हथुआ गोपालमंदिर में विदेश भेजने के नाम पर हो रही ठगी पर परिचर्चा
Bihar Katha. संवाददाता. हथुआ.खाडी देशों में विदेश भेजने के नाम पर ठगी करने के लिए कई गिरोह संगठित होकर गोपालगंज-सिवान के लोगों को ठग रहे हैं. इसके विभिन्न पहलुओं पर बिहार कथा व दलित ओबीसी जनजागरण संघ की ओर से हथुआ के गोपालमंदिर परिसर में एक परिचर्चा कराई गई. परिचर्चा में संघ के संयोजक संजय कुमार ने कहा कि अब एजेंट विदेश भेजने के नाम पर ठगी के लिए माइक्रो मैनेजटमेंट का तरीका अपना रहे हैं. वे एक ही व्यक्ति से एक लाख की ठगी करने के बजाय सौ लोगों से थोडी थोडी रकम लेकर लाख दो लाख की ठगी करने लगे हैं, जिससे कोई व्यक्ति थोडी रकम के लिए शिकायत या झागडा न करे. विदेश में रहकर काम करने वालों के परिवारों को गांव में कई तरह की परेशानियों का समाना भी करना पडता है. समाजिक न्याय मंच के शिशिभूषण भारती ने कहा कि एजेंटों ने ठगी का एक नया पैतरा निकाला है. वे खाडी देशों में जॉब के लिए कैंप लगाते हैं. इसमें एक साथ करीब 100-200 लोगों को जोड कर उन्हें विदेश भेजने के लिए पहले मेडिकल करवाने के नाम पर पैसे ऐठते हैं.इसमें उनकी अस्पतालों से भी मिलीभगत होती है. यदि सौ लोगों से भी दो दो हजार लिए तो दो लाख रुपए हो गए. उसके बाद मेडिकल कराने के नाम पर अस्पतालों को भी मोटी रकम मिल जाती है. इसमें अधिकतर लोगों को मेडिकल के नाम पर छांट दिया जाता है. इसके बाद पीडित दो-पांच हजार के लिए शिकायत भी नहीं करता है. वह यह सोच लेता है कि कम कम उसके
लाख रुपए तो डूबने से बच गए. एजेंटों को ठगी का काफी आसान व घटिया तरीका है.
हथुआ पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि उपेंद्र शर्मा ने बताया कि उनके पास औसतन हर महीने एक शिकायत ऐसी आती है जिसमें विदेश भेजने के नाम पर पैसा हडप लिया गया. फ्लाइट के नाम पर दिल्ली मुंबई बुलाया गया और परेशान किया गया. एजेंट स्थानीय होते हैं. पीडित और एजेंट के बीच बातचीत से समस्या का समाधान निकालने व भुगतान हुए पैसे को वापस दिलाने पर समझाईस की जाती है. जितेश कुमार राजपूत ने कहा कि इस तरही ठगी में पुलिस के पास लोग शिकायत लेकर जाने से कतराते हैं, क्योंकि पुलिस उल्टे पीडित से ऐसे ऐसे सवाल करती है जैसे वही ठग हो. स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके नहीं होने के कारण बेरोजगार युवा ठगी के सबसे आसान शिकार हो जाते हैं.
युवा शिक्षक राकेश कुमार पटेल ने कहा कि कई बार एजेंटों के पास फ्री वीजा के साथ वर्कर की मांग आती है. इसमें वे लोग टिकट से ज्यादा पैसे लेकर विदेश भेजते हैं, लेकिन जाने वाले को यह नहीं बताते हैं वहां काम कितने दिनों के लिए है तथा क्या सुविधा है. ऐसे मामलों में काम अल्पकालीन समय के लिए होता है तथा सैलरी कम होती है. वहां जाकर फंस जाते हैं और मजबूरी में बदतर जिंदगी काटनी पडती है. परिचर्चा में यह बात भी उभर का समाने आई कि आने वाले एक दशक में विदेश जाने वाले लोगों में काफी कमी आएगी, क्योंकि जो लोग विदेश गए हैं वे अपने बच्चों को शिक्षित करने पर जोर दे रहे हैं. वे यह नहीं चाहते है कि उनके बच्चे खाडी देशों में छोटी मोटी नौकरी करते हुए बदहाल जिंदगी काटें.
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