मंगल पर इंसानी बस्तियों का सपना जल्द होगा साकार, नासा कर रहा ऐनर्जी पर अहम प्रयोग

वॉशिंगटन. ए. अगर सबकुछ योजना के मुताबिक रहा, तो जल्द ही मंगल ग्रह पर इंसान बसने लगेंगे. स्पेस एजेंसी नासा एक छोटा न्यूक्लियर रिऐक्टर विकसित करने की कोशिश कर रहा है. अगर यह कोशिश सफल रहती है, तो मंगल पर जीवन बसाने की दिशा में आखिरी तकनीकी बाधा भी खत्म हो जाएगी. मंगल पर पानी की खोज होने के बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का सबसे प्रमुख मकसद वहां ऊर्जा पैदा करना था. नासा अपने किलोपावर प्रॉजेक्ट के तहत साढ़े 6 फुट ऊंचे रिऐक्टर्स की जांच कर रहा है. पिछले 3 सालों की मेहनत के बाद इसे विकसित किया गया है. ये रिऐक्टर्स सितंबर से शुरू होने वाले हैं. अगर ये रिर्क्टर्स डिजाइनिंग और प्रदर्शन की जांच में सफल पाए जाते हैं, तो नासा मंगल पर इनका परीक्षण करेगा. 81 करोड़ रुपये से ज्यादा की इस परियोजना को अमेरिका का ऊर्जा विभाग और नासा का ग्लेन रिसर्च सेंटर साथ मिलकर अंजाम दे रहे हैं.
40 किलोवॉट ऊर्जा की जरूरत
मंगल ग्रह पर मानव अभियान भेजने के लिए लगभग 40 किलोवॉट ऊर्जा की जरूरत पड़ती है. यह ऊर्जा धरती पर 8 घंटों की एनर्जी की खपत के बराबर है. इस ऊर्जा की जरूरत वहां ईंधन, हवा और पानी पैदा करने में होगी. साथ ही, उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी को रिचार्ज करने के लिए इसी ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा. हर एक रिऐक्टर 10 किलोवॉट ऊर्जा का उत्पादन करेगा. इसका मतलब कि मंगल पर 8 लोगों की एक कॉलोनी के लिए 4 रिऐक्टर्स की जरूरत पड़ेगी. ये रिऐक्टर्स यूरेनियम के अणुओं को लगभग आधे आकार में बांटकर गर्मी पैदा करते हैं. इस गर्मी को बिजली में तब्दील किया जा सकता है.
केवल सौर ऊर्जा से नहीं चलेगा काम
मंगल पर केवल सौर ऊर्जा के सहारे नहीं रहा जा सकता. इसका एक बड़ा कारण यह है कि धरती को सूर्य से जितनी ऊष्मा मिलती है, उसका केवल एक तिहाई हिस्सा ही मंगल को मिल पाता है. पिछले हफ्ते नासा पर आरोप लगा था कि वह गुपचुप तरीके से बच्चों को तस्करी कर मंगल ले जा रहा है. नासा ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों से इनकार किया है.






Comments are Closed

Share
Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com