महाराजगंज: राजपूत-भूमिहार से आगे नहीं बढ़ा प्रतिनिधित्व
वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 21
(बिहार की राजनीति की सबसे जरूरी पुस्तक- राजनीति की जाति)
1957 में पहली बार अस्तित्व में आयी महाराजगंज लोकसभा सीट से अब तक भूमिहार-राजपूत ही निर्वाचित होते रहे हैं। इससे इतर किसी अन्य जाति को मौका नहीं मिला। इसकी वजह रही है कि महाराजगंज का सामाजिक बनावट और बसावट राजपूत-भूमिहार के पक्ष में रही है। यादव वोटों की संख्या भी काफी है, लेकिन सीवान और सारण के राजनीतिक समीरण में महाराजगंज सभी पार्टियों के लिए राजपूत व भूमिहार के अनुकूल बैठता है।
सामाजिक बनावट
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महाराजगंज में सबसे ज्यादा वोटर राजपूत जाति के हैं, जिनकी संख्या 4 लाख बतायी जाती है, जबकि यादव वोटरों की संख्या करीब 3 लाख है। भूमिहार वोटरों की संख्या भी करीब 2 लाख है। अतिपिछड़ी जाति के वोटों की संख्या करीब 4 लाख है। दलित वोटों की आबादी 14 से 16 फीसदी है। इसमें सबसे ज्यादा रविदास व पासवान हैं।
प्रभुनाथ सिंह का समीकरण
महाराजगंज की राजनीति में प्रभुनाथ सिंह लंबे समय तक प्रभावी रहे हैं। वे राजद व जदयू दोनों के साथ बारी-बारी से राजनीति करते रहे हैं और दोनों ही पार्टियों से सांसद रह चुके हैं। तीन बार वे जदयू के टिकट पर लोकसभा के लिए निवार्चित हुए थे, लेकिन 2009 में राजद के उमाशंकर सिंह से पराजित हो गये। लेकिन 2013 में हुए उपचुनाव में प्रभुनाथ सिंह राजद के टिकट पर निर्वाचित हुए। 2014 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की। 2014 में छपरा के विधायक जर्नादन सिंह सिग्रीवाल लोकसभा के लिए निर्वाचित हो गये और यह सीट रिक्त हो गयी। सिग्रीवाल के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर हुए उपचुनाव में प्रभुनाथ सिंह के पुत्र रणधीर सिंह निर्वाचित हुए थे।
कौन-कौन हैं दावेदार
भाजपा और जदयू के बीच हुए समझौते के बाद यह सीट किसके खाते में जाएगी, अभी तय नहीं है। भाजपा अपने कई सांसदों की कुर्बानी भी लेगी, यह तय है। कुर्बान होने वाली सीट में महाराजगंज भी हो सकती है। क्योंकि इस सीट पर भाजपा पहली बार निर्वाचित हुई है, जबकि जदयू ने इस सीट पर कई बार जीत दर्ज की थी। उधर गठबंधन में यह सीट किसके खाते में जाएगी, यह भी तय होना है। बताया जा रहा है कि प्रभुनाथ सिंह के पुत्र व पूर्व विधायक रणधीर सिंह इस सीट पर राजद के कोटे से दावा जता सकते हैं। लेकिन उनका झुकाव जदयू की ओर भी है। यदि वह जदयू की ओर जाते हैं और यह सीट जदयू के कोटे में जाती है तो सिग्रीवाल के राजनीतिक भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा के विधान पार्षद सच्चिदानंद राय भाजपा में बगावत करके कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। वैसी स्थिति में वह महागठबंधन के कोटे से कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन दोनों गठबंधनों के बीच सीट शेयरिंग और उम्मीदवार सेलेक्शन के बाद ही वास्तविक तस्वीर उभर कर सामने आएगी।
30 अक्टूबर का लोकसभा क्षेत्र – किशनगंज
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सांसद — जर्नादन सिंह सिग्रीवाल — भाजपा — राजपूत
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
गौरियाकोठी — सत्यदेव सिंह — राजद — राजपूत
महाराजगंज — हेमनारायण साह — जदयू — बनिया
एकमा — मनोरंजन सिंह — जदयू — भूमिहार
मांझी — विजय शंकर दुबे — कांग्रेस — ब्राह्मण
बनियापुर — केदारनाथ सिंह — राजद —राजपूत
तरैया — मुंद्रिका सिंह — राजद — यादव
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2014 में वोट का गणित
जनार्दन सिंह सिग्रीवाल — भाजपा — राजपूत — 320753 (39 प्रतिशत)
प्रभुनाथ सिंह — राजद — राजपूत — 282338 (34 प्रतिशत)
मनोरंजन सिंह — जदयू — भूमिहार — 149483 (18 प्रतिशत)
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