बिहार में पहली बार जीरो पर आउट हो गयी RJD, तो क्या लालू का विज्ञान हो गया फेल..
पटना, काजल, जागरण.कॉम से साभार। इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी राजद को जहां सबसे बड़ी जीत की उम्मीद थी, वहीं परिणाम आने के बाद ये झटके से कम नहीं था कि पार्टी एक सीट भी जीत नहीं सकी जो कि अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन कहा जा सकता है। कई दिग्गजों ने इस बार अपनी किस्मत आजमायी थी, जमकर चुनाव प्रचार भी किया गया। लेकिन, जनता ने एक भी उम्मीदवार पर भरोसा नहीं किया और पार्टी शून्य पर सिमट गई।
लालू का विज्ञान हो गया फेल
राजद सुप्रीमो लालू यादव की पार्टी की ये अबतक की सबसे बुरी हार बताई जा रही है। लालू ने काफी मेहनत और मशक्कत से राजद को बिहार में स्थापित किया और राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी रहे लालू को उनके बेटे तेजस्वी ने कहा था कि लालू एक विचार हैं, एक विज्ञान हैं। तो क्या लालू के जेल में रहने से विज्ञान फेल हो गया?
तेजस्वी ने निराश किया
लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं। लेकिन, उन्हें पार्टी और परिवार की चिन्ता लगी रहती है। लालू ने इस बार लोकसभा चुनाव की गोटियां रांची के रिम्स अस्पताल से फिक्स कीं। लेकिन, इस बार उन्होंने पार्टी की कमान अपने छोटे बेटे तेजस्वी के हाथों सौंपी थी। तेजस्वी ने लालू को निराश किया।
लालू ने बनाया महागठबंधन, फिक्स कीं चुनावी गोटियां
महागठबंधन के लिए लालू ने अविश्वसनीय राजनीतिक सहयोगी माने जाने वाले रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, हम के जीतन राम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और इसमें कांग्रेस को भी शामिल किया।
महागठबंधन का निर्माण तो हो गया और लालू ने जेल से ही चुनावी गोटियां फिक्स करनी शुरू कर दीं। लालू अच्छी तरह जानते थे कि उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी के शामिल करने से कुशवाहा, दलित, सहनी और निषाद समाज का समर्थन हासिल हो जाएगा। उन्होंने सोचा कि अगर ऐसा करने में सफल हो गए तो इससे महागठबंधन का फ़ायदा ही होगा।
आपसी कलह और महात्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा गठबंधन
लेकिन लालू की सोच के विपरीत उपेंद्र कुशवाहा, मांझी और सहनी समेत वाम दलों ने अपनी बढ़ती मांग देखकर अपनी राजनीतिक बिसात से ज़्यादा हिस्सेदारी मांगना शुरू कर दी। इन तीनों दलों ने आधा दर्जन से ज़्यादा सीटें मांगनी शुरू कर दी और इसके साथ ही कांग्रेस की बिहार शाखा ने भी अपनी मांगे बढ़ा दीं।
महत्वाकांक्षा की इस राजनीतिक रस्साकशी के चलते महागठबंधन में सीटों को लेकर होने वाला बंटवारा लगातार टलता रहा। इसी बीच एनडीए के कई उम्मीदवारों ने तो अपना चुनाव प्रचार करना भी शुरू कर दिया था। 22 मार्च तक महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर किचकिच होती रही और फिर सीट बंटवारे के तहत राजद को 19 सीटें मिली।
राजद ने बेगूसराय में कन्हैया को नकारा
इसके बाद बेगूसराय सीट को लेकर राजद और सीपीआई के बीच एक नया विवाद पैदा हो गया। सीपीआई इस सीट से कन्हैया कुमार को उतारना चाहती थी और राजद इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अंत में कन्हैया कुमार ने सीपीआइ के टिकट से ही चुनाव लड़ा। अगर कन्हैया पर राजद भरोसा करता तो जीत उसके पाले में आ सकती थी।
पप्पू यादव ने फूंका बिगुल, खुद हारे सुपौल से हारीं रंजीत रंजन
इसके बाद लोजपा अध्यक्ष पप्पू यादव ने भी बिगुल फूंक दिया और राजद के टिकट से चुनाव लड़ रहे शरद यादव को नुक़सान पहुंचाने के लिए मधेपुरा से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। जिसका खामियाजा उन्हें ये भुगतना पड़ा कि राजद ने उनकी पत्नी और सुपौल से मौजूदा कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और वो चुनाव हार गईं। महागठबंधन को इन दोनों सीटों पर जीत मिल सकती थी आपसी कलह से ये दोनों सीटें भी गंवानी पड़ी।
