जानिए बीट क्वाइंन के बारे में : आभासी मुद्रा की नयी दुनिया बिट क्वाइन
व्यालोक.
भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी के बारे में एक बात जानने लायक है. यह आश्चर्य की बात है कि यह धनकुबेर अपनी जेब में पर्स नहीं रखता है. वे पर्स इसलिए नहीं रखते, क्योंकि अपने पास नकद पैसे नहीं रखते. वैसे भी, मुकेश अंबानी को जिस किसी चीज की जरूरत होगी, वह नकदी के बिना ही उनके कदमों में हाजिर हो जाती है. मुकेश अंबानी की तरह ही आज दुनियाभर में बहुत से नेटिजन (कंप्यूटर-साक्षर लोग) नकदी के बिना भी लेन-देन धड़ल्ले से कर रहे हैं. ये लोग अब एक वैकल्पिक मुद्रा का भी सृजन कर रहे हैं और इस वचरुअल मुद्रा ‘बिट क्वाइन’ की अच्छी-खासी कीमत भी वसूल रहे हैं.
क्या है बिट क्वाइन
मानव सभ्यता के इतिहास में किसी भी वस्तु के लेन-देन के लिए मुद्रा का चलन बहुत बाद में शुरू हुआ. फिर कई पायदानों से गुजरते हुए मौजूदा मुद्रा व्यवस्था का सृजन हुआ. आज के डिजिटल युग में अब एक वचरुअल मुद्रा यानी बिट क्वाइन का प्रचलन शुरू हो गया है. यह एक विकेंद्रीकृत और साथियों के बीच की डिजिटल मुद्रा और भुगतान का नेटवर्क है. यह पूरी तरह इस विश्वास पर कायम है कि बिट क्वाइन की एक कीमत है. पारंपरिक मुद्राओं के उलट, यह किसी देश या बैंक से नहीं जुड़ा होता है, न ही इसका कोई भंडार (रिजर्व) होता है.
बिट क्वाइन पूरी तरह आपसी प्रतिष्ठा पर आधारित है और इसका व्यापार वेबसाइट पर होता है. यह मुद्रास्फीति के ऊपर और नीचे होने से भी मुक्त है. ब्याज दर और बाजार के उतार-चढ़ाव का भी इस पर असर नहीं होता है, बल्कि इसकी कीमत वितरण में आयी बिट क्वाइन की संख्या से ही तय होती है. बिट क्वाइन के वितरण की उच्चतम संख्या 210 लाख तक रखी गयी है. सभी मुद्राओं का आधार एक तरह का सहमति-जन्य मतिभ्रम होता है. बिट क्वाइन के इस्तेमाल के लिए तो इसकी सबसे अधिक जरूरत होती है. यह डिजिटल टोकन पर चलनेवाली मुद्रा है, जिनका वास्तव में कोई अंतर्निहित मूल्य नहीं होता है. किसी केंद्रीय व्यवस्थापक पर विश्वास करने के बजाय यह सबसे अधिक भरोसे पर आधारित होता है. यह एक ऐसे ट्रांजेक्शन-लेजर पर काम करता है, जिसको मुद्रा के इस्तेमाल करनेवाले संयुक्त तौर पर इसका नियंत्रण करते हैं. इस लेजर/ बही को क्रिप्टोग्राफिक तरीके से जांचा जाता है.
कैसे काम करता है यह
बिट क्वाइन की वेबसाइट के मुताबिक, बिट क्वाइन किसी मोबाइल एप या कंप्यूटर प्रोग्राम से अधिक कुछ भी नहीं है, जो एक व्यक्तिगत बिट क्वाइन वॉलेट मुहैया कराता है. यह इस्तेमाल करनेवाले को इसके तहत बिट क्वाइन भेजने और लेने में सक्षम बनाता है. बिट क्वाइन भी लेन-देन के जरिये ही खरीदे जाते हैं. इस प्रक्रिया में पहले तो एक एकाउंट बनाया जाता है, फिर उस एकाउंट में फंड का ट्रांसफर किया जाता है, ताकि बिट क्वाइन खरीदे जा सकें. इसका लेन-देन व्यवस्था के प्रतिभागियों द्वारा लगभग शून्य भुगतान पर किया जाता है. इसमें किसी दूसरे मध्यस्थ या तीसरे भरोसेमंद पार्टी की जरूरत भी नहीं होती है. भुगतान एक बार करने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता है. यह सार्वजनिक और स्थायी भुगतान होता है. बिट क्वाइन का गणितीय सिद्धांत परिष्कृत और श्रेष्ठ है. यह सुनिश्चित करता है कि मुद्रा का वितरण एक निश्चित दर पर ही बढ़े. यह समय के साथ धीमा पड़ता है और फिर पूरी तरह रुक भी जाता है. हालांकि, इसमें पहचान गुप्त रखी जाती है, पर सही सावधानी बरतनी पड़ती है. शायद यही वजह है कि यह कंप्यूटर निरक्षरों, अराजकतावादियों, ड्रग्स बेचनेवाले और सोने के तस्करों तक में एक जैसा ही लोकप्रिय है.
