क्या ओबीसी आरक्षण के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा हैं ओबीसी प्रधानमंत्री?
संजीव चंदन
कथित ओबीसी प्रधानमंत्री को ढाल बनाकर ही ओबीसी सहित सभी वंचितों के आरक्षण के साथ खेल रहा है संघ और संघ का ब्राह्मणवादी गिरोह. आरक्षण पर घोषित-अघोषित हमले हो रहे हैं. एक ओर दलितों के घर खाना खाने का ढोंग, गैस सिलेंडर पहुंचाने का दिखाऊ कदम तो दूसरी ओर बहुजन समूह में बन रहे मध्यम वर्ग की रीढ़ पर ही हमला.
मसले कई और भी हैं, लेकिन एक मामला लेकर कल हम रायसीना के नॉर्थ ब्लॉक गये थे, गृह राज्य मंत्री से मिलने. मामला पिछले दो-तीन सालों में यूपीएससी द्वारा चयनित ओबीसी कैंडीडेट्स का था. उन्हें चयन के बावजूद गलत आधार पर क्रीमी लेयर में डाल दिया गया है और इस तरह उनकी नियुक्ति रोक दी गयी है. पूरे देश से ऐसे 40 से ज्यादा ओबीसी कैंडिडेट हैं. नियम से बाहर जाकर क्रीमी लेयर तय करते हुए मनमाने तरीके से वेतन और कृषि आय को क्रीमी लेयर के लिए निर्धारित आय में जोड़कर यह खेल किया गया है. 1993 में क्रीमी लेयर के लिए गठित समिति ने कृषि आय और वेतन को क्रीमी लेयर निर्धारण से बाहर रखा था. दरअसल होता यह सालों से रहा है, लेकिन तब प्रति वर्ष संख्या एक-दो की होती थी, लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद इसकी रफ़्तार बढ़ गयी है. अब तो समिति की रिपोर्ट भी फ़ाइल से गायब बतायी जा रही है-सूचना अधिकार में यही जवाब मिल रहा है.
बाहर कर दिये गये लोग कैट (केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण) से और चेन्नई तथा दिल्ली हाईकोर्ट से जीत चुके हैं. तो सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इनके निर्णय को चुनौती दे दी है. यह सरकार अपनी ही वंचित जनता के खिलाफ युद्ध कर रही है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने जो हलफनामा दिया है उसे यदि कोर्ट मान्य कर लेती है तो क्रीमी लेयर की पूरी परिभाषा ही बदल जायेगी और फोर्थ ग्रेड तक में काम करने वाले मां-बाप के बेटे-बेटियाँ बड़ी नौकरियों में आ नहीं सकते. दुखद यह भी है कि यह केस जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के सामने लगा है.
भाजपा सरकार के ही कैबिनेट नोट में क्रीमी लेयर में इस गड़बड़झाले के खिलाफ संस्तुति की गयी है, लेकिन सरकार और उसके कर्ता-धर्ता कोर्ट में खेल कर रहे हैं. जब मंत्री महोदय को इस साजिश के बारे में बताया गया तो मामले को न्यायालय में निपट लेने की सलाह दे रहे थे और पर्टिकुलर मामलों की सुनवाई की दयानतदारी दिखाना चाहते थे.
सवाल है कि क्या यह सरकार के शीर्ष से किया जा रहा षड़यंत्र है? मेरा निष्कर्ष है कि शीर्ष षड़यंत्र नहीं कर रहा है, बस बहुजन-विरोधी संकेत तैर रहे हैं फिजां में, षड्यंत्र फाइलों पर बैठे द्विज अफसर कर ले रहे हैं. ऊपर सुनवाई नहीं है. पिछले तीन सालों से ये चयनित अफसर न्यायालयों का चक्कर काट रहे हैं. कुछ तो डिप्रेशन में चले गये हैं. उधर सरकार क्रीमी लेयर को बदलने वाला हलफनामा लेकर आ रही है.
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