प्रभुनाथ सिंह की सजा सुनने इतने लोग पहुंचे थे कि हजारीबाग का हर होटल हो गया था फुल
विधायक हत्याकांड में 22 साल बाद फैसला: पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह समेत दो को आजीवन कारावास
हजारीबाग. ए. 22 साल पुराने मशरख विधायक अशोक सिंह हत्याकांड में मंगलवार हज़ारीबाग कोर्ट ने बिहार के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह और उनके भाइयों दीनानाथ सिंह और रितेश सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ में 40- 40 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। एडीजे-9 सुरेन्द्र शर्मा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सेशन ट्रायल 418/97 में यह सजा सुनाई। बहुचर्चित केस और हाइप्रोफाइल मामले को देखते हुए सुरक्षा कारणों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का सहारा लिया गया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई की कार्रवाई 11.15 बजे शुरू हुई और 12 बजे सजा सुनाई गई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद पूर्व सांसद के अधिवक्ता विजय कुमार सिंह पत्रकारों को सजा की जानकारी दी।
बिहार से बड़ी संख्या में नेता, समर्थक और परिवार के लोग पहुंचे थे। शहर के सारे होटल एक दिन पहले रात में ही पूरी तरह से बुक हो चुके थे। सुबह कोर्ट आने पर सबको जानकारी मिली की कि सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग से होगी तो सबके चेहरे पर मायूसी छा गयी। बिहार से पहुंचे कई लोग कोर्ट पहुंचे थे और वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम के बाहर जुटे रहे। इस हाई प्रोफाइल मामले को लेकर कोर्ट में भी सुबह से भारी सुरक्षा व्यवस्था थी। वाहनों के प्रवेश पर रोक थी और तलाशी के बाद लोगों को कोर्ट परिसर के भीतर जाने का दिया जा रहा था।
क्या था मामला
मशरख विधायक अशोक सिंह की हत्या तीन जुलाई 1995 को पटना के गर्दनीबाग थाना क्षेत्र में कर दी गयी थी। मृतक की पत्नी चांदनी देवी की शिकायत पर मामले में गर्दनीबाग थाना में प्राथमिकी (339/95) दर्ज कराई गयी थी। इसमें प्रभुनाथ सिंह, उनके भाई दीनानाथ सिंह, रितेश सिंह समेत कई आरोपी बने थे। झारखंड बनने के बाद हज़ारीबाग जेल में रहने के दौरान प्रभुनाथ ने अपना केस अलग कराते हुए हाइकोर्ट के आदेश से अपने कई मामलों को झारखंड के हजारीबाग कोर्ट में स्थानान्तरित करा लिया था। वैसे मृत विधायक की पत्नी ने भी न्याय के लिए तब पटना से अन्यत्र केस स्थानान्तरित करने की गुहार लगाई थी। बाद में हज़ारीबाग जेल में बंद रहने के दौरान उनके पक्ष के लोगों के आवेदन पर प्रभुनाथ के चार केस हज़ारीबाग न्यायालय स्थानान्तरित हो गए थे। उसी में अशोक सिंह हत्याकांड भी शामिल था। लंबी कानूनी प्रक्रिया, 22 से अधिक गवाहों के गुजरते-गुजरते 22 साल बीत गए। गवाहों के बयान और साक्ष्यों को देखते हुए कोर्ट ने हत्या और एक्सप्लोसिव एक्ट में उन्हें यह सजा सुनाई।
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