बिहिया की दुरपदिया
पुष्य मित्र
————————-
द्रौपदी का चरित्र हमेशा से मुझे आकर्षित करता है. वह पांच पतियों की पत्नी थी, और कई और थे, जो उससे शादी करना चाहते थे, उसका एक पति उसे जुए में हार गया और जीतने वाले ने चाहा कि उसे भरी सभा में नंगा कर दे. क्योंकि वह एक दमदार औरत थी, उसे पुरुषों की मूढता पर हंसना भी आता था. और अपमान का बदला लेना भी. मुझे यह जानकर अच्छा लगा कि हिंदू मिथक ने द्रौपदी को पंच कन्याओं में शामिल किया. इन पंच कन्याओं में वो औरतें हैं, जिनके एक से अधिक पुरुषों से संबंध रहे हैं. फिर भी शास्त्र इन्हें पवित्र मानता है.
बिहिया की द्रौपदी के बारे में बताया जाता है कि वह कथित तौर पर आर्केस्ट्रा की गायिका थी और यह भी कहा जाता है कि बिहिया के जिस मोहल्ले में वह रहती थी उसे उस कस्बे का छोटा सा रेड लाइट एरिया कहा जाता था. और वहां जिस्मफरोशी का धंधा होता था. वह औरत जो अधेड़ थी अब शायद उस कोठे की संचालिका होगी. सच्चाई जो भी हो, मगर इतना सच है कि प्रेम के लिए वह औरत किसी एक पुरुष पर निर्भर नहीं रही होगी, जैसी सभ्य समाज की रीत रही है. मगर वह पंच कन्या नहीं थी, वह बिहिया वालों के लिए रंडी थी. उसकी वजह से उस मोहल्ले का माहौल खराब हो रहा था और लोग कहें न कहें, मगर आम राय यह जरूर रही होगी कि इन्हें किसी बहाने से इस मोहल्ले से भगाया जाये.
माहौल गुड़िया आर्केस्ट्रा की संचालिका की वजह से खराब हो रहा था. मगर इसके जिम्मेदार वे पुरुष कतई नहीं थे, जो बतौर ग्राहक उसके घर आते होंगे. क्योंकि पौराणिक मान्यता यही रही है कि नारी ही नर्क का द्वार है, पुरुष उस द्वार को देखते ही आपा खो बैठते हैं और उस जाल में फंस कर कुकर्म कर बैठते हैं.
उस मोहल्ले के महज पचास मीटर की दूरी से रेलवे की पटरी गुजरती थी, संभव है आसपास बिहिया स्टेशन भी रहा होगा. मुझे याद है जिस रोज उक्त युवक का शव मिला था, उस रोज सुबह के वक्त हमारी ट्रेन बिहिया स्टेशन से होकर गुजरी थी. मगर उस वक्त वहां शांति थी. शव मिलने के बाद युवक के परिजनों ने मान लिया कि युवक की हत्या इन्हीं आर्केस्ट्रा वाली रंडियों ने ही की होगी. और उन्होंने कथित कोठे वाले चार घरों को चुनकर उस पर हमला किया और उसे आग लगा दी. घर में घुसकर इस तरह तोड़फो़ड़ किया कि कोई एक चीज साबूत नहीं बची.
दिलचस्प है कि यह सब उस जमाने में हो रहा था, जब पुलिस का शासन हुआ करता था. उस राज में हो रहा था, जो जंगलराज की खिलाफत में सुशासन के रुतबे के साथ बना था, और उस राज्य का राजा कहा करता था, कि वह क्राइम, कम्युनलिज्म और करप्शन से समझौते नहीं करता. कानून का इकबाल कभी कम नहीं हो सकता. मगर उस बिहिया कस्बें में पुलिस ने संभवतः सोचा होगा कि इस नैसर्गिक न्याय की कार्रवाई में कानून को मौन ही रहना चाहिए. और वह कहीं नजर नहीं आयी. उस वीडियो में भी जो परसों से ही वायरल हो रहा है.
