लालू यादव के लिए अब भी 10 हजार रुपए का इतना महत्व क्यों है?
नीतीश कुमार ने यह कहते हुए जेपी आंदोलन में शामिल होने के नाते पेंशन दिए जाने के आॅफर को अस्वीकार कर दिया कि यह पेंशन उसे ही मिलना चाहिए जिसे उस पैसे की सख्त जरूरत हो।
सुरेंद्र किशोर
अन्य सैकड़ों जरूरतमंद जेपी सेनानी आवेदकों को पेंशन के लिए प्रतीक्षा करता छोड़ लालू प्रसाद ने खुद जेपी सेनानी पेंशन उठा लिया। पटना विश्व विद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद 1974 के बिहार आंदोलन के अगुआ लोगों में थे और पेंशन उठाने में भी अन्य सैंकड़ों लोगों से आगे ही रहे। हालांकि पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद से पहले करीब तीन हजार सेनानी वर्षों से पेंशन उठाते रहे हैं। दरअसल लालू ने पेंशन का 2014 में मिला आॅफर स्वीकार करने में देर कर दी । पर उन लोकतंत्र सेनानियों का क्या जिन्होंने वर्षों पहले आवेदन दे रखा है। उनमें से कई जेपी सेनानियों की आर्थिक स्थिति काफी खराब है।
राज्य सरकार ने जेपी सेनानियों को पेंशन के साथ- साथ 2009 में ही मेडिकल सुविधा देने का भी वायदा किया था। पर वह मामला गृह और स्वास्थ्य विभागों की लालफीताशाही में अब भी अटका हुआ है। लालू प्रसाद का राजद बिहार सरकार में शामिल है। साल 2014 में मिथिलेश कुमार सिंह की अध्यक्षता वाली जेपी सेनानी सम्मान योजना सलाहकार पर्षद ने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार सहित 57 सेनानियों को पेंशन आॅफर किया था।
नीतीश कुमार ने यह कहते हुए इस आॅफर को अस्वीकार कर दिया कि यह पेंशन उसे ही मिलना चाहिए जिसे उस पैसे की सख्त जरूरत हो।केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान और जुझारू नेता छोटन सिंह ने भी पेंशन लेने से इनकार कर दिया है। एक प्रमुख जेपी सेनानी ने कहा कि लालू जी को चाहिए था कि जितने आवेदन पत्र सरकार के यहां मंजूरी के लिए अब भी लंबित हैं, उन्हें पहले अपने प्रभाव से उन पर निर्णय करवाते। स्वास्थ्य सुविधा से संबंधित फाइल को स्वास्थ्य विभाग से क्लियर करवाते। भंग पड़ी पेंशन सलाहकार पर्षद का पुनर्गठन करवाते ।उसके बाद ही खुद पेंशन लेना शुरू करते।
याद रहे कि जेपी सेनानी सम्मान योजना सलाहकार पर्षद सेनानियों के लिए पेंशन की सिफारिश करती है। पर पर्षद गत जून से ही भंग है। लालू प्रसाद से पहले करीब तीन हजार लोग पेंशन उठा रहे हैं। 1972 में शुरू स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना की तर्ज पर नीतीश कुमार सरकार ने 2009 में जब जेपी सम्मान पेंशन योजना शुरू की तो कांग्रेस, सीपीआई और एनसीपी तथा कुछ अन्य दलों व लोगों ने इस योजना का सख्त विरोध किया। किसी ने कहा कि जेपी आंदोलन की तुलना स्वतंत्रता आंदोलन से नहीं की जा सकती। दूसरे ने कहा कि जेपी आंदोलन जन विरोधी था। तो यह भी कहा गया कि बिहार की राजग सरकार सरकारी पेंशन के जरिए अपना काॅडर तैयार कर रही है।
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