सोनिया गांधी ने नहीं मानी नीतीश की सलाह तो कांग्रेस का बिखरना तय

आखिर ऐसी नौबत क्यों आ रही है ? इस सवाल का एक ही जवाब मिलता है कि सोनिया जी अस्वस्थ हैं और राहुल गांधी अंशकालीन नेता हैं।

 सुरेंद्र किशोर
कांग्रेस को बिखरने से रोकने का संभवत: यह आखिरी मौका है। बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सही समय पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिल कर उनसे कहा है कि वह राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी एकता की पहल करें। कांग्रेस से एक-एक कर प्रमुख नेताओं के पलायन के बीच यदि सोनिया गांधी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर साझा उम्मीदवार तय करने के लिए प्रतिपक्षी एकता बनवा सकीं तो वह कांग्रेस की भी पस्तहिम्मती दूर कर सकती है। उससे न सिर्फ कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा बल्कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर भी कांग्रेस और प्रतिपक्ष के लिए एक मजबूत भूमिका तैयार हो पाएगी। अभी तो प्रतिपक्ष में सर्वत्र निराशा का ही माहौल है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की निष्क्रियता ने कांग्रेस की समस्या को और भी बढ़ा दिया है। इस बीच गैर राजग दलों के लिए यह शुभ संकेत है कि सपा और बसपा दलीय एकता को लेकर अपनी पुरानी जिद छोड़ रही हैं। यह बात बार-बार कही जा रही है कि यदि कांग्रेस-सपा-बसपा ने मिलकर उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ा होता तो आज वहां योगी की सरकार नहीं होती। पर इस एकता में पेंच यही है कि गैर भाजपा दलों की भ्रष्टाचार और संतुलित धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर अब क्या राय है।
भाजपा ने प्रतिपक्षी सरकारों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों और उनकी कथित ‘असंतुलित धर्मनिरपेक्षता’ यानी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का लाभ उठाया। अब कई प्रमुख कांग्रेसी भी कांग्रेस को चुनाव जितवाने की मशीन नहीं मानते। याद रहे कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद कांग्रेस में पस्तहिम्मती बढ़ी है। दिल्ली प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष अमित मलिक ने भी कांग्रेस छोड़ दी है। दिल्ली महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बरखा शुक्ल सिंह भी भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। कांग्रेस के लिए सर्वाधिक शर्मनाक स्थिति तभी पैदा हो गयी थी जब इस दल को उत्तर प्रदेश चुनाव में विधान सभा की सिर्फ 7 सीटें मिल सकीं। उससे पहले हवा का रुख पहचान कर ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं रीता बहुगुणा ने चुनाव से पहले ही कांग्रेस छोड़ दी थीं। वह इन दिनों योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं।
आखिर ऐसी नौबत क्यों आ रही है ? इस सवाल का एक ही जवाब मिलता है कि सोनिया जी अस्वस्थ हैं और राहुल गांधी अंशकालीन नेता हैं। गोवा प्रकरण के समय ही पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा था कि राहुल गांधी निर्णय नहीं कर पाते हैं। कर्नाटका के प्रमुख नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री एस.एम. कृष्णा ने परिवारवाद का आरोप लगाते हुए हाल में कांग्रेस छोड़ दी तो उधर केरल युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष सी.आर.महेश ने कहा कि राहुल गांधी यदि नेतृत्व नहीं करना चाहते तो वह हट जाएं ताकि अन्य किसी को अवसर मिल सके। कांग्रेस में पहले ऐसी बातें कहने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी। अब तो नेता ऐसे कांग्रेस छोड़ रहे हैं मानो डूबते जहाज से चूहे निकल भागते हैं।
गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के पुत्र और कांग्रेस विधायक विश्वजीत राणे ने भाजपा सरकार में शामिल होते समय कहा था कि यदि राहुल गांधी को राजनीति में रूचि नहीं है तो हम अपने राजनीतिक कैरियर का बलिदान क्यों करें ? ऐसा सोचने वाले कई अन्य नेता भी हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार राणे की तरह की चिंता में डूबे देश भर के अनेक कांग्रेसियों के लिए अब राजनीतिक जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। सोनिया गांधी को सार्थक पहल करनी होगी अन्यथा कांग्रेस को बिखरने से कोई रोक नहीं सकता। नीतीश कुमार की ताजा पेशकश कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। वैसे भी बिखरा और कमजोर प्रतिपक्ष स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता है।
कांग्रेस के एक पुराने नेता और गांधी परिवार के लॉयल ने नाम नहीं छपने की शर्त पर कहा कि अब कांग्रेस को पूरे प्रतिपक्ष के नेतृत्व का मोह छोड़कर जल्द से जल्द प्रतिपक्षी एकता के लिए ठोस पहल शुरू कर देनी चाहिए अन्यथा देर हो जाएगी। यदि सोनिया गांधी का स्वास्थ्य अधिक काम करने की इजाजत नहीं देता तो वह कुछ प्रमुख और समझदार कांग्रेसियों की एक छोटी संचालन समिति बना दें जो प्रतिपक्षी एकता की दिशा में हर दिन काम करे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे कुछ नेता पहले से ही इस काम में सक्रिय हैं।  with thanks from http://www.jansatta.com/blog






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