हुजूर आप तो हारते-जीतते है, हम सिर्फ हारते-हारते है… – शशि शेखर
पक्का नहीं, अनुमानत: कह सकता हूं कि डीयू की ज्यादातर लडकियों ने एबीवीपी को वोट नहीं दिया होगा? इसलिए, क्योंकि बच्चे कॉलेज आते है, पढाई करने, मस्ती करने, दोस्ती करने. न कि राष्ट्रवाद की पाठशाला अटेंड करने. एक आम भारतीय छात्र दसवी पास करते-करते राष्ट्रवाद की घुट्टी पी चुका होता है. वन्दे मातरम नाम का अजपा मंत्र उसके दिलो दिमाग में पहले से मौजूद रहता है. अब वो डीयू जैसे कैंपस में आता है, तो इसलिए नहीं कि आप उसे ये सब सिखाएं. शायद उन्हें ये भी याद होगा कि कैसे डीयू की ही एक लडकी गुरमेहर कौर की बेइज्जती इनलोगों ने राष्ट्रवाद के नाम पर की. बेटी बचाओ, बेटी बढाओ के दौर में ये कृत्य देख कर डीयू की लडकियों को इनका असली रंग का पता चल गया होगा.
अनुमानत: ये भी कह सकता हूं कि एबीवीपी की हार की एक बडी वजह केन्द्र् सरकार की आर्थिक नीति और शिक्षा नीति भी रही होगी. माना जा रहा था कि युवा, कॉलेज के बच्चे मोदी गवर्नमेंट के पक्के समर्थक है. मोदी मैजिक से अभिभूत है. लेकिन, क्या हुआ कि दिल्ली में एबीवीपी को हार का सामना करना पडा. मुझे लगता है कि ये बच्चे इंडिया टीवी, जी न्यूज के साथ-साथ इंडिया स्पेंड जैसी वेबसाइट भी देखते होंगे, जिससे उन्हें पता चलता होगा कि आज देश में नौकरी की क्या हालत है. रोजगार कैसे घट रहा है.
आप चाहे तो मेरे सारे अनुमानों को खारिज कर दे. मैं ये भी मान लेता हूं कि अभी भी भाजपा के पास मुसलमान नाम का एक ऐसा दुश्मन है जिसका भय दिखा कर 2019 में फिर से वोट हासिल किया जा सकता है. जैसाकि, गुजरात मॉडल भी रहा है. लेकिन, भाई साहब यकीन मानिए, 80 रूपये पेट्रोल, 70 रूपये टमाटर, बैंकों की 4 फीसदी ब्याज दर के इस युग में आम आदमी का तेल निकाल दिया है आपने. ये अभी-अभी जो 1 फीसदी महंगाई भत्ता आपने दिया है केन्द्रीय कर्मचारियों को, उसका आधा फीसदी भी हम प्राइवेट जॉब वालों को नहीं मिलता. मुश्किल से 6-7 फीसदी सलाना वेतन वृद्धि होती है. लेकिन, आपको मालूम है सरकार, होटल में खाना खाता हूं, पिछले छह महीने में 3 रूपये की रोटी 4 रूपये हो गई है. 20 का आलू परांठा 25 का हो गया है. मोटामोटी 20 से 25 फीसदी का इजाफा हो चुका है. मेरी महंगाई यही है. 2019 आप भले जीत जाए, हम जनता हमेशा की तरह इस बार भी हार गए…
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