बिहार में कुछ एेसे मंदिर हैं जिनकी परंपरा आज भी कायम है। वो भी अनोखी परंपरा है। एक मंदिर एेसा है जहां नवरात्रि में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है तो वहीं दूसरा मंदिर एेसा है जहां बकरे की बलि नहीं दी जाती है, बल्कि उसकी पूजा कर उसे श्रद्धालु को ही सौंप दिया जाता है।
पटना। कैमूर जिले के भगवानपुर में पवरा पहाड़ी पर अवस्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर अतिप्राचीन है। इसे देश के 51 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है। जिले के भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा आदिकाल से होती आ रही है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है रक्त विहीन बलि। मनोकामना पूर्ण होने के बाद कोई श्रद्धालु चढ़ावे में खस्सी (बकरा) चढ़ाता है। पुजारी द्वारा बकरे को मां मुंडेश्वरी के चरण में रखा जाता है। मां के चरण में अक्षत (चावल) का स्पर्श करा पुजारी उस अक्षत को बकरे पर फेंकता है। अक्षत फेंकते ही बकरा अचेतावस्था में मां के चरण में गिर जाता है। कहते हैं कि कुछ क्षण के बाद पुन: पुजारी द्वारा अक्षत को मां के चरण से स्पर्श करा बकरे पर फेंका जाता है और अक्षत फेंकते ही तुरंत बकरा अपनी मूल अवस्था में आ जाता है। इसरक्त विहीन बलि को देख कर उपस्थित श्रद्धालु सिर्फ मां का जयकारा ही लगाते हैं। उसके बाद बकरे को श्रद्धालु को ही सौंप दिया जाता है।
वैसे तो पूरे वर्ष मां मुंडेश्वरी की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन शारदीय व वासंतिक नवरात्र में मां मुंडेश्वरी की पूजा विधिवत तरीके से की जाती है। नौ दिन कलश स्थापना कर पूरे अनुष्ठान के साथ पूजा होती है। इस दौरान अष्टमी की रात में निशा पूजा का प्रावधान है जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है।
औरंगजेब ने तोड़ना चाहा था मंदिर, नहीं तोड़ सका
कहते हैं कि औरंगजेब के शासनकाल में इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूरों को मंदिर तोडऩे के काम में भी लगाया गया। लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ अनहोनी होने लगी। तब वे काम छोड़ कर भाग गये। भग्न मूर्तियां इस घटना की गवाही देती हैं। तब से इस मंदिर की चर्चा होने लगी। यह देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार होता है। महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल के इतिहास को बदलकर मंदिर में महिलाओं को भी पूजा करने की इजाजत मिल गई है, लेकिन बिहार में एक मंदिर एेसा है जहां अाज भी नवरात्रि के दौरान महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। यह बिहार के नालंदा ज़िला अंतर्गत पावापुरी के निकट घासरावां गांव में स्थित मां आशापुरी मंदिर है। यह मंदिर जैनियों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल पावापुरी से लगभग तीन किलोमीटर दूर घोसरावां में है। यहां मां आशापुरी के रूप में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है।
मंदिर के अंदर महिलाओं का प्रवेश भले ही वर्जित है, लेकिन वाह्य परिसर में उनके आने पर रोक नहीं है। कई महिलाएं मंदिर के बाहर दुकान लगाकर पूजन सामग्री बेचती हैं। वे कहती हैं कि मंदिर में जाने का मन तो करता है, लेकिन माता मन को समझा देती हैं।
यह है परंपरा
मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष सत्येंद्र प्रसाद शर्मा बताते हैं, “नवरात्रि के दौरान मंदिर में तांत्रिक पद्धति से पूजा होती है। इस पूजा पद्धति में महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना जाता है। सदियों पुराने इस मंदिर में निर्माण के समय से ही यह परंपरा चली आ रही है।
अनहोनी का डर
ग्रामीण राजीव रंजन, सुनील झा व सदानंद आदि का कहना है कि बस मन में एक डर बैठा है कि जो भी इस परंपरा का उल्लंघन करेगा, उसपर विपत्ति टूट पड़ेगी। गांव के साथ भी बुरा होगा। अनहोनी के डर के कारण कोई भी इस परंपरा के खिलाफ जाने की पहल ही नहीं करता।
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