जन सरोकार को सर्वोपरि मानते हैं विनोद नारायण झा
बीरेंद्र यादव से बातचीत
सत्ता का केंद्र है सचिवालय। सचिवालय खंड-खंड अखंड है। मुख्य रूप से चार जगहों में बंटा है सचिवालय। पुराना सचिवालय, विकास भवन, सूचना भवन और विश्वैश्वरैया भवन। छोटा-छोटा विभाग अन्य जगहों पर भी है।
विश्वैश्वरैया भवन के पुनाईचक वाले हिस्से में है लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग का कार्यालय। सामान्य–सा दिखने वाले भवन में किस विभाग का ऑफिस है, यह जानने की इच्छा हुई। गाड़ी खड़ा किया और भवन के अदंर घुस गये। बायीं ओर मुड़ा तो नेमप्लेट दिखा- विनोद नारायण झा। मंत्री, पीएचईडी। नेमप्लेट देखकर ठहरा। इसके बाद एक पर्ची भेजी। थोड़ी देर बाद बुलावा आया।
कार्यालय झकास। कुर्सी से सोफा तक सब सफेद-सफेद। बैठने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। एनडीए सरकार में दो ब्राह्मण मंत्री हैं और दोनों भाजपा के ही। दोनों एमएलसी हैं। ‘राजनीति की जाति’ नामक पुस्तक का अवलोकन करते हुए मंत्री ने कहा- आपने वैश्यों के लिए कानू, तेली, हलवाई, बनिया जाति का इस्तेमाल किया है। बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि ब्राह्मण के लिए कान्यकुब्ज, सरयूपारी, मैथिल आदि का इस्तेमाल करना चाहिए।
फिर जातीयों के सामाजिक स्वरूप पर चर्चा हुई। 1921 व 1931 की जनगणना के आलोक में जातीयों के ‘कायांतर’ की राजनीति पर विमर्श हुआ। तांती-ततवा को पान बना दिया गया तो कुशवाहा और दांगी का वर्गीय विभाजन के बाद दोनों जातीयों के बीच शादी-विवाह बंद हो गया। पहले दोनों जातियां पिछड़ा वर्ग में थीं। बाद में शासकीय विभाजन हुआ और दांगी को अतिपिछड़ा बना दिया गया। खैर।
विनोद नारायण झा 2016 में विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए थे। 2015 के चुनाव में बेनीपट्टी से कांग्रेस उम्मीदवार भावना झा से करीब 3 हजार वोटों से पराजित हो गये थे। इससे पहले 2005 और 2010 में विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। राजनीति की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस से की थी, लेकिन 2000 के आसपास भाजपा में आ गये थे और पार्टी में विभिन्न पदों की जिम्मेवारी संभाल रहे थे। अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके परिवार का राजनीति से कोई नाता नहीं रहा था। लेकिन समय की धारा ने उन्हें राजनीति के चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। 2005 के फरवरी में विधान सभा का चुनाव हार गये थे, जबकि नवंबर के चुनाव में विधान सभा पहुंच चुके थे। पीएचईडी मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा कि वे जनता के हितों के प्रति समर्पित रहे हैं। लोकतंत्र में जनहित सर्वोपरि है। इसके साथ ही पार्टी और सरकार में मिली जिम्मेवारियों का निर्वाह पूरी निष्ठा से करते रहे हैं।
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