बिट क्वाइन की शुरुआत
इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में हुई. उस वक्त दुनिया में आर्थिक संकट अपने चरम पर था. माना जाता है कि बिट क्वाइन की शुरुआत सतोशी नाकामोटो नामक एक छद्म लेखक के एक शोधपत्र से हुई थी. इसमें जो तकनीकी ज्ञान दिया गया था, उसे अगले वर्ष कार्यान्वित किया गया. अचानक ही 2012 में यह काफी चरचा में आया और तब से अब तक सुर्खियों में है. मजे की बात यह है कि यह किसी साफ-सुथरे उत्पाद की श्रेणी में नहीं आता. इसे आभासी मुद्रा ही कहा जाता है. दुनिया में यह कहीं भी कानूनी रूप से मान्य नहीं है. यह अधिकतर निवेशकों के लिए आय पैदा करनेवाला कोई काम नहीं है. डॉलर में इसका मूल्य प्रत्येक मिनट बदलता रहता है. हालांकि, यह मुद्रा के लेन-देन का एक आसान तरीका हो सकता है, लेकिन पूरी तरह विश्वसनीय बनने में इसकी राह में अभी कई सारी दिक्कतें हैं. यहां तक कि इसके पैरोकार भी इसे पूरी तरह सुरक्षित नहीं बताते हैं. इसके समर्थकों का मानना है कि यह बहुत हद तक प्रयोग के चरण में ही है और इसे फिलहाल तो उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए बेहद खतरे का वायरस ही मानना चाहिए. हालांकि, इसे काफी सराहना भी मिल रही है और इसके चाहनेवालों में रिचर्ड ब्रैंसन से लेकर जर्मनी का वित्त विभाग तक शामिल है.
बिट क्वाइन में प्रभाविता (एफिशिएंसी) का कारक बहुत अधिक है. इसमें मुद्रा दुनिया के किसी भी कोने में तुरंत भेजी और पायी जा सकती है. इसके लिए किसी भी बैंक या बिचौलिये की जरूरत नहीं होती है. इसके काम करने के लिए बहुत अधिक फीस की जरूरत भी नहीं होती और लगभग बहुत कम दाम में इसकी प्रोसेसिंग हो सकती है. इसके साथ ही व्यक्ति की निजता भी सुरक्षित रहती है. लेन-देन (ट्रांजेक्शन) में उपभोक्ताओं की व्यक्तिगत सूचना का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इस वजह से पहचान की चोरी नहीं किये जाने का पूरा भरोसा रहता है. साथ ही, इस्तेमाल करने वाले अपने लेन-देन का पूरा नियंत्रण कर सकते हैं. सारा लेन-देन पूरी तरह से सार्वजनिक होता है. इस वजह से सारा लेन-देन डाटाबेस में उपलब्ध होता है. इसके इन्हीं गुणों की वजह से निवेशक बिट क्वाइन से संबंधित निवेशों को समर्थन दे रहे हैं. जर्मनी के वित्त मंत्रलय ने इसे ‘खाते की एक इकाई’ (यूनिट ऑफ एकाउंट) के तौर पर मान्यता भी दे दी है. इसके अलावा वरिष्ठ अधिकारियों ने पिछले माह नवंबर में अमेरिकी सीनेट की एक समिति को कहा है कि आभासी मुद्राओं के वास्तविक इस्तेमाल भी हैं.
हालांकि, इसका उलटा असर भी हुआ है. अमेरिका के फेडरल ब्यूरो ने इसी साल सिल्क रोड नाम के ऑनलाइन फोरम को बंद कर दिया है, क्योंकि वहां अवैध वस्तुओं और सेवाओं को बिट क्वाइन से बदला जा रहा था. बिट क्वाइन की चोरी के भी कई मामले हुए हैं. इसे उतना भरोसेमंद भी नहीं माना जा रहा है.
