बूढ़े फौजी और जंग लगी बंदूकों के भरोसा बिहार के बैंकों की सुरक्षा. एक महीने में तीन बार लूटे गए बैंक

गिरधारी लाल जोशी
बिहार में बैंक लूट की वारदातें थम नहीं रहीं बल्कि यूं कहें कि हाल के दिनों में ऐसी घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है। हाल ही में बैंकों की हिफाजत के लिए बिहार के पुलिस महानिदेशक पीके ठाकुर ने जरूरी दिशा-निर्देश जारी किए थे। नक्सल प्रभावित इलाकों के थानों को खास चौकस रहने की हिदायत दी थी मगर वाकया गुजर जाने के बाद पुलिस लाठी पिटती रहती है। 17 फरवरी को बांका के चानन गाँव की भारतीय स्टेट बैंक की शाखा खुलते ही लूट ली गई थी। 39 लाख रुपए डकैत दिनदहाड़े लेकर चंपत हो गए थे। ठीक 17 रोज के बाद बदमाश 6 मार्च को बाढ़ के बेलछी में पंजाब नेशनल बैंक के दो गार्ड और एक ड्राइवर की गोली मारकर हत्या कर रुपए से भरे कैश बॉक्स लेकर फरार हो गए। पंजाब नेशनल बैंक के बाढ़ करेंसी चेस्ट से बॉक्स में 60 लाख रुपए लाए गए थे। गाड़ी से उतारने के दौरान बदमाशों ने वारदात को अंजाम दिया। ठीक इसी तर्ज पर 24 घंटे के दौरान गया में बैंक लूट की दूसरी वारदात हुई। 7 मार्च यानी मंगलवार को पीएनबी की टेकारी रोड गया शाखा के करेंसी चेस्ट से 25 लाख रुपए बैंक की इटवां शाखा ले जाया गया। शाखा के बाहर एम्बेसडर कार जैसे ही रुकी वैसे ही लुटेरों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी। ड्राइवर छोटे लाल को जांघ में दो गोली लगी। लुटेरे डिक्की में रखे रुपए लेकर फरार हो गए। यह अलग बात है कि पुलिस की तत्परता से एक घंटे में ही लूटी रकम बरामद कर ली गई और पांच बदमाश दबोच लिए गए। वहां की एसएसपी गरिमा मल्लिक बताती हैं कि गिरफ़्तारी के लिए नाकेबंदी करानी पड़ी। पकड़े गए बदमाशों में पटना और आसपास के हैं जिनसे गहन पूछताछ के बाद बैंक डकैती के और भी भेद खुल सकते हैं।
बांका के चानन से लुटे स्टेट बैंक की शाखा से 39 लाख रुपए का वाकए के 17 रोज बाद भी पता नहीं चल सका है और बाढ़ में पीएनबी की बघाटीला शाखा के लिए लाया 60 लाख रुपए का भी कोई सुराग नहीं मिला है। असल में बिहार के पुलिस महानिदेशक ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर नक्सली और बदमाशों में नोटबंदी के बाद पैसों की किल्लत से छटपटी मचने का संकेत दिया था। साथ ही बैंकों की हिफाजत में खास चौकसी बरतने का निर्देश भी दिया था मगर न तो बैंकें सतर्क हुईं और न पुलिस।
दरअसल, बैंकों के बड़े अधिकारी मसलन सर्किल हेड या महाप्रबंधक का इस ओर एक तरह से बिल्कुल ध्यान नहीं है। शाखाओं में फौज के रिटायर जवान तैनात हैं। बंदूकें पुरानी हैं। कई शाखाओं में तो गार्ड ही नहीं है और जहां गार्ड है, वहां बंदूक नहीं है और है भी तो बदमाशों के अत्याधुनिक हथियारों के सामने बेकार है। करेंसी चेस्ट में पर्याप्त वाहन नहीं है। एक या दो वाहन से 15 से 20 शाखाएं देखना कतई संभव नहीं है। मजबूरन किराए के वाहन लेकर शाखा प्रबंधकों को नकदी का बंदोबस्त करना पड़ता है। वारदात के बाद सारी गलती शाखा प्रबंधक की। कई बैंकों के शाखा प्रबंधकों ने बताया कि पुलिस कानून की बात करती है और बैंक के आला अफसर सर्कुलर का हवाला देकर बैंक मैनेजर पर कारर्वाई करने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में बैंक प्रबंधक बैंक के ग्राहक का ख्याल करे या कानून का पालन करे। दोनों तरफ की परेशानी प्रबंधक को ही झेलनी पड़ती है।
इससे पहले 27 फरवरी को नालंदा के सोहसराय में कैश वैन के गार्ड और कर्मी की हत्या हुई। 17 फरवरी को बांका के चानन एसबीआई शाखा से 39 लाख रुपए लुटे गए। 27 नवंबर 2015 को बिहारशरीफ स्थित केनरा बैंक से 42.77 लाख लुटे गए। डेढ़ साल पहले भागलपुर की ग्रामीण बैंक शाखा से दिन दोपहर 50 लाख रुपए की डकैती हुई। 2 फरवरी 2014 को बेगूसराय के यूको बैंक से 50 लाख रुपए लुटे गए। बेगूसराय में ही एटीएम में रुपए डालने जा रहे कैश वैन से 83 लाख लुटे गए। यह वारदात 20 नवंबर 2014 की है। 13 मई 2014 को फतुहा की यूनियन बैंक शाखा से एक करोड़ रुपए बदमाशों ने लूट लिए। 3 अप्रैल 2013 को सारण के हंसराजपुर शाखा के पीएनबी कैश वैन से सबा करोड़ रुपए लूट लिए। 11 दिसंबर 2013 को रेवाघाट पुल पर यूनाइटेड बैंक की कैश वैन से 31 लाख लुटे। मसलन लूट की बड़ी वारदातें बताती हैं कि बैंक और पुलिस दोनों ही सुरक्षा मानक पर खरे नहीं है। ऐसे में तमाम परेशानी शाखा में तैनात प्रबंधक और कमर्चारियों को झेलना मजबूरी है। पुलिस भी इन्हें तहकीकात के बहाने तंग करती है और बैंक के आला अफसर भी खरोंचने से बाज नहीं आते। ताकि अपनी खाल बची रहे। witht hanks from Khabar.ndtv.com






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