सरकारी रिपोर्ट में खुली पीएम मोदी के अभियान की पोलययए; स्वच्छ भारत अभियान के शौचालय में पानी नहीं
2014 से शुरू हुए अभियान में बने शौचालयों 60 प्रतिशत में पानी की व्यवस्था नहीं
ग्रामीण इलाकों में 55.4% लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर
शहरी इलाके में 7.5 % लोग करते हैं खुले में शौच
बिहार कथा. नई दिल्ली. ए. स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को हुई थी मगर दो साल से भी ज्यादा का समय बीत जाने के बाद स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. इस बात की पुष्टि खुद एक सरकारी सर्वे ने ही कर दी है. एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक, देशभर में स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए गए लगभग 10 में से 6 टॉयलेट्स में पानी की पर्याप्त सप्लाई ही नहीं है. यह सर्वे केंद्र की मोदी सरकार के 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के मिशन की हकीकत को बयां करता है. सर्वे के मुताबिक 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद लगभग 3.5 करोड़ शौचालय बनाए गए. केंद्र सरकार ने लोगों को शौचालय बनवाने के लिए सब्सिडी दी. मगर सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 55.4% लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर होते हैं क्योंकि शौचालयों में पानी की सप्लाई नहीं है. एनएसएसओ ने 1 लाख घरों के सैंप्ल्स लेकर रिपोर्ट जारी की है. वहीं रिपोर्ट के मुताबिक शहरों की 7.5% आबादी आज भी खुले में शौच करने को मजबूर है. सर्वे के मुताबिक स्वच्छता नहीं होने की वजह से ग्रामीण इलाकों में लगभग 833 मिलियन और शहरों में 377 मिलियन लोग बीमार पड़ने के खतरों से जूझते हैं. बता दें इससे पहले भी कई घरों के शौचालयों में पानी की सप्लाई और ड्रेनेज की सुविधा नहीं होने की वजह से, कई लोगों के अपने शौचालयों को स्टोर रूम में बदल देने की खबरें सामने आई थीं.
सार्वजनिक शौचालयों की साफ-सफाई की भगवान भरोसे
सर्वे में यह जानकारी भी सामने आई है कि पंजाब, असम और ओड़िशा राज्यों में सार्वजनिक शौचालयों की साफ-सफाई या देखरेख के लिए भी कोई संस्था नहीं बनाई गई है. सर्वे के मुताबिक 40 फीसद गांव के शौचालय किसी ड्रेनेज सिस्टम से जुड़े हुए थे ही नहीं. कई गांव में तो शौचालय का वेस्ट सीधे तालाबों या फिर नदियों के पानी मिल जाता है.
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