैं, वे तीनों पायल को उनकी जाति की वजह से लगातार तंग करती थीं और प्रताड़ित करती थीं। उन तीनों डॉक्टरों पर महाराष्ट्र पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कर ली है। तीनों डॉक्टर फ़िलहाल फ़रार हैं, लेकिन पुलिस ने कहा है कि वो उनके परिवार से पूछ-ताछ कर रही है, और जल्द ही वे तीनों पुलिस कि हिरासत में होंगी। अग्रिपाड़ा क्षेत्र के एसीपी दीपक कुंदल ने कहा है, “हमने तीनों आरोपियों के ख़िलाफ़ एससी/एसटी एट्रोसिटीज़ एक्ट, एंटी रैगिंग एक्ट, आईटी एक्ट और आईपीसी की धारा 306, आबेटमेंट ऑफ़ सूसाइड के तहत एफ़आईआर दर्ज कर ली है। बाक़ी कार्रवाई चल रही है।”

पायल ने कॉलेज में 1 मई 2018 को दाख़िला लिया था, जिसके कुछ समय बाद से ही उन पर सीनियर डॉक्टरों द्वारा रैगिंग का सिलसिला शुरू हो गया था। पायल की माँ ने बताया है, “वो जब भी मुझे फ़ोन करती थी तो बहुत परेशान रहती थी। उसने अपनी तीनों सीनियर डॉक्टरों के बारे में कहा था कि वो उसे उसकी जाति की वजह से प्रताड़ित करती हैं।”
घटना के बाद एमएआरडी ने तीनों आरोपी डॉक्टरों को तुरंत अस्पताल से निष्कासित कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि वो सभी पीजी मेडिकल कॉलेजों में एटी रैगिंग कमेटी का गठन कर रहे हैं। एनवाईएल अस्पताल के डीन रमेश भरमाल ने कहा है कि कमेटी जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।

बताया गया है कि तीनों डॉक्टरों ने पायल को लगातार उनकी जाति की वजह से उन्हें प्रताड़ित करने का सिलसिला 2018 से ही शुरू कर दिया था। सोशल मीडिया पर उनके व्हाट्सएप चैट का एक स्क्रीनशॉट फैल गया है, जिसमें साफ़ तौर पर नज़र आ रहा है कि तीनों डॉक्टरों ने किस क़दर पायल को लगातार प्रताड़ित किया था, जिसकी वजह से वो आत्महत्या करने की स्थिति तक पहुँच गईं। चैट में उन डॉक्टरों द्वारा पायल से कहा गया है, “तुम डिलीवरी मत किया करो, तुम बच्चों को अपवित्र कर देती हो।”

पायल की माँ ने 10 मई को कॉलेज प्रशासन को पायल पर हो रहे मानसिक उत्पीड़न की शिकायत भी की थी, जिसके बारे में पायल के परिवार का कहना है कि प्रशासन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।  चिट्ठी सोशल मीडिया पर फैल गई है। चिट्ठी मराठी में है, जिसमें पायल पर लगातार हो रहे जातीय हमलों, मासिक उत्पीड़न, रैगिंग का ज़िक्र किया गया है।

पायल की माँ जो कि कैंसर की मरीज़ हैं, उन्होंने बताया है कि वो जब भी बीवाईएल अस्पताल में अपने चेकअप के लिए जाती थीं, तो तीनों डॉक्टर, अंकिता, हेमा और भक्ति पायल को उनसे मिलने नहीं देती थीं।

हालांकि इस शिकायत के बारे में कॉलेज प्रशासन का कहना है कि पायल की माँ ने ऐसी कोई शिकायत प्रशासन के सामने नहीं की थी। अगर की होती तो कॉलेज प्रशासन इसका संज्ञान ज़रूर लेता।

पायल के पति सलमान तड़वी ने कहा है कि वो पायल की आत्महत्या के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं।
आज के समय में जब जातिवाद के विरोध में लगातार प्रदर्शन, बहस और चर्चा हो रही है; आज जब ये कहा जा रहा है कि जातिवाद ख़त्म हो चुका है, वहाँ जातीय प्रताड़ना पर किसी का चुप्पी साध लेना और जान दे देना, ये एक डरावना क़दम है, और परेशान वाला है।

डॉक्टर पायल की मौत के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। जिसके साथ ही उसी कॉलेज की पायल की दोस्तों ने एक एप्लिकेशन लिखी है, जिसमें वो आरोपी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए डॉक्टर पायल को इंसाफ़ दिलाने की मांग कर रही हैं।

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हम जब ये कहते हैं कि जातिवाद ख़त्म हो गया है, तब हमें दरअसल ये कह रहे होते हैं कि जातिवाद ने अपने चेहरे बदल लिए हैं। जो शायद पहले से भी ज़्यादा ख़तरनाक़ हैं।

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