केकड़ा कर रहा किसानों को मालामाल

 सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, मलेशिया और चीन के बाजारों में केकड़ों की भारी मांग
नई दिल्ली. ए
. केकड़ा पालन के क्षेत्र में आये क्रांतिकारी बदलाव और बाजार में इसकी व्यापक मांग के कारण देश के तटीय राज्यों के किसान एक किलो से भी अधिक वजन का केकड़ा तैयार कर उसे 1400 रुपये या उससे भी अधिक मूल्य पर बेचकर मालामाल हो रहे हैं. कीचड़ केकड़ा प्रजाति की विदेशी बाजार में बढ़ रही मांग और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन से संबंधित वैज्ञानिकों ने हाल के कुछ वर्षों में इस पर व्यापक अनुसंधान किया है और अपनी प्रौद्योेगिकी एवं पालन की तकनीक को किसानों तक पहुंचाया जिसके कारण तटीय राज्यों में इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है.
समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीडा) की ओर से मंगलोर में आयोजित अक्वा अक्वारिया इंडिया 2017 में कीचड केकड़ा पालन की तकनीक का प्रदर्शन करने आये राजीव गांधी जल कृषि केन्द्र (आरजीसीए) के सहायक परियोजना प्रबंधक जी के दिनाकरण ने बताया कि हल्के हरे रंग वाले सिल्ला सेरेटा अर्थात् कीचड़ केकड़ा का सही तकनीक से पालन और देखरेख करने वाले किसान आठ माह में एक किलो या इससे भी अधिक वजन का केकडा तैयार कर लेते हैं जो बाजार में आसानी से 1400 रूपये में बिक जाता है.  डॉ. दिनाकरण ने बताया कि सिल्ला सेरेटा वैज्ञानिक नाम वाले इस केकडे़ के पालन के लिए आठ माह का समय उपयुक्त है और इस दौरान हर केकड़े का वजन एक किलो तो नहीं होता है लेकिन औसत का वजन 600 से 800 ग्राम तक हो जाता है . 600 से 800 ग्राम वजन के केकड़ों का किसानों को 1100 से 1200 रुपए प्रति किलो दाम मिल जाता है. सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, मलेशिया और चीन के बाजारों में केकड़ों की भारी मांग है और भारत इन देशों को इसका निर्यात करता है.
खारे पानी में ही सेरेटा किस्म का केकड़ा
सिल्ला सेरेटा किस्म का केकडे़ का पालन खारे पानी में ही किया जा सकता है और तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, महाराष्ट्र और गोवा के किसान इसका व्यावसायिक उत्पादन कर रहे हैं. आरजीसीए की ओर से इन राज्यों के किसानों को केकड़ा पालन के लिए नन्हें केकडे़ उपलब्ध कराये जाते हैं. उन्होंने बताया कि विदेशों में जब त्योहार का अवसर होता है उस दौरान केकड़ों की मांग और बढ़ जाती है और किसान मनमानी कीमत पाने में सफल होते हैं.
डॉ. दिनाकरण ने बताया कि एक हेक्टेयर के तालाब में 5000 केकड़ों का पालन किया जाता है और आठ माह के बाद इससे किसानों को तीन से चार लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. यदि किसानों के पास पहले से अपना तालाब और मानव संसाधन है तो वे इससे काफी अधिक आय अर्जित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि केकड़ों का वजन बढ़ाने के लालच में आठ माह के बाद भी इसका पालन नुकसानदेह हो सकता है.
केकड़ों में वर्चस्व की लड़ाई
कठोर ऊपरी कवच वाले केकड़ों में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती है जिसका शिकार कमजोर कवच वाले केकड़े होते हैं. इस वजह से लगभग 50 प्रतिशत की मौत हो जाती है. केकड़ों का प्रजनन हेचरी में होता है और उसके अतिसूक्ष्म बच्चों का पालन नर्सरी में किया जाता है. करीब 30 से 40 दिनों तक नर्सरी में पालन के बाद इसे किसानों को उपलब्ध कराया जाता है. किसानों को केकडे़ के बच्चे उनके आकार के अनुसार 15 से 23 रुपये प्रति की दर से मिलते हैं. केकड़ों को सुबह और शाम उनके आकार के अनुसार खाना दिया जाता है. सस्ती और स्वस्थ छोटी मछली को उसका अच्छा आहार माना जाता है.






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