सवर्णों के चूल्हे से आगे नहीं बढ़ पायी ‘राष्ट्रवाद की आंच’

वीरेंद्र यादव के साथ रणभूमि की तपिश-4

आज लोकसभा चुनाव को लेकर हम सुबह 9.20 से दोपहर बाद 3.10 बजे तक गया में रहे। तेज गरमी और कभी-कभी अंधड़ के बीच साइकिल चलाते हुए कम से कम 20 किलोमीटर की यात्रा की। गया जंक‍शन से चंदौती प्रखंड के अंतिम बूथ औरवां तक। जंक्शन से गांधी मैदान और अनुग्रह नारायण मेडिकल कॉलेज से होते हुए औरवां तक गये थे। उसके बाद औरंगाबाद लोकसभा का क्षेत्र शुरू होता है। औरवां से करीब 5 किमी दूर उसी सड़क पर पुना (कुछ ऐसा ही नाम है) गांव है, जो गुरुआ विधान सभा के तहत आता है। औरवां बेलागंज विधान सभा का उस रोड पर अंतिम बूथ था, जो गया लोकसभा में पड़ता है। जंक्शन से औरवां तक लगभग दर्जन भर बूथ का भ्रमण किया।
जिस साइकिल से हम यात्रा कर रहे थे, उसमें साइकिल के सभी अवगुण थे। बिना ब्रेक की साइकिल, सीट का कोई भरोसा नहीं, स्टैंड कहीं भी उलट जाये। हम औरवां से पुना भी जा रहे थे, लेकिन चैन उतरने के कारण वापस लौटने में अपनी भलाई समझी। लगभग सभी मतदान स्थल पर दो या तीन बूथ थे। लाइन कहीं लंबी तो कहीं छोटी भी थी। हर जगह मतदानकर्मी शांतिपूर्ण वोटिंग का प्रयास कर रहे थे।
जब हम मेडिकल कॉलेज से औरवां-अपरदह जा रहे थे तो रास्ते में एका-दूका लोग ही मिल रहे थे। छाया देखकर थोड़ा सुस्ता भी ले रहे थे। औरवां बूथ के बाहर सड़क पर मजमा लगा था। मंदिर के पास पेड़ के नीचे लोग सरकार बनाने और बिगाड़ने में जुटे थे। हमने अपनी साइकिल वहीं लगायी और भीड़ में शामिल हो लिये। सभी तीर-तीर का राग अलाप रहे थे। उस बहस के हम श्रोता बन गये। बातचीत में एक व्यक्ति ने कहा कि बूथ पर जाइए और अपना काम कीजिये। हमने कहा- हम काम ही कर रहे हैं। थोड़ी देर और ठहरने के बाद हम बूथ की ओर बढ़े। स्कूल में दो बूथ बना हुआ था। बूथ के अंदर और बाहर लोगों से बातचीत की। कुछ तस्वीर ली और फिर उसी भीड़ में आ गये। हमने आकर कहा- आप लोग सही नहीं बोल रहे हैं। एक बूथ पर ‘तीर’ चल रहा है तो दूसरे पर ‘टेलीफोन’ है। राजपूत बहुल गांव वाले बूथ पर तीर की ओर लोग मतदान कर रहे थे जबकि यादव व अन्य जातियों वाले बूथ पर टेलीफोन के पक्ष में वोट पड़ रहा है।
इस बीच एक व्यक्ति ने हमारी बात से सहमति जताते हुए बोले- एक बूथ पर मिक्स वोटर हैं। उसमें टेलीफोन पर वोट पड़ रहा है। इसके बाद एक अन्य व्यक्ति बोले- एक सवाल पूछे तो बुरा नहीं न मानियेगा। हमने कहा- हम अहीर हैं। आप यही न पूछियेगा किस जाति के हैं। फिर वह चुप हो गये। फिर हमारा सवाल था- आप लोग किस जाति के हैं। इस सवाल पर एक व्यक्ति बोले- यहां सभी लोग राजपूत जाति के हैं। इसके बाद उनके दावों का अर्थ स्पष्ट हो गया।
गया में यादव, मुसलमान और मुहसर का वोट एक तरफा जा रहा था। उसमें मिक्स वोट का जोरन जीत का दही जमाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है।
गया में लगभग 20 किमी की साइकिल यात्रा में वोटरों से बातचीत और उनकी प्रतिक्रिया यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि ‘राष्ट्रवाद की आंच’ सवर्ण वोटरों के चूल्हे से आगे नहीं बढ़ पायी है। बनिया जातियों का बड़ा हिस्सा कैडर होने के कारण भाजपा या एनडीए के साथ है। लेकिन गैरबनिया अतिपिछड़ा में पिछले 20-25 वर्षों में पहली बार नीतीश कुमार से मोहभंग होते हुए दिखा। गैर पासवान दलित भी एनडीए के खिलाफ नजर आये। सबके अपने-अपने कारण हैं। गया का सामाजिक समीकरण और जातियों का राजनीतिक झुकाव एनडीए के लिए खतरे का संकेत है। इससे उबरने की रणनीति पर भी एनडीए को काम करना होगा।






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