डिहरी का बदलने लगा है मूड, हवा भी बदल रही

वीरेंद्र यादव के साथ रणभूमि की तपिश- 2 

डिहरी का मूड बदलने लगा है, हवा भी बदल रही है। विरासत के खिलाफ विरोध है तो जातीय अहंकार का दर्द भी छलक रहा है। पिछले दो-तीन दिनों में हमने डिहरी विधान सभा क्षेत्र के चुनाव कार्यों से जुड़़े करीब 50 लोगों से मोबाईल पर बातचीत की। इसमें से करीब 15 लोग हमारे वाट्सएप ग्रुप से भी जुड़े हैं। हमारे नाम से परिचित हैं और हमें नियमित रूप से पढ़ते रहे हैं।
चुनाव कार्यों से जुड़े लोगों से बातचीत का मकसद बूथ विशेष की जातीय बनावट को समझना था। डिहरी और अकोढ़ा गोला प्रखंड को मिलाकर बने डिहरी विधान सभा का लंबा हिस्सा सोन नदी के किनारे पर बसा है। इंद्रपुरी से पडुहार तक का हिस्सा डिहरी विधान सभा क्षेत्र के तहत आता है। सोननदी के किनारे बसे गांवों में मल्लाह जाति की आबादी काफी है। हर बूथ पर यादव और कुशवाहा जाति के वोटर हैं। कुछ बूथ पर राजपूत की आबादी काफी है, लेकिन भूमिहार का कोई बूथ नहीं है। डिहरी बाजार और डालमिलयानगर के बूथों पर यादवों की बहुलता है। यादव वोटरों की स्थिति हथिया नक्षत्र में धान के खेत के समान है। जहां हाथ लगाओ, वहीं मछली पकड़ में आ जाती है।
चुनाव कार्यों से जुड़े अधिकांश लोगों में शिक्षक, आवास सहायक, आंगनबाड़ी सेविका, टोला सेवक, विकास मित्र, कृषि सलाहकार आदि ही हैं। इनके जिम्मे वोटरों का नाम जोड़ना और लोगों को वोट देने के लिए प्रेरित करना भी है। बातचीत में एक बात साफ तौर पर दिखी कि लोगों में डिहरी की राजनीतिक विरासत के खिलाफ आक्रोश है। राजद ने अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी है। उधर एनडीए में डिहरी सीट भाजपा के कोटे में गयी है। इस बार भाजपा के दावेदारों में सबसे ज्यादा यादव नेता ही हैं। इसमें एकाध ‘धनपशु’ भी हैं। इसमें एक ऐसे दावेदार भी हैं, जिनकी गाय गोबर के बदले ‘सोना’ देती है। कुछ बनिया व राजपूत भी जोर लगा रहे हैं। हालांकि भाजपा ने अभी उम्मीदवार तय नहीं किये हैं। डिहरी में चुनाव अंतिम चरण में होना है।
लोकसभा के साथ ही डिहरी विधान सभा का उपचुनाव होना है। महागठबंधन में लोकसभा की सीट रालोसपा को गयी है, जबकि विधान सभा सीट राजद को गयी है। इसी प्रकार एनडीए में लोकसभा में सीट जदयू को गयी है, जबकि विधान सभा में सीट भाजपा को गयी है। यानी दोनों गठबंधनों के मतदाताओं को अलग-अलग चुनाव चिह्न पर बटन दबाना होगा। मतदाता इतने जागरूक हो गये हैं कि अलग-अलग चुनाव चिह्न चुनने में परेशानी नहीं होगी, लेकिन परिणाम आने तक उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न का दर्द सालता रहेगा।






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