पंकज सिंह राणा हम पार्टी के प्रदेश महासचिव थे, अब जिलाअध्यक्ष बने हैं, यह प्रमोशन है या डिमोशन!

Displaying pankaj singh rahan with jeetanram majhi gopalganj.jpgसवाल-क्या पंकज सिंह राणा जैसे कार्यकर्ता जीतराम की पार्टी को ठग रहे है?
कार्यालय संवाददाता
बिहार कथा. गोपालगंज. हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) का बिहार की राजनीतिक भूमिका उसी वक्त करीब-करीब खत्म हो गई थी जब विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली. पार्टी के मुखिया जीतनराम मांझी दो आरक्षित जगह से लड़े, लेकिन जैसे तैसे एक जगह से जीत कर पार्टी का खाता खोला. मजेदार बात यह है कि इस पार्टी के विभिन्न पदों ने अधिकतर उन लोगों ने कब्जा जमा लिया, जो दूसरे दलों से किसी न किसी कारण से छिटकें हुए थे या बेदखल किए गए थे. इसी क्रम में गोपालगंज में कई दलों के घाट-घाट का पानी पी कर निकले पंकज सिंह राणा ने हम में प्रदेश महासचिव का पद पाया.(जैसा उन्होंने गोपालगंज के  लोगों को बताया ) लेकिन आज उन्हें फेसबुक पर हम के जिला अध्यक्ष नियुक्त होने की बधाई मिल रही है. आश्चर्य की बात यह है कि पंकज सिंह राणा को पहले प्रदेश महासचिव का पद मिला भी था या नहीं? यदि मिला था तो अब उसके नीचे का पद देकर क्या उनका डिमोशन किया गया है. वैसे भी गोपालगंज जिले में हम का कोई राजनीतिक जनाधार नहीं है. इससे जुड़ कर पंकेज सिंह राणा गठबंधन दलों के राजनीतिक कार्यक्रम या फिर किसी अन्य संगठनों के कार्यक्रम में गाहे-बगाहे दिखते रहे हैं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हम के नाम तले पंकज सिंह राणा ने केवल अपनी निजी राजनीति चमकाई. संभवत : ऐसे कार्यकर्ताओं से ही जीतराम मांझी की यह पार्टी ठगी गई. ज्ञात हो कि जब से हम पार्टी से पंकज सिंह राणा जुड़े हैं, जिले में कोई टीम तक नहीं बनी. जनाधार के लिए कार्यकर्ताओं से जनसपंर्क तो दूर की बात है, सरकार की जनविराधी नीतियों की खिलाफत भी नहीं दिखी. हां, इधर-उधर के विषयों पर दो-चार शब्द पंकज सिंह राणा के फेसबुक पर जरूर दिखे. लेकिन ये पार्टी को मजबूती देने वाले शब्द नहीं, बल्कि लाइक बटोरने के लिए थे. कुछ महीने पहले एक मामले में पंकज सिंह राणा को पुलिस ने गिरफ्तार किया. इसको लेकर वे पुलिस पर जानबूझ कर कानूनी उत्पीड़न का आरोप लगाते रहे, लेकिन कभी उनकी पार्टी की ओर से किसी कार्यकर्ता ने विरोध तक दर्ज नहीं कराई. यदि किसी पार्टी का प्रेदश महासचिव गिरफ्तार हो जाता है तो कम से कम पार्टी अध्यक्ष उसको संज्ञान में लेकर राहत की पहल या उचित कदम उठाता है. लेकिन पंकज सिंह राणा के केस में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. उल्टे भाजपा का प्रतिनिधिमंडल जब कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के मामले में बिहार के डीजीपी से मुलाकात कर शिकायत किया तो उसमें पंकज सिंह राणा का नाम जोड़ दिया था.






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