मधुबनी और दरभंगा में भी अपनों ने ही दिलायी हार
उधर,मधुबनी में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शकील अहमद ने पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करके डेढ़ लाख वोट हासिल करके इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार की हार तय कर दी। तो वहीं, दरभंगा में राजद नेता और पूर्व सांसद अहमद अशरफ अली फ़ातमी और उनके समर्थकों ने अपनी ही पार्टी के अब्दुल बारी सिद्दिक़ी को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
तेजप्रताप ने की खिलाफत
महागठबंधन में जब ये रस्साकशी चल रही थी तब राजद सुप्रीमो लालू यादव जेल में बंद थे और ना वो पार्टी के लिए कुछ कर सकते थे ना परिवार में चल रही कलह के लिए ही। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने भी लालू को कम चुनौतियां नहीं दीं और महागठबंधन के लिए परेशानी का सबब बनते रहे। उन्होंने अपने ससुर और सारण से उम्मीदवार चंद्रिका राय को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इतना ही नहीं, अपने बयानों और मंच से दिए गए बयानों से भी उन्होंने कई एेसी बातें कहीं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए थी। तेज प्रताप यादव ने एेन वक्त पर लालू-राबड़ी मोर्चा बना लिया और जहानाबाद में अपनी पार्टी से अलग एक उम्मीदवार का समर्थन भी किया। इसके चलते ही इस सीट पर राजद उम्मीदवार सुरेंद्र यादव हार गए, नहीं तो वो सीट राजद के खाते में आ सकती थी।
बड़ी बेटी मीसा भी नहीं हो सकीं सफल, हार गईं
राबड़ी की पहल पर दोनों भाईयों ने बहन मीसा के लिए साथ मिलकर चुनाव प्रचार किया। लालू परिवार और पार्टी को उम्मीद थी कि मीसा भारती पाटलिपुत्र सीट जीत लेंगी। लेकिन 23 मई की शाम जब रिजल्ट आया तो पता चला कि पाटलीपुत्र लोकसभा सीट से चुनाव हार गईं।
खराब प्रदर्शन का जिम्मा तेजस्वी पर
इस तरह आरजेडी शून्य पर सिमट गई। राजद के इस प्रदर्शन पर सोशल मीडिया पर जारी चर्चाओं में तेजस्वी यादव को इस ख़राब प्रदर्शन के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। अगर ज़िम्मेदार ठहराने की बात की जाए तो इस समय महागठबंधन में हर नेता अपने आपको बचाने की कोशिश में दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं।
लालू परिवार को लेनी पड़ेगी हार की जिम्मेदारी
बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नाम की सुनामी में कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों के अलावा पूरे भारत में अपना बेहतरीन प्रदर्शन किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसी एक नेता को इस हार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना कितना सही है? लेकिन ये भी सही है कि किसी न किसी को इस हार की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए और लालू परिवार इस ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता।
महागठबंधन को इस चुनाव में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कमी खली। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कुशल नेतृत्व का घोर अभाव दिखा। 10 सीटों पर महागठबंधन के दलों में तालमेल की कमी और भितरघात साफ दिख रहा था। 2014 की मोदी लहर में भी आरजेडी 4 सीटें जीतने में सफल रही थी। लेकिन इस बार तो राजद का सूपड़ा ही साफ हो गया। अब अानेवाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को नए सिरे से सोचना होगा।
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