विश्व पर्यावरण दिवस : विषैली गैसें गर्म तापमान में सूर्य की किरणों से बने ‘कॉकटेल’ आजोन का खतरा
नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन के साथ अपरिहार्य बन चुकी तेज गर्मी और बढ़ते तापमान से घातक ओजोन प्रदूषण के खतरे बढ़ रहे है जिससे दमा और श्वसन संबंधी बीमारियां उग्र रूप ले सकती हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था ‘सेंटर फार साइंस एंड एनवारयरमेंट'(सीएसई) ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि वाहनों और उद्योगों से उत्सर्जित होने वाली विषैली गैसें गर्म तापमान में सूर्य की किरणों के साथ मिलकर जो ‘कॉकटेल’ बना रही है उससे ओजोन गैस के बनने में मदद मिल रही है। रिपोर्ट में केंद्र सरकार के विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीईसी) द्वारा किए गए नवीनतम शोध का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस बार प्रचंड गर्मी से पूरे देश और खासकर दिल्ली में ओजोन में काफी बढ़ोतरी हुई है। सीईसी का यह शोध 2016 की गर्मियों और 2017 के दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के प्रमुख निगरानी केन्द्र से ‘वास्तविक समय वायु गुणवत्ता’ के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि ग्राउंड-लेवल ओजोन सीधे किसी भी स्रोत से नहीं निकलती, यह तब बनती है जब नाइट्रोजन के आक्साइड (एनओएक्स) और मुख्य रूप से वाहनों और अन्य स्रोतों से निकलने वाली विषैली गैसों की एक किस्म, सूर्य के प्रकाश में एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं। गर्म और स्थिर हवा में ओजोन का निर्माण बढ़ जाता है। सीईसी की प्रदूषण निगरानी कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी के अनुसार दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र कई किस्म के प्रदूषक तत्वों की गिरफ्त में हैं। पर्टिक्युलेट मैटर की समस्या से निबटने का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ है कि ओजोन के खतरे ने अपना सिर उठाना शुरू कर दिया है। समय रहते इससे निबटने की प्रभावी नीति नहीं बनाई गई तो यह खतरा भीषण रूप ले सकता है। सीईसी के अनुसार उसने ओजोन के स्तर को मापने के लिए फरवरी से मई महीने के बीच दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के आर के पुरम, पंजाबी बाग और आनंद विहार स्थित स्वचालित निगरानी केन्द्रों से ओजोन के आंकड़े इकठ्ठे किए और उनकी पिछले साल की इसी अवधि में एकत्रित आंकड़ों से तुलना की गई। इसके नतीजे बहुत ही चिंताजनक रहे हैं। सीएसई का कहना है कि फरवरी और मई के बीच गर्मी में आई तेजी से ओजोन का स्तर काफी बढ़ा है। फरवरी में जहां इसका प्रति घन मीटर स्तर 12 प्रतिशत रहा वही यह मार्च में बढ़कर 19 प्रतिशत पर आ गया। अप्रैल में यह 52 प्रतिशत और मई में लंबी छलांग लगाते हुए 77 प्रतिशत पर पहुंच गया। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का कहना है कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। आंकड़े बताते हैं कि ओजोन के कारण समय से पहले होने वाली मौतों के मामले भारत में सबसे ज्यादा हैं। ओजोन के प्रभाव से दमा और श्वसन संबंधी बीमारियां और बढ़ जाती हैं। उष्णकटीबंधीय और भूमध्य रेखा के पास वाले देशों में ओजोन बनने की प्रक्रिया ज्यादा तेजी से घटित होती है। इसलिए सरकार को इस बारे में ज्यादा गंभीरता से प्रयास करने होंगे और प्रभावी नीतियां बनानी होंगी। उसके मुताबिक धरती के तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए पेरिस जलवायु समझौते को अंगीकार कर भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों से निबटने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर चुका है लेकिन हानिकार गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले अमेरिका ने इस समझौते से हटकर एक सुरक्षित और स्वस्थ दुनिया के निर्माण के वैश्विक प्रयासों को बड़ा झटका दिया है। देखना यह है कि अमेरिका के हटने के बावजूद पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके दुनिया के बाकी करीब 200 देश इस हरी भरी पृथ्वी को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित बचाए रखने के लिए अपने प्रयासों में कितनी शिद्दत से जुटे रहते हैं।
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