अम्बेडकर को पूजा की वस्तु बनाने से रोकना होगा

कँवल भारती.

इसी 9 अप्रेल को राहुल सांकृत्यायन का जन्म दिन था, जिन्हें महापण्डित कहा जाता है । इतिहास, दर्शन, भाषा और पुरातत्व अनुसन्धान के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। वे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे । उन्होंने कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में काम किया था । किसानों और मजदूरों के भी हित में लड़ाई लड़ी थी और लाठी खाई थी । आज अगर वे जिंदा होते तो आरएसएस और उसकी सेना के लोग पता नहीं, उनके साथ क्या सलूक करते, क्योंकि वे गोमांस खाते थे । इसी परिप्रेक्ष्य में जब हम डॉ आंबेडकर को देखते हैं, तो बीफ वे भी खाते थे। और “अछूत कौन” किताब में उन्होंने यह भी साबित किया है कि प्राचीन भारत मे आर्य और ब्राह्मण भी गोमांस खाते थे । जब वे जीवित थे तो हिन्दू धर्मगुरुओं और नेताओं ने उनके ख़िलाफ़ जमीन-आसमान एक कर दिया था । हिन्दू कोड बिल के दौरान उन्होंने उनके पुतले जलवाए थे। आज वही आरएसएस और हिन्दू नेता डॉ आंबेडकर की जयजयकार कर रहे हैं ?
सवाल यह है कि अगर ‘विद्वान सर्वत्र पूज्यते’ के आधार पर डॉ आंबेडकर की जयजयकार की जा रही है, तो उनके जीते जी उनकी जयजयकार क्यों नहीं की गई थी ? फिर विद्वान तो राहुल सांकृत्यायन भी कम नहीं थे, उनकी जयंती को धूमधाम से क्यों नहीं मनाया गया ? इस सवाल पर गौर करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह विद्वान सर्वत्र पूज्यते का मामला नहीं है । मामला असल में वोट का है । राहुल सांकृत्यायन की जयजयकार करने से भाजपा को वोट नहीं मिल सकता । इसलिए उनकी जयंती क्यों मनाई जाये? आरएसएस और भाजपा जानते हैं कि डॉ आंबेडकर वोट दिला सकते हैं। इसलिए उनकी जयजयकार जरूरी है । लेकिन खतरनाक यह है कि वोट के साथ आरएसएस का एक और खेल चल रहा है । उसको जानना समझना जरूरी है । यह सिर्फ वोट की ही राजनीति नहीं है कि आज डॉ अम्बेडकर आरएसएस और हिन्दू राजनीति के लिए रातोंरात इतने महत्वपूर्ण हो गए कि उनकी प्रतिमा का दूध से अभिषेक किया जाने लगा? उनकी जयंती पर खिचड़ी का समरसता भोज दिया जाने गया ? उनका जगराता किया जाने लगा और भजन संध्या आयोजित की जाने लगी ? इतना प्यार कैसे उमड़ पड़ा अम्बेडकर के लिए ? क्या यह अम्बेडकर को ठिकाने लगाने का काम तो नहीं है?
ब्राह्मणों ने हर उस क्रांतिकारी नायक को ठिकाने लगाया है, जिससे उन्हें खतरा था । उन्होंने बुद्ध को विष्णु का अवतार बताया और ठिकाने लगा दिया । उन्होंने कबीर को विधवा ब्राह्मणी का औरस पुत्र और ब्राह्मण रामानन्द का शिष्य बताया और ठिकाने लगा दिया। उन्होंने रैदास को पूर्व जन्म का ब्राह्मण रामानन्द का शिष्य बताया, पेट मे जनेऊ दिखाई और ठिकाने लगा दिया । अब कबीर और रैदास क्रांतिकारी नहीं रहे, राम के भक्त हो गए । दलित लेखक लाख पर्दा हटाते रहें, पर आम जनता कबीर और रैदास की क्रांति को भुला चुकी है । यही अब डॉ अम्बेडकर के साथ भी होने वाला है । उन्हें पूजा की वस्तु बनाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है । हालांकि इसकी शुरुआत राजनीति में दशकों पहले हो चुकी थी, जब धड़ाधड़ जगह-जगह उनकी मूर्तियाँ खड़ी करने का सिलसिला शुरु हुआ था । दलित नेताओं के द्वारा उन मूर्तियों पर साल में दो बार — 14 अप्रेल और 6 दिसम्बर को फूलमालाएं चढ़ाने का काम होता था और उनके नाम के जयकारे लगाए जाते थे । इसके सिवा वे कुछ नहीं करते थे । वे अम्बेडकर की विचारधारा को न खुद जानते थे और न जनता को बताते थे । ऐसी स्थिति में वही होना था, जो आज भाजपा और आरएसएस के लोग कर रहे हैं । पर इसके परिणाम दलित वर्गों के लिए बहुत घातक होंगे । आरएसएस के लेखकों और इतिहासकारों ने तो बहुत सालों से डॉ अम्बेडकर को विचारधारा के स्तर पर हिन्दू राष्ट्रवादी साबित करना शुरु कर दिया है । प्रमाण के लिए उनके ऑर्गनाइजर, पांचजन्य और दलित आंदोलन पत्रिकाओं के अगले-पिछले अंकों को देखा जा सकता है । वे जो साबित कर रहे हैं, उनमें डॉ आंबेडकर मुस्लिम विरोधी थे, इस्लाम के कटु आलोचक थे, गीता से प्रेरणा लेने वाले थे और राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे । आगे चलकर वे इन स्थापनाओं में भी सफल हो जाएंगे कि डॉ आंबेडकर में ब्राह्मण मस्तिष्क था, क्योंकि उनके गुरु ब्राह्मण थे, उनकी पत्नी ब्राह्मण थी और उन्हें बौद्ध धर्म की ओर भी ब्राह्मण भिक्षु ही ले गए थे। निश्चित रूप से आज के दलित बुद्धिजीवी इसका खंडन करेंगे । हो सकता है आगे भी एकाध पीढ़ी तक यह खण्डन चले । पर उनका खेल एक दो पीढ़ियों के लिए नहीं है । वे अगली सौ पीढ़ियों को तैयार करने के लिए काम करते हैं ।
इसलिए डॉ अम्बेडकर के प्रति आरएसएस और भाजपा के इस आकस्मिक प्रेम को अभी विफल करना होगा । इसका एक ही रास्ता है डॉ आंबेडकर की मूल विचारधारा को जनता तक ले जाना और उन्हें पूजा की वस्तु बनाने से रोकना। with thanks from the facebook time line of

Kanwal Bharti





Related News

  • क्या बिना शारीरिक दण्ड के शिक्षा संभव नहीं भारत में!
  • मधु जी को जैसा देखा जाना
  • भाजपा में क्यों नहीं है इकोसिस्टम!
  • क्राइम कन्ट्रोल का बिहार मॉडल !
  • चैत्र शुक्ल नवरात्रि के बारे में जानिए ये बातें
  • ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाही
  • कन्यादान को लेकर बहुत संवेदनशील समाज औऱ साधु !
  • स्वरा भास्कर की शादी के बहाने समझे समाज की मानसिकता
  • Comments are Closed

    Share
    Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com