बिहार के स्टुडेंटों के लिए जानिए कैसा होता है दिल्ली विश्वविद्यालय में मिशन एडमिशन!

अरुण कुमार
बिहार से बड़ी संख्या में विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन के लिए आ रहे हैं। जिस दिन से एडमिशन प्रक्रिया शुरू हुई है उसी दिन से मित्रों, रिश्तेदारों और जान-पहचान के लोगों के फोन आ रहे हैं। ये लोग चाहते हैं कि इनके बच्चे के एडमिशन के लिए कुछ पैरवी हो जाए। बच्चों के मार्क्स चाहे जितने हों लेकिन सबको डीयू के सबसे नामी कॉलेजों में एडमिशन चाहिए। एक मित्र के बच्चे का एक मनपसंद कॉलेज में एडमिशन नहीं हो पा रहा है क्योंकि जरूरी मार्क्स से उसे 2 प्रतिशत कम मार्क्स मिले हैं। मित्र कहने लगे कि क्या 2 प्रतिशत के लिए बच्चे का एडमिशन नहीं हो पायेगा। कौन ची के नेता बनते हैं। कुछ ले दे के व्यवस्था कीजिये। आप दिल्ली जाकर बिगड़ गए हैं। आप कौनो काम कहिये पटना में नहीं कराए तो जूता से मारियेगा। मित्र को कौन समझाए कि डीयू में पैरवी नहीं होती।
एक बार की बात है ट्रेन से मुज़फ्फरपुर जाना था। टिकट थी नहीं फिर भी सीधे बिहार सम्पर्क क्रांति ट्रेन में पहुंच गया। टीटी से बात हुई तो वे पैसे लेकर ले चलने के लिए तैयार हुए। टीटी ने कहा कि जाकर मेरी सीट पर बैठिए आते हैं तो बात करेंगे। वे तीन चार घण्टे के बाद आए तो मुझसे पूछा कि क्या करते हैं? मैंने कहा कि पत्रकार हैं। इतना सुनकर कहने लगे कि हम आपको फ्री में ले चलेंगे बस आप मेरे बेटे का डीयू में एडमिशन करा दीजिये। आपलोगों का तो कोटा होता होगा। मैंने कहा कि कोटा तो नहीं होता लेकिन वीसी को कह देंगे तो हो जाएगा। वे दया भाव से देखने लगे। एक कागज पर बच्चे का रॉल नम्बर और फोन नम्बर लिख कर दिया। हम भी जेब में रखकर पसरकर सो गए। बाद में जब लिस्ट आयी तो उन्हें फोन करके बता दिया कि फलाने कॉलेज में जाकर एडमिशन ले लीजिए। बेचारे अब तक एहसान मानते हैं। कोई उन्हें बताए कि डीयू में एडमिशन में पैरवी नहीं होती।
अच्छा एक बात और है! यदि बच्चे का एडमिशन मेरिट पर भी हो जाये तो भी कुछ लोग ऐसे हैं जो शेखी बघारने के लिए कहते हैं कि पैरवी कराए हैं। ट्रेन में एक व्यक्ति मिला जिसके बच्चे का एडमिशन डीयू के एक कॉलेज में हुआ था। बातचीत में कहने लगा कि चार बार मन्त्री जी ( राधामोहन सिंह ) से फोन कराए हैं तब जाके एडमिशन हुआ है। मन्त्री जी को कह दिए थे कि एडमिशन नहीं हुआ तो मोतिहारी से सांसदी भूल जाइए। एक लाख 29 हजार भोट है हमारे बिरादरी का।
( अरुण कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं. यह आलेख उनके फेसबुक टाइमलाइन से साभर लिया गया है )





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