चारा घोटाला: लालू से जुड़ा 23 का अजब संयोग : जानिए घोटाले व कोर्ट से जुडी कुई महत्वपूर्ण बातें
चारा घोटाला: लालू से जुड़ा 23 का अजब संयोग : जानिए घोटाले व कोर्ट से जुडी कुई महत्वपूर्ण बातें
पटना [रवि रंजन]। तत्कालीन बिहार-झारखंड के बहुचर्चित चारा घोटाला के एक मामले में शनिवार 23 दिसंबर को रांची की विशेष सीबीआइ कोर्ट बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के भाग्य का फैसला करेगी। यह मामला देवघर जिला कोषागार से 84.5 लाख की फर्जी निकासी (आरसी 64ए/96) का है। इस मुकदमा के 34 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है, जबकि एक सीबीआइ का अनुमोदक बन चुका है। एक दिलचस्पा पहलू यह भी है कि लालू के साथ 23 अंक का अजब संयोग जुड़ा है, बात चाहे चारा घोटाले की हो या किसी अन्य की।
23 दिसंबर 2017 को आएगा फैसला : इस मामले में सीबीआइ के विशेष न्यायधीश शिवपाल सिंह 23 दिसंबर को फैसला सुनाने वाले हैं। 23 दिसंबर को सभी आरोपियों को कोर्ट में हाजिर रहने का आदेश दिया है। इसके लिए लालू रांची पहुंच चुके हैं। उनके साथ पुत्र तेजस्वी यादव भी हैं। इसके पहले भी लालू प्रसाद यादव तथा डॉ. जगन्नाथ मिश्र चारा घोटाला के एक अन्य मामले में दोषी करार दिए जा चुके हैं।
23 जून 1997 को हुआ था चार्जशीट : चारा घोटाला का मुकदमा 20 साल से चल रहा है। इस दौरान 23 का संयोग उनका पीछा नहीं छोड़ रहा। बात 20 साल पहले से शुरू करें तो चारा घोटाला में सीबीआइ ने लालू प्रसाद यादव व डॉ. जगन्नाथ मिश्रा सहित 55 आरोपियों के खिलाफ 23 जून 1997 को चार्जशीट दाखिल की थी।
जिंदा बचे 23 आरोपी
चारा घोटाला के वर्तमान मुकदमा के 34 आरोपियों में से 11 की मौत हो चुकी है। इसके बाद 23 आरोपी बचे हैं। हालांकि, इनमें से एक सीबीआइ का अनुमोदक बन चुका है।
एक अन्य मामले में 23 नवंबर 2006 को बहस पूरी हुई थी, लालू हुए थे बरी
चारा घोटाले से इतर आय से अधिक संपत्ति मामले में विशेष सीबीआई न्यायाधीश मुनि लाल पासवान ने 18 दिसंबर 2006 को लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को मामले से बरी कर दिया था, जिसमें लालू पर उस समय आय के ज्ञात स्रोतों से 46 लाख रुपये अधिक की संपत्ति अर्जित करने का आरोप था, जब वह 1990 से 1997 के बीच मुख्यमंत्री थे। इस मामले में भी बहस 23 नंवबर को ही पूरी हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था झटका : झारखंड हाईकोर्ट ने नवंबर 2014 में लालू को राहत देते हुए उनपर लगे घोटाले की साजिश रचने और ठगी के आरोप हटा दिए थे। फैसले में कहा गया था कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार सजा नहीं दी जा सकती। इस फैसले को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए लालू पर आपराधिक केस चलाने की अनुमति दे दी थी। साथ ही नौ महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का आदेश भी दिया था।
क्या है मामला
पुलिस ने 1994 में संयुक्त बिहार के देवघर, गुमला, रांची, पटना, चाईबासा और लोहरदगा समेत कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगी तो पटना हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया और जांच का काम सीबीआई को सौंपा। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद भी चपेट में आ गए। आरोप पत्र दाखिल होते ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा और बाद में कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी।
चारा घोटाले के 47 मामलों में आ चुका है फैसला
चारा घोटाले के 54 मामले दर्ज किए गए थे। इसमें रांची सीबीआइ में 53 और भागलपुर कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले की सुनवाई पटना सीबीआइ कोर्ट में चल रही है। अधिवक्ताओं के अनुसार इसमें अबतक 47 मामलों में फैसला आ गया है। जिसमें 1404 आरोपियों को सजा मिली है। कई अभियुक्त वैसे हैं जो अन्य मामलों में भी अभियुक्त हैं।
मूल रूप से करीब 160 आरोपी हैं। रांची में छह मामले अभी और बचे हैं। चार वैसे मामले हैं जिसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद, डॉ. जगन्नाथ मिश्रा सहित नेता व पशुपालन पदाधिकारी शामिल हैं। वहीं दो मामलों में आपूर्तिकर्ता व अधिकारी शामिल हैं। चारा घोटाला में वर्ष 2004 से फैसला सुनाया जाना शुरू हुआ था।
चाईबासा कोषागार से संबंधित चारा कांड संख्या आरसी 20ए/96 वीआइपी से जुड़ा पहला मामला है। जिसमें सजल चक्रवर्ती को भी सजा सुनाई गई। जानकार अधिवक्ताओं के अनुसार चारा घोटाला का पहला फैसला 31 मार्च 2004 को सुनाया गया था। वर्ष 2004 में कुल तीन मामलों में फैसला आया था। इसमें 18 अभियुक्तों को सजा सुनाई गई थी।
किस वर्ष कितने मामले व कितने अभियुक्तों को मिली सजा
वर्ष मामला सजा
2004 3 18
2005 5 52
2006 8 178
2007 7 252
2008 5 164
2009 6 208
2010 3 75
2011 1 62
2012 5 255
2013 2 55
2014 1 43
2016 1 42
कुल 47 1404
तारीखों में चारा घोटाला मामला
11 मार्च 1996 – पटना हाइ कोर्ट ने चारा घोटाले की जांच सीबीआइ से कराने का दिया आदेश।
19 मार्च 1996 – सुप्रीम कोर्ट ने हाइ कोर्ट से सीबीआइ जांच की मॉनिटरिंग करने को कहा।
10 मई 1997 – सीबीआइ ने सरकार से लालू सहित अन्य के खिलाफ मांगी अभियोजन स्वीकृति
17 जून 1997 – मुकदमा चलाने की मिली मंजूरी
23 जून 1997 – आरसी 20ए/96 में लालू सहित 56 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल
17 सितंबर 2013 – बहस पूरी
30 सितंबर 2013 – लालू सहित 45 दोषी
3 अक्टूबर 2013 – लालू प्रसाद, डॉ. जगन्नाथ मिश्रा को सुनाई गई सजा
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