विद्या के मंदिरों में दाग अच्छे नहीं लगते
‘तुम मरोगे नहीं, तो स्कूल में छुट्टी कैसे होगी’… कहते हुए छात्रा ने मासूम को मारा चाकू”
राजू एस यादव ( राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षक पुरस्कार प्राप्त )
आखिर ऐसा क्या पढ़ाया जा रहा है इन बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और महंगे स्कूलों में। समझ नहीं रेयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युम्न की हत्या का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अब लखनऊ के अलीगंज स्थित ब्राइटलैंड स्कूल की एक छात्रा ने अपने स्कूल के बच्चे को सिर्फ इसलिए चाकू घोंप दी क्योंकि वो स्कूल में छुट्टी कराना चाहती थी। ये क्या पढ़ाया जा रहा है इन तथाकथित स्कूलों में। ये कैसी शिक्षा दी जा रही है नासमझ नौनिहालों को। सिलेबस में संवेदनशीलता नहीं है क्या। ऊंची बिल्डिंग्स ने ईमान नीचे गिरा दिया क्या। ज्यादा फीस ने जमीर सस्ता कर दिया क्या। जिन स्कूल की छतों पर छप्पर नहीं होता। बैठने के लिए दरी नहीं होती। पढ़ाई खुले मैदानों में होती है। इतनी मानवीय मूल्यों की इतनी गिरावट तो वहां भी नहीं हैं। जिम्मेदार कौन है स्कूल, शिक्षक, पैरेंट्स? तलाशना पडेगा। जितना जल्दी हो उतना। वरना विद्या के ये मंदिर दानव पैदा करने लगेंगे। सबको सोचना है, हम सभी को मिलकर सोचना है। गलती किसी की भी पर अब आगे ऐसी घटना न हो। विद्या के इन मंदिरों में दाग अच्छे नहीं लगते। आईए मिलकीर प्रयास करते हैं। कुछ तो बदलेगा। थोड़ा ही सही।
-स्कूलों में पढ़ाई के साथ ही संस्कारों पर भी जोर दिया जाए। बच्चों को सिखाया जाए आत्मीयता, आपसी प्रेम क्या होता है।
-अमीरी-गरीबी का भेद शिक्षा के दौरान खत्म कर दिया जाए। बच्चों के आर्थिक स्टेट्स के आधार पर तवज्जो न दी जाए। स्कूल आते ही सारे बच्चे सिर्फ स्टूडेंट्स रह जाएं। अमीरी-गरीबी स्कूल के बाहर ही छूट जाए।
-शिक्षकों को नौकर नहीं गुरू बनाएं। प्राइवेट स्कूल संचालक मैनेमेंट के नाम पर उन्हें मशीन न बना दें। वो जब शिक्षकों की इज्जत करेंगे तब ही बच्चे भी सम्मान में सिर झुकाएंगे।
-बच्चे आपके बच्चे तभी रहेंगे जब वे संस्कारी होंगे। उन्हें सिर चढ़ाने की जगह सिर झुकाने सिखाईए। विनम्रता पैदा कीजिए।
-संसाधन देने से पहले संस्कारों की परवाह कीजिए। वरना यही बच्चे आपकी सबसे बढ़ी गलती होंगे।
-ऐसे स्कूलों में बच्चों को भेजना बंद कर दीजिए। जो बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स, गैर जरूरी सुविधाएं देकर उनके वर्तमान को खराब कर रहे हैं। बच्चों को सिर्फ ज्ञान की जरूरत है सुविधाओं की नहीं। फैसला आपको करना है शिक्षा की दुकानों में बच्चों को भेजना है या फिर ज्ञान के मंदिर में।
-स्कूलों को मंदिर रहने दीजिए। बाजारीकरण भावनाएं शून्य कर देता है। ऐसे में विकास सिर्फ ज्ञान का होगा। चरित्र और आत्मा दोनों खत्म हो जाएंगे।
-ध्यान रखें हमें बच्चों को पैसा कमाने की मशीन नहीं बनाना है उन्हें अच्छा इंसान बनाई।
-बच्चों पर उम्मीदों का, अंकों की, एक्टीविटी का इतना दबाब मत डालिए कि वे अपना सबकुछ खत्म कर दें।
-बच्चों को स्वतंत्रता दीजिए जीने की। पढ़ने की। आगे बढ़ने की।
-भरोसा पैदा करिए। भरोसा कीजिए। भरोसा करने दीजिए।
हमें खुद मिलकर बदलाव लाना है। समाज में। घर में। परिवार में। तभी अच्छा देश बनेगा। तभी अच्छे हम बनेंगे। राजू एस यादव ( राष्ट्रीय विज्ञान शिक्षक पुरस्कार प्राप्त ) जिला समन्वयक, सम्भल उ० प्र०
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