बिहार में ऐसे ऐसे लूट गया हिन्दी प्रेमियों का सपना वीरेंद्र यादव

वीरेंद्र यादव
बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति और राज्य सभा के पूर्व सदस्य प्रो.जाबिर हुसैन ने पटना में हिंदी के विकास – विस्तार और साहित्यिक गतिविधियों के केंद्र बनाने का सपना देखा था। सपना साकार भी हुआ। सपना पूरे होने में वर्षों लग गये। विधान पार्षद और सांसद के रुप में विकास कार्यों के लिए मिलने वाली राशि से हिन्दी भवन निर्माण का काम पूरा करवाया। इस साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्र का नाम रखा गया- फणिश्वरनाथ रेणु हिंदी भवन। इस‍ हिंदी भवन में हिंदी के विकास के लिए आज तक कुछ नहीं हुआ। भव्य आवासीय परिसर वाले हिंदी भवन में पहले एक विश्वविद्यालय चलता था और अब पटना समाहरणालय चल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटना यात्रा को लेकर पत्रकारों के लिए बनने वाले प्रवेश सुरक्षा कार्ड बनवाना था। हम गंगा किनारे वाले पुराने डीपीआरओ कार्यालय में पहुंच गये। वहां जाने पर पता चला कि डीपीआरओ समेत कई विभागों का कार्यालय हिन्दी भवन में पहुंच गया है। हम भी हिन्दी भवन पहुंचे। भवन के माथे पर पटना समाहरणालय का बोर्ड लगा था। उसके नीचे फणिश्वरनाथ रेणु हिन्दी भवन अपनी इज्जत बचाते हुए नजर आ रहा था। परिसर में हिन्दी भवन के निर्माण में जाबिर हुसैन की संघर्ष गाथा और आर्थिक अवदान की चर्चा विस्तृत रूप से की गयी है। इसे पढ़कर आप भी विलाप कर सकते हैं। प्रशासनिक तंत्र किसी के सपनों को कैसे रौंद डालता है। इसका उदाहरण हिन्दी भवन है। इसे आप भी देख सकते हैं। दरअसल यह सपना अकेले जाबिर हुसैन का नहीं था। यह सपना पूरे हिंदी प्रेमियों का था, जिसे श्री हुसैन ने जमीन पर उतारा था। और सरकार ने उस सपने का लूट लिया।






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