नीतीश और नरेंद्र मोदी के बीच फिर बिन शादी तलाक की नौबत

नवल किशोर कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी के साथ गलबहियां करते नजर आ रहे हैं, लेकिन सबकुछ वैसा नहीं है जैसा दिखता है। हालत यह हो गयी है कि स्वयं नीतीश कुमार को न तो भाजपा की जीत से कोई मतलब है और न ही जदयू की हार से।

ऐसी हालत क्यों हुई है, इसके पीछे की दास्तां दिलचस्प है।

लोकसभा चुनाव की मुनादी बजने से पहले तक सब ठीक चल रहा था। नीतीश चाहते थे कि भाजपा को बड़ी पार्टी का तमगा न मिले। इसलिए सीटों के बंटवारे को लेकर उन्होंने प्रेसर पॉलिटिक्स की।

इसका फायदा भी मिला। भाजपा 17-17 पर मान गयी। नीतीश कुमार की दिलचस्पी इसके बाद घटने लगी। हालांकि इस बीच उन्होंने एक और कोशिश की। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि यदि चुनाव के बाद एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में न हो तब वे महागठबंधन के साथ गठबंधन करेंगे। बशर्ते कि उन्हें या तो पीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका मिले या फिर दिल्ली की सरकार में उनकी हिस्सेदारी प्रभावकारी हो।

बस यही से नीतीश कुमार ने अपना अलग रास्ता अख्तियार कर लिया। जदयू की तरफ से एकमात्र वही हैं जो इन दिनों चुनावी रैलियों में कहीं-कहीं नजर आ जा रहे हैं। हर बार भाजपा और नरेंद्र मोदी के एजेंडे के बजाय वह अपने भाषण में अपनी उपलब्धियों का बखान करते हैं। यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि उनका भाजपा के कथित राष्ट्रवाद, सेना, पाकिस्तान और मुसलमान आदि मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। वे तो केवल विकास की बात करते हैं।

विकास की बात करते समय हालांकि वे इसका प्रयास जरूर कर रहे हैं कि बात इतनी भी न बिगड़ जाए कि लोग सवाल उठाने लगें, वे बिहार को विशेष राज्य दर्जा देने की मांग भी नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि भाजपा के अन्य नेताओं जो बिहार में इनदिनों अपने बयानों के लिए कुख्यात हो रहे हैं, उनके खिलाफ भी वे खामोश नहीं हैं। हाल ही में गिरिराज सिंह के ‘भारत में रहना है तो वंदे मातरम कहना होगा’ वाले बयान पर नीतीश कुमार ने भले ही कुछ न कहा हो, लेकिन अपने सिपाहसलार केसी त्यागी से यह जरूर कहलवा दिया कि चुनाव आयोग गिरिराज सिंह की उम्मीदवारी को निरस्त करे।

नीतीश क्या चाहते हैं? इस सवाल को लेकर जदयू के अन्य नेता भी उधेड़बुन में दिखते हैं। जदयू के एक प्रांतीय प्रवक्ता नीरज कुमार के मुताबिक बिहार में क्या हो रहा है, इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनका मुख्य फोकस मुंगेर लोकसभा है जहां से उनकी पार्टी के कद्दावर नेता ललन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं।

बहरहाल, यह तो साफ है कि नीतीश कुमार भाजपा के आंगन का नचनिया नहीं बनना चाहते हैं। लेकिन जब गठबंधन किया है तो घुंघरू तो पहनने ही होंगे। चाहे नाचें या न नाचें।






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