संजय जोशी : बात नहीं, काम बोलता है
कार्यालय संवाददाता. नई दिल्ली.
इनके दरबार में बड़े से बड़े नेता आते हैं लेकिन उन्हें अपने आवास पर बैठाते नहीं उन्हें चक्कर लगाते हैं। अपने पीछे नहीं। नेता के साथ पार्क में घूमते घूमते उनकी समस्या को सुलझाते हैं। इससे एक साथ दो काम हो जाता है। एक नेताओं का स्वास्थ्य ठीक हो जाता है तरो ताजा हो जाते हैं दूसरे शुद्ध हवा मिलने से नेताओं की टेंसन भी दूर जाती है। आधे समस्या का समाधान अपने आप मिल जाता है। बड़े से बड़े नेता इनके दरबार से कभी दुखी होकर नहीं गए। वे तरोताजा और खुश होकर ही जाते हैं। नई ऊर्जा लेकर। ये एक साथ दो काम कर जाते हैं। भले ही इनके यहां मिलने वाला का तांता लगा रहता है। लेकिन ये पार्क में घुमते रहते हैं और थकने नहीं हैं जी हां ये है संजय जोशी। जो इनसे एक बार मिलता है वह बार बार मिलना चाहता है। संजय जोशी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। खास बात यह है कि इनका व्यक्तित्व के बारे में कम ही लिखा गया है विवाद के बारे में ज्यादा लिखा जाता है। भाजपा में अब भी इनके चाहने वालों की कमी नहीं हैं। इधर कुछ दिनों से संजय जोशी फिर से तेजी से सक्रिय हैं। दिल्ली में अक्सर कार्यक्रम में दिख जाते हैं। लेकिन अब भी आप जितने देर रूकने कहेंगे संजय जोशी रुकेंगे और आपकी समस्या को अवश्य सुनेंगे। इन्होंने एक बार अगर कह दिया की आपके कार्यक्रम में आएंगें तो आएंगें। भले ही कुछ भी करना पड़े।
संजय जोशी के पास अपना एक विजन है जिसमें सबको साथ ले चलने का जज्बा भी है। आज भी कई प्रदेशों के नेता इनसे परामर्श लेने आते हैं जिन्हें वे परामर्श के साथ मार्गदर्शन भी करते हैं। संजय जोशी की खास बात यह है कि वे ज्यादा बोलते नहीं हैं इनका काम बोलता है। और लगातार कार्यकर्ताओं में उत्साह भरते हैं।
संजय जोशी इस समय फिर से चर्चा में आए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर रेनकोट के बयान का समर्थन किया। नोटबंदी का भी खुलकर समर्थन कर संजय जोशी ने यह साबित कर दिया है कि वे अब फिर से सक्रिय हो गए हैं। हालांकि संजय जोशी कहते हैं कि वे लगातार भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और रहेंगे। संजय जोशी बिना लाग लपेट के अपनी बात कह जाते हैं। संजय जोशी के पास अपना एक विजन है जिसमें सबको साथ ले चलने का जज्बा भी है। आज भी कई प्रदेशों के नेता इनसे परामर्श लेने आते हैं जिन्हें वे परामर्श के साथ मार्गदर्शन भी करते हैं। संजय जोशी की खास बात यह है कि वे ज्यादा बोलते नहीं हैं इनका काम बोलता है। और लगातार कार्यकर्ताओं में उत्साह भरते हैं। इनकी लोकप्रियता इतनी है कि अब भी जो कार्यकर्ता पार्टी में नहीं है वे भी कायल हैं। संजय जोशी अपनी पूर्ण रूप से अपनी जिंदगी को पार्टी को समर्पित कर दिया है।
संगठन क्षमता के कुशल खिलाड़ी
निश्चिततौर पर बिना लाग लपेट के बात कहने वाले संजय जोशी आज सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं. यही कारण है कि आज भी इनके साथ करोड़ों कार्यकर्ता जुड़े हैं। मूल रूप से संजय जोशी नागपुर के हैं। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद शिक्षण कार्य से भी जुड़े। पांच वर्ष तकनीकी शिक्षण को छोड़कर पूरा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सौंप दिया। संघ के प्रचारक के तौर पर संजय जोशी को संगठन की मजबूती देने भाजपा में भेजा गया। 1990 में इन्हें गुजरात भेजा गया। इनकी रणनीति और क्षमता के कारण ही गुजरात में भाजपा की सरकार बनी और जब बनी तो आज भी लहरा रही है। करीब तेरह वर्ष तक गुजरात में रहने के बाद नरेंद्र मोदी से मतभेद के कारण ये दिल्ली आ गए। दिल्ली में इन्हें भाजपा ने संगठन को मजबूत बनाने के लिए महासचिव बनाया। इस दौरान 2003 में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के अपने प्रभारी वाले प्रदेशों में कांग्रेस का शासन की जगह भाजपा की सरकार बनवाकर अपनी संगठन क्षमता का शानदार प्रदर्शन एक बार फिर दिया। इन दोनों प्रदेशों अब भी बहुत अच्छी तरीके से भाजपा की सरकार चल रही है जिसका उदाहरण दिया जाता है। वे आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। खास बात यह है कि इनके वस्त्र इतने साधारण होते हैं कि कोई भी इनकी ओर आकर्षित हो जाता है आखिर इतने कद्दावर नेता इतनी सादगी से कैसे रहता है।
चुनौतियों में दिखाया सफलता के चमत्कार
भाजपा के आम कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय ऐसे संजय जोशी का जन्म 06 अप्रैल 1962 को नागपुर में हुआ। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई विश्वेशरैया नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी से पूरी की। इसके बाद इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्रों को पढ़ाया भी। इसके बाद संजय जोशी ने इस्तीफा देकर पूर्ण समय आरएसएस को दे दिया। महाराष्ट्र में इनकी शुरुआती कर्मभूमि रही। जब भाजपा कमजोर थी ऐसे समय में पार्टी में जुड़कर चुनौती लेना इतना आसान नहीं था। लेकिन संजय जोशी ने यह कर दिखाया जिसके बाद से भाजपा मजबूत होती चली गई और आज पूरे देश में छाई हुई है। संजय जोशी जब भाजपा में पूर्ण रूप से कार्य करने लगे तो निचले स्तर के कार्यकर्ताओं को जोड़ने का कार्य सबसे पहले शुरू किया जिसका लाभ भाजपा को लगातार मिलता चला गया। गुजरात में इन्होंने ऐसी पैठ बनाई कि इनकी 1988 से 1995 तक इनकी ही तूती बोलती रही।
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