950 करोड़ का चारा घोटाला, जानें इसमें कब-क्या हुआ

पटना. चारा घोटाला 1990 के बीच में बिहार के पशुपालन विभाग से जुड़ा हुआ मामला है। इस दौरान लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे। चारा घोटाले का खुलासा साल 1996 में सामने आया था। यह बिहार पशुपालन विभाग में से करोड़ों रुपए के गबन से जुड़ा मामला है। 90 के दशक की शुरुआत में बिहार के चाईबासा (अब झारखंड में) में सरकारी खजाने से फर्जी बिल लगाकर 37.7 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की गई।
चारा घोटाले में कुल 950 करोड़ रुपये के गबन किए जाने का आरोप है। चारा घोटाला मामले में कुल 56 आरोपियों के नाम शामिल हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और चारा सप्लायर तक जुड़े हुए हैं। आपको बता दें कि इस घोटाले से जुड़े 7 आरोपियों की मौत हो चुकी है जबकि 2 सरकारी गवाह बन चुके हैं तथा 1 ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और एक आरोपी को कोर्ट से बरी किया जा चुका है।
चारा घोटाला में लालू यादव पर 6 अलग-अलग मामले लंबित हैं और इनमें से एक में उन्हें 5 साल की सजा हो चुकी है। इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ षड्यंत्र का चार्ज रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि लालू के खिलाफ आईपीसी की धारा 201 और धारा 511 के तहत मामला चलेगा, लेकिन षड्यंत्र का आरोप रद्द कर दिया था। हालांकि सीबीआई ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।  सीबीआई ने अपनी हालिया अपील में हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें लालू प्रसाद यादव के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में केवल दो धाराओं के तहत सुनवाई को मंजूरी दी गई थी, जबकि अन्य आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि एक अपराध के लिए किसी व्यक्ति का दो बार ट्रायल नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान लालू की तरफ से राम जेठमलानी ने कहा था कि सभी मामलों में आरोप एक जैसे हैं इसलिए मामले को लेकर दर्ज किए गए अलग-अलग केसों को सुनने की जरूरत नहीं है।  सुप्रीम कोर्ट ने 20 अप्रैल को सुनवाई पूरी कर ली थी।
गौरतलब है कि झारखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा-201 और धारा-511 के तहत लालू प्रसाद यादव के खिलाफ मामले की सुनवाई चलती रहेगी।

चारा घोटाले में कब-कब क्या हुआ
जनवरी, 1996 : उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया।

11 मार्च, 1996 : पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई।

27 मार्च, 1996 : सीबीआई ने चाईबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की।

23 जून, 1997 : सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया।

30 जुलाई, 1997 : राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा।

5 अप्रैल, 2000 : विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया।

5 अक्टूबर, 2001 : उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया।

फरवरी, 2002 : रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।

13 अगस्त, 2013 : उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।

17 सितंबर, 2013 : विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।

30 सितंबर, 2013 : बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।

3 अक्टूबर, 2013 : सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था।






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