Wednesday, April 26th, 2017
कैसे भूल सकते हैं चंपारण सत्याग्रह
के सी त्यागी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अतुल्य विरासत को अजर-अमर बनाने की दिशा में जो प्रयास हो रहे हैं, वे न सिर्फ सराहनीय हैं, बल्कि प्रेरणादायक भी हैं। पिछले दिनों बिहार सरकार ने गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ मनाने का फैसला एक सर्वदलीय बैठक में किया। महात्मा के नाम पर राजनीतिक मतभेद न होना, इस बड़े फैसले का सुखद पहलू रहा। 10 अप्रैल, 1917 को पहली बार महात्मा गांधी बिहार आए थे। यही वह दिन था, जब 48 वर्षीय मोहनदास करमचंद गांधी नील के खेतिहर राजकुमार शुक्लRead More
गायों की तस्करी के लिए आंधी रात में खोदी जा रही थी सुरंग
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर 80 मीटर लंबी सुरंग किशनगंज. ए. बिहार में किशनगंज जिला मुख्यालय से लगे चोपड़ा- फतेहपुर बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) इलाके में भारत- बंग्लादेश सीमा पर एक चाय बगान के नीचे से करीब 80 मीटर लंबी सुरंग मिला है. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के उप महानिरीक्षक देवी शरण सिंह ने आज यहां बताया कि भारत- बंग्लादेश सीमा पर फैंसिंग तार लगने के बाद मवेशी तस्करों ने तस्करी का नया रास्ता तैयार किया है. मामले को लेकर बीएसएफ काफी सख्त है और सभी आला अधिकारी सीमा पर कैंपRead More
गांधी फिल्म महोत्सव: बापू के कई अनछुए पहलुओं को जान रहे दर्शक
पटना. ,ए. बिहार की राजधानी पटना में चल रहे गांधी पैनोरमा फिल्म महोत्सव के जरिए सिने प्रेमी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कई अनजाने और अनछुए पहलुओं से रूबरू हो रहे हैं। चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के मौके पर पटना के अधिवेशन भवन में आयोजित महोत्सव के दूसरे दिन ‘रोड टू संगम’ और ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ जैसी फिल्में प्रदर्शित की गई। फिल्म ‘रोड टू संगम’ की कहानी एक ऐसे मुस्लिम मिस्त्री की है, जिसे उस कार की मरम्मत करनी है जिसमें कभी महात्मा गांधी की अस्थियांRead More