जब आगजनी हो रही थी तो कथित रेडलाइट के बाशिंदे अपना घरबार छोड़ कर भाग गये थे. थोड़ी देर बाद जब लगा कि न्यायकर्ता लौट गये होंगे, द्रौपदी के मन में इच्छा जगी कि देख आयें, जले हुए घर में कुछ बचा तो नहीं है. हालांकि उसके बेटे ने कहा कि मां मंदिर गयी थी, सावन की सोमवारी पर शिव की अराधना करने, उसे मालूम नहीं था कि क्या हुआ है और लौट कर घर पहुंची तो भीड़ के हत्थे चढ़ गयी.
फिर कौरवों की फौज में मौजूद दुर्योधन ने आदेश दिया कि द्रौपदी के कपड़े उतारे जायें. उत्साहित दुःशासन को यह भी भान नहीं रहा कि राज सुशासन का है. कपड़े उतारे नहीं फाड़ डाले गये. द्रौपदी ने कातर हृदय से कृष्ण को बुलाया होगा, लोगों से अपील भी की होगी, पुलिस की तरफ भी उम्मीद की निगाह डाली होगी. मगर कहीं कृष्ण नहीं थे, कौरवों की सभा में या तो दुःशासन थे या भीष्म पितामह. द्रौपदी इस बार नंगी हो गयी.
कई लोगों को यह दृश्य देखकर फूलन की याद आयी और उन्होंने कहा कि द्रौपदी को फूलन बन जाना चाहिए. बिहार में मल्लाहों के नेता फूलन को अपना आइकन बनाने की कोशिश में जुटे हैं. मगर वह न द्रौपदी थी, न फूलन वह उस बेहया शहर की एक रंडी थी. वह उस आरा की रंडी थी, जहां रंडियों के नाम से दो चौराहे हैं. जहां के सबसे बड़े आइकन वीर कुंवर सिंह ने वेश्या के तौर पर मशहूर अपनी प्रेमिका को वह सम्मान दिया जो लोग अपनी विवाहिता को भी नहीं देते. फिर याद आया कि इसी शहर की वह कहानी थी, अनारकली ऑफ आरा, जिसे अविनाश दास ने फिल्माया था, जिसमें एक रंडी ने छिछोरे वीसी से टक्कर ली थी और उसे पटखनी दी थी. मगर उसी आरा में एक औरत नंगी घुमाई जा रही थी और लोग किलकारी मार रहे थे और वीडियो बना रहे थे.
तभी कहीं से कूदता हुआ दुःशासन आया और उसने द्रौपदी के पीठ पर छलांग लगा दी. द्रौपदी खट से बैठ गयी और लोग उस पर हमलावर होने लगे. द्रौपदी अभी भी अस्पताल में उस चोट से उबर रही है. वे 15 से 25 साल के छोकरे जो इस दृश्य में दुःशासन का किरदार निभा रहे थे, उनकी तसवीरें पूरी दुनिया ने देखी, घर वालों ने भी देखी होगी. पता नहीं घर वालों ने उन छोकरों के साथ क्या किया होगा. और उस मरने वाले युवक के बारे में उसके जानने वाले क्या-क्या सोच रहे होंगे, जिसका शव रेडलाइट के सामने मिला था. धृतराष्ट्र मौन हैं, दुर्योधन और दु्ःशासन चिघ्घार रहे हैं, भीष्म और द्रोण और विदुर शर्मिंदा हैं, पांडव सिर झुकाए बैठे हैं और द्रौपदी की चीख वायरल हो रही है.
(पुष्य मित्र प्रभात खबर में पत्रकार हैं, यह आलेख उनके फेसबुक टाइम लाइन से साभार लिया गया है)
Related News
इसलिए कहा जाता है भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर
स्व. भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष सबसे कठिन जाति अपमाना / ध्रुव गुप्त लोकभाषाRead More
पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए ‘कार्तिकी छठ’
त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें कठिन माना जाता है, यहांRead More
Comments are Closed