बिहार में तिकड़मबाज और टॉप क्लास के पैंतरेबाजों से है शिक्षकों की लड़ाई
आचार्य रवि. मुजफ्फरपुर
अक्सर यह देखा है मैंने कि प्रारम्भिक नियोजित शिक्षक संघों के आंदोलन के समय माध्यमिक शिक्षक संघ यथोचित सहायता या सरकार पर दबाव बढ़ाने का काम नही करती थी ।यह भी सच है ज्यादा दबाव में सरकार तब तब आयी है जब मूल्यांकन का बहिष्कार किया गया हो । किन्तु इस बार पहली बार माध्यमिक शिक्षक संघ ने आगे आकर मूल्यांकन कार्य का बहिष्कार किया और सफल भी रहा है। सरकार दबाव में आकर केस करने तक की धमकी दे डाली है यह उपयुक्त समय था जब सभी प्रारम्भिक शिक्षक संघों द्वारा भी संयुक्त आंदोलन की घोषणा की जाती और सरकार को झुकना पड़ता ।कोर्ट और सड़क दोनों तरफ से सरकार को घेरने का एक सुअवसर हम खोते जा रहे हैं ।माध्यमिक शिक्षकों को इस बार हमारा साथ न मिलने से व्यक्तिगत तौर पर आहत हूँ और उनलोगों के जज्बे को मेरा नमन ।
दूसरा अवसर जब हमें एकजुट होना चाहिए था वो लाठीचार्ज था ।इतनी निर्दयता से पीट पीट कर सरकार ने साबित कर दिया कि प्रदेश के चार लाख शिक्षक चुपचाप तमाशा देखो कि कैसे बर्बरता से पीटते हैं ।निम्न सोंच ने यह देखा कि फलां संघ के सदस्य पिटाये हैं हमारा संघ बच गया पर याद रखों जब भी सड़क पर अपने आक्रोश प्रकट करोगे अलग अलग सरकार इससे भी बदतर हाल करेगी ।
इन दोनों अवसरों पर भी संयुक्त प्रयास के न होने से यह तो सिद्ध हो ही गया कि किसी भी मुद्दे पर और किसी भी परिस्थिति में सारे संघ संयुक्त रूप से सरकार के खिलाफ खड़े नही होंगे। केस का जहाँ तक मामला है तो यह सत्य है कि लगातार टलता जाएगा। हाई कोर्ट में साढ़े चार लाख शिक्षकों से जुड़े वित्तीय मामले में सरकार को पटखनी देना पैदल दिल्ली जाने के बराबर है। तिकड़मबाज और टॉप क्लास के पैंतरेबाज से हमारी लड़ाई है। अत: एकता के प्रयास के लिए ऊर्जा व्यर्थ जाया नही कर सकता और कोर्ट का हाई वोल्टेज शो सरकार की मर्जी के बगैर खत्म होगा नही । उपरोक्त विश्लेषण पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
(आचार्य रवि के फेसबुक वॉल से साभार )
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