चुनाव पहले की बात है. 2014 का लोकसभा चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम दलों के नेता वादे और दावे कर रह थे, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे. इसी दौरान बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी की अमेठी में सभा हुई. कांग्रेस और कांग्रेस के नेता उनके निशाने पर थे. अगले दिन प्रियंका गांधी ने एक बयान दिया कि ‘नरेंद्र मोदी ने अमेठी में उनके शहीद पिता का अपमान किया है और इस नीच राजनीति का अमेठी के हर पोलिंग बूथ के लोग बदला लेंगे.’
नरेंद्र मोदी को मानो प्रियंका गांधी के ऐसे ही बयान का इंतज़ार था. अगले दिन उनकी यूपी के ही डुमरियागंज में सभा थी. उसमें उन्होंने कहा- ‘हां, ये सही है कि मैं नीच जाति में पैदा हुआ हूं, पर मेरा सपना है एक भारत, श्रेष्ठ भारत…आप लोग मुझे चाहे जितनी गालियां दो, मोदी को फांसी पर चढ़ा दो, लेकिन मेरे नीची जाति के भाइयों का अपमान मत कीजिए.’ उन्होंने उसी दिन ट्वीट करके कहा- ‘सामाजिक रूप से निचले वर्ग से आया हूं, इसलिए मेरी राजनीति उन लोगों के लिए नीच राजनीति ही होगी.’
अगले ही ट्वीट में इस बात को और साफ करते हुए लिखते हैं – ‘हो सकता है कुछ लोगों को यह नज़र नहीं आता हो पर निचली जातियों के त्याग, बलिदान और पुरुषार्थ की देश को इस ऊंचाई पर पहुंचाने में अहम भूमिका है.’
2017 में एक बार फिर ऐसा ही मौका आया जब गुजरात में चुनाव के दौरान कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि ‘नरेंद्र मोदी नीच किस्म के आदमी हैं, जिसमें कोई सभ्यता नहीं है’ तो अगले ही दिन सूरत की जनसभा में मोदी ने जवाब दिया कि, ‘मणिशंकर अय्यर ने मुझे नीच और निचली जाति का कहा. हमें गंदी नाली का कीड़ा कहा. क्या यह गुजरात का अपमान नहीं है?’
नरेंद्र मोदी गुजरात की मोड घांची जाति से आते है. अपने पिछड़ी जाति के होने को वे लगातार मेडल की तरह पहनते हैं और इसका जिक्र करना वे कभी नहीं भूलते. उनका ऐसा कहना शायद उन्हें देश की उस पिछड़ी आबादी से जोड़ता है, जिसकी संख्या देश की आबादी का 52 प्रतिशत है. ये आंकड़ा दूसरे राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग यानी मंडल कमीशन का है. चूंकि देश में 1931 के बाद एससी-एसटी के अलावा बाकी जाति समूहों की जनगणना नहीं हुई, इसलिए ओबीसी की संख्या के बारे में 1931 के आंकड़ों से ही काम चलाया जाता है. 2011 से 2016 के बीच हुई सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए.
ओबीसी के लिए क्या बड़े कदम उठाए गये
बहरहाल, ये देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी जिस जाति समूह का खुद को सदस्य बताते हैं, उसके लिए यानी ओबीसी के लिए वर्तमान सरकार ने क्या बड़े कदम उठाए. केंद्र सरकार के मुताबिक ऐसा सबसे बड़ा कदम है राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देना. इसके लिए 123वां संविधान संशोधन करके संविधान में एक नया अनुच्छेद 338बी जोड़ा गया. आयोग को अब सिविल कोर्ट के अधिकार प्राप्त होंगे और वह देश भर से किसी भी व्यक्ति को सम्मन कर सकता है और उसे शपथ के तहत बयान देने को कह सकता है. उसे अब पिछड़ी जातियों की स्थिति का अध्ययन करने और उनकी स्थिति सुधारने के बारे में सुझाव देने तथा उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करने का भी अधिकार होगा. संविधान संशोधन विधेयक पर जो भी विवाद थे वे लोकसभा में हल हो गए और राज्यसभा में ये आम राय से पारित हुआ है. अब इस आयोग को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बराबर का दर्जा मिल गया है.
बीजेपी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का दर्जा बढ़ाए जाने को सरकार की बड़ी उपलब्धि बता रही है लेकिन ये कह पाना मुश्किल है कि इससे देश की आधी आबादी यानी पिछड़ी जातियों के लोगों की ज़िंदगी में क्या बदलाव आएगा. ऐसे ही अधिकारों के साथ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग खास असरदार साबित नहीं हुए हैं. संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद इतना समय नहीं गुज़रा है कि इस फैसले के असर की समीक्षा की जाए. { with thankx frim hindi.theprint.in
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