NRC का मतलब क्या?
Pushy Mitra
मेरे एक रिश्तेदार असम में लेक्चरार की नौकरी करने गए थे। वहीं बस गए। रिटायर भी हो गए कई साल पहले। उनका बड़ा बेटा और बहू भी वहीं किसी कॉलेज में पढ़ाते हैं, छोटे बेटे ने एक चाय बागान भी लगा लिया है। मगर कुछ साल पहले पूरे परिवार को परेशान होकर बिहार में यहां वहां भटकते देखा। वे सुबूत जुगाड़ने आये थे कि 1971 से पहले से वे भारत के नागरिक हैं।
भैरवलाल दास जी ने कुछ दिनों पहले बताया था कि आजकल बिहार राज्य के अभिलेखागार में असम से आये बिहारियों की भारी भीड़ उमड़ रही है। क्यों पूछने पर उन्होंने बताया कि अभिलेखागार में 1971 से पहले का कोई वोटर लिस्ट पड़ा है। सब लोग उसकी फोटो कॉपी लेने आये हैं। हालांकि लाइव बिहार के पत्रकार रोशन मैथिल ने बताया कि उस वोटर list की भी कोई मान्यता नहीं है। सरकार वहां खतियान तलाश रही है। कोई बिहारी 1971 से पहले के जमीन के कागजात पेश करने में सफल नहीं हो पा रहा जिसमें उसका नाम हो।
रोशन के पिता और भाई भी कई दशक से असम में हैं और ये अपना कारोबार भी कर रहे हैं। इन्होंने अपना खतियान पेश किया तो असम के अधिकारियों ने उसे पुष्टि के लिये दरभंगा भेज दिया। अब दरभंगा के अधिकारी इतने सुस्त हैं कि न हां, लिख रहे न ना। लिहाजा वे भी खुद को भारतीय नागरिक साबित नहीं कर पा रहे।
रोशन बताते हैं कि असम में लोग बांग्लादेशियों से पहले बिहारियों को भगा देना चाहते हैं। क्योंकि बांग्लादेशी कम पैसे में काम करने को तैयार हो जाते हैं, बिहारी मजदूर अधिक पैसा मांगते हैं। वे बस इतना चाहते हैं कि बांग्लादेशियों को वोट देने का अधिकार नहीं मिले।
इन हालात में मैं सोच रहा हूँ कि बिहार के लाखों दलित, आदिवासी और भूमिहीन मजदूर वहां खुद को भारतीय नागरिक कैसे साबित करेंगे। उनके पास तो कभी खानदान में किसी के नाम जमीन ही नहीं रही है।
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
कहां जाएगी पत्रकारिता..जब उसकी पढ़ाई का ऐसा हाल होगा..
उमेश चतुर्वेदी हाल के दिनों में मेरा साबका पत्रकारिता के कुछ विद्यार्थियों से हुआ…सभी विद्यार्थीRead More
Comments are Closed