भारत में बिट क्वाइन
भारत में बिट क्वाइन को बढ़ावा देने और इसके प्रचार-प्रसार के मकसद से बेंगलुरु में 14-15 दिसंबर को सम्मेलन आयोजित किया जायेगा. देश में पहली बार इस तरह का सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. साइबरस्पेश से जुड़े लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है. देश में एक बड़ा समुदाय बिट क्वाइन के प्रति बेहद आशान्वित है, जिनकी संख्या 50 हजार से ज्यादा बतायी गयी है. बिट क्वाइन इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक, इस सम्मेलन में अनेक वक्ता, पैनलिस्ट, विक्रेता, प्रायोजक आदि भागीदारी निभायेंगे और इसकी राह में आनेवाली चुनौतियों पर बातचीत करेंगे. इस सम्मेलन का मकसद यह जानना है कि मौजूदा समय में भारत में ‘वचरुअल करेंसी इंडस्ट्री’ की क्या स्थिति है और भविष्य में इसके लिए किस तरह के अवसर पैदा हो सकते हैं. इसके अलावा, इसमें बिट क्वाइन एटीएम भी प्रदर्शित किया जायेगा. क्रेता और विक्रेता के बीच किस तरह से इसका व्यापार किया जाता है और स्वर्ण के बदले किस तरह इसकी खरीदारी की जा सकती है; इन तमाम मुद्दों पर यहां चरचा की जायेगी. सम्मेलन में लेन-देन प्रक्रिया समेत भुगतान पद्धति से जुड़ी अनेक व्यापारिक गतिविधियों और उनके तरीकों पर व्यापक जानकारी मुहैया करायी जायेगी, ताकि लोगों के बीच इसे ज्यादा से ज्यादा स्वीकार्य और लोकप्रिय बनाया जा सके.
क्या यह मुद्रा का अंत है!
फिलहाल, तो ऐसा कुछ नहीं लगता है. बिट क्वाइन में इतना अधिक उतार-चढ़ाव है कि उसे अभी वास्तविक (भौतिक) मुद्रा की जगह लेने में काफी वक्त लगेगा. एक बिट क्वाइन का मूल्य महज एक साल में 10 डॉलर से सैकड़ों डॉलर में पहुंच चुका है. वैंकूवर में हालांकि, इसके बदले भौतिक मुद्रा देने का दावा करनेवाला एटीएम भी बैठ चुका है. आभासी दुनिया एक सच तो है, लेकिन यह महज एक हिस्सा ही है. अभी इसे पूरी तरह सच बनने में वक्त लगेगा.
बिट क्वाइन को कोई टकसाल नहीं ढालता है, इसलिए इसका लेन-देन दूसरी मुद्राओं की तरह वैधानिकता को मानने के लिए बाध्यकारी नहीं है. हालांकि, बिट क्वाइन का प्रत्येक लेन-देन सार्वजनिक होता है, इसके उपयोगकर्ता की पहचान गुमनाम ही होती है. इसलिए इसे ट्रैक करना कठिन होता है, खास कर चोरी के मामले में. सिल्क रोड का मामला ऐसा ही है. उसने उपयोगकर्ताओं के गुमनाम रहने का फायदा उठा कर उसके विकास का फायदा उठा लिया. हालांकि, बिट क्वाइन की वेबसाइट का दावा है कि इसमें सबसे बड़ी गलती इस्तेमाल करनेवालों के भोलेपन की है. जिस तरह भौतिक मुद्रा की चोरी की जाती है, उसी तरह बिट क्वाइन के वॉलेट की भी चोरी हो सकती है. एक और बात यह है कि इसकी व्यवस्था स्वयं से इस्तेमाल करनेवालों को पुरस्कार देता है. ये वॉलंटियर माइनर्स के नाम से जाने जाते हैं. ये नये लेन-देन को ब्लॉक में बदलते हैं और उसे श्रृंखला की अंतिम कड़ी तक जोड़ते हैं. माइनर इस नेटवर्क को रिकॉर्ड भी करते रहते हैं और नये ब्लॉक बनाने की जटिल गणना भी करते हैं. हरेक दस मिनट पर एक भाग्यशाली माइनर को 25 बिट क्वाइन का रिवार्ड मिलता है. with thanks from Prabhat Khabar
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