एससी-एसटी आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर!

रामनाथ कोविंद, रामविलास पासवान और जीतनराम मांझी के आश्रितों को क्यों चाहिए आरक्षण ?
वीरेंद्र यादव
लोकसभा और राज्यसभा ने सवर्णों के लिए सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को मंजूरी प्रदान कर दी है। इसका लाभ हिन्दू सवर्णों के साथ मुसलमान व ईसाइयों को भी मिलेगा। यह एक ऐतिहासिक फैसला है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इस प्रावधान ने तथाकथित सवर्ण जातियों को भी दलितों की श्रेणी में लाकर खड़ा दिया है। आरक्षण का कटोरा लेकर कार्यालय-कार्यालय में अब भूमिहार और चमार (रविदास) साथ-साथ भटकेंगे। सामाजिक समरसता का इससे बड़ा क्रांतिकारी कदम नहीं हो सकता था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू दोनों के नाती-पौते साथ-साथ आरक्षण की लाईन में खड़े होंगे।
लेकिन सवाल इससे आगे का है। ओबीसी आरक्षण में पहले से ही क्रीमीलेयर लगा दिया गया है। यानी गरीब ओबीसी को ही आरक्षण मिल रहा है। नये संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, गरीब सवर्णों को ही आरक्षण मिलेगा। इसके लिए भी क्रीमीलेयर शब्द नियमावली में जोड़ दिया जाएगा। संविधान में आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए किया गया था। अनुसूचित जाति व जनजाति को भी सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के साथ प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए आरक्षण दिया गया था। अब तक आरक्षण में आर्थिक पिछड़ेपन का कोई जिक्र नहीं है। इस बार आर्थिक पिछड़ेपन की बात कही गयी है। यानी शैक्षणिक और सामाजिक पिछड़ापन बेमानी हो गया है। अब आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के तरह एक सरकारी योजना बन गया है।
तब सवाल उठता है कि सवर्ण और ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर के समान अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण में भी क्रीमीलेयर क्यों नहीं लागू किया जाये। एससी-एसटी में क्रीमीलेयर लागू होने से इस वर्ग के गरीब लोगों को लाभ मिलेगा। स्वाभाविक है कि आरक्षण जब गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम है तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के आश्रितों और परिजनों को आरक्षण क्यों मिलना चाहिए। रामनाथ कोविंद, रामविलास पासवान और जीतनराम मांझी के परिजनों को मिल रहे आरक्षण के खिलाफ दलित वर्ग के युवाओं को ही आगे आना चाहिए। क्रीमीलेयर के लिए दलितों को खुद आगे आना चाहिए। आरक्षण के लाभ उठाकर संसद में पहुंचे लोग ही जब आरक्षण की अवधारणा का ‘गला घोंट’ रहे हैं तो समाज को उनके प्रति ‘दयावान’ नहीं होना चाहिए।






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