क्या वाकई नया नीतीश कबूल है?
मगर जब हालात बदले तो नीतीश कुमार बिलकुल बदल गए। नये नीतीश कुमार प्रधानमंत्री का स्वागत करने हवाई अड्डे पर जाते हैं, मंच पर नरेंद्र मोदी के साथ ठहाके लगाते हैं, नोटबंदी पर उनका समर्थन करते हैं और शराबबंदी पर नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हैं। भाजपा को ये नए नीतीश कुमार कबूल हैं। बस नीतीश को कहना है कि भाजपा भी उन्हें कबूल है।
सुभाष चन्द्र
जनवरी के पहले सप्ताह से बिहार की राजनीति में नया सूत्रपात देखने को मिला है। गुरु गोविंद सिंह जी के 350वें प्रकाशोत्सव पर पटन साहिब में लाखों की संख्या में लोग पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंच साझा किया। एक-दूसरे के तारीफ में कसीदे गढे। तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू यादव को मंच से नीचे स्थान दिया गया। बस फिर क्या था ? सर्दी के मौसम में राजनीतिक गरमी आना लाजिमी था। हुआ भी ऐसा ही है।
बिहार में सत्ताधारी राजद-जदयू महागठबंधन के बीच एक बार फिर से तकरार की खबरें सामने आ रही हैं। नया विवाद तब छिड़ा जब एक आयोजन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंच पर नजर आए जबकि राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव दर्शकों के बीच। प्रकाश उत्सव के मौके पर पटना में हुए इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सहित कई बड़े नेता मौजूद थे। राजद में इसे लेकर नाराजगी है। पार्टी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव को मंच से नीचे बैठे देख कर लोग चैंक गए। उन्हें ये बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। लग रहा है कि बिहार में सिर्फ जदयू का शासन है। इसी आयोजन में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी ने मंच के जरिए एक दूसरे की जमकर तारीफ की थी। बताया जा रहा है कि रघुवंश प्रसाद समेत पूरा राजद इस बात से भी खफा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच जनवरी को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ पर तारीफ की। इसकी शुरुआत नीतीश ने की थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा कि हमारे प्रधानमंत्री 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे और गुजरात में शराब बैन को लागू किए रखा। जब नीतीश भाषण देकर मंच पर लौटे तो नरेंद्र मोदी ने बड़ी गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया। जब मोदी का संबोधन हुआ तो उन्होंने नीतीश की ऐसी तारीफ की जिसकी उम्मीद उनके करीबी नेताओं को नहीं थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि नीतीश कुमार ने नशामुक्ति के जरिए समाज परिवर्तन का बहुत मुश्किल काम किया है। बिहार देश के लिए मिसाल बन गया है। नीतीश कुमार के एक करीबी नेता का कहना है कि नशामुक्ति तो बहाना था, दोनों का असली निशाना लालू यादव थे।
जब नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार एक दूसरे की शान में कसीदे पढ़ रहे थे तो लालू प्रसाद यादव वहीं मंच के नीचे बैठे थे। नीतीश की सरकार में लालू के बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन उन्हें मंच पर जगह नहीं मिली थी। लालू के एक करीबी नेता और नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री बताते हैं कि तारीफ के इस आदान-प्रदान से बिहार के महागठबंधन में घमासान मच गया है। जब से लालू यादव ने यह नजारा अपनी आंखों से देखा है वे बेचैन हैं। उन्हें लगता है कि मोदी और नीतीश के बीच कोई खिचड़ी पक रही है, जिसकी भनक अब तक उन्हें नहीं है।
असल में, सरकार में बड़े मंत्रालय लालू यादव के बेटों के पास हैं। इन्हें लालू अपनी तरह से चलाने की कोशिश करते रहते हैं. यह स्थिति नीतीश कुमार को बेहद असहज करती है। यह दूसरा मौका है जब सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार की तारीफ की है। बिहार के एक सांसद बताते हैं कि दस साल से ज्यादा लंबी लड़ाई अगर बड़ाई में बदल गई तो ऐसा सिर्फ नोटबंदी और शराबबंदी की वजह से नहीं हुआ है। इसके पीछे असली वजह मोर्चाबंदी और गोलबंदी है।
राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार बहुत संभलकर 2019 की तैयारी कर रहे हैं और राहुल गांधी बहुत खुलकर 2019 के लिए अपना मोर्चा बना रहे हैं। लालू यादव ने बिना ज्यादा सोचे-समझे राहुल के मोर्चे में जाने की सहमति दे दी, लेकिन नीतीश कुमार उन्हें अपना नेता नहीं मानते। नीतीश की सरकार लालू यादव और राहुल गांधी की पार्टी के सहारे से चल रही है। लेकिन अगर किसी भी दिन इन दोनों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया तो भाजपा के समर्थन से उनकी सरकार बच सकती हैं। मोदी सरकार में बिहार के एक कैबिनेट मंत्री कहते हैं कि बिहार भाजपा के नेता अब यह मान चुके हैं कि अकेले दम पर विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू की जोड़ी को नहीं हराया जा सकता। बिहार चुनाव से पहले 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। भाजपा को लगता है कि तब तक लालू और नीतीश साथ नहीं चल पाएंगे। लालू हर रोज कोशिश करते हैं कि वे सरकार के काम में अपना दखल बनाए रखें और नीतीश हर रोज उनकी दखलंदाजी को अपने अंदाज में नजरअंदाज या अस्वीकार कर देते हैं।
नीतीश सरकार के एक अफसर बताते हैं कि नीतीश सरकार में भारी-भरकम मंत्रालय लालू यादव के बेटों के पास हैं। इन मंत्रालयों को लालू यादव अपनी तरह से चलाने की कोशिश करते रहते हैं. यह स्थिति नीतीश कुमार को बेहद असहज करती है। नीतीश सरकार में मंत्री रह चुके भाजपा के एक नेता बताते हैं कि देर-सबेर जेडीयू और भाजपा का गठबंधन होना ही है क्योंकि अपनी वर्तमान स्थिति से न तो नीतीश खुश हैं और न भाजपा ही संतुष्ट है। लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश के इस्तीफा देने का एक कारण यह भी था कि वे उन औपचारिकताओं को निभाना नहीं चाहते थे जो एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के राज्य में आने पर निभानी पड़ती हैं। यही वजह है कि बिहार भाजपा के नेताओं ने धीरे-धीरे नीतीश कुमार पर अपने हमले कम कर दिए हैं। अब उनके निशाने पर लालू यादव और उनका परिवार ज्यादा रहता है। भाजपा के एक सांसद तो यहां तक कहते हैं कि ‘2019 में मोदी और नीतीश एक साथ एक मंच पर होंगे यह फाइनल समझिए. अगर नीतीश कुमार लालू यादव से हाथ मिला सकते हैं तो नरेंद्र मोदी के साथ आने में इतनी बड़ी बात क्या हो जाएगी!’
पटना में इस बार जो हुआ वह इस लिहाज से भी एकदम अलग है कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की अदावत की खुली शुरुआत भी पटना से ही हुई थी। साल 2010 में नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए पटना गए भाजपा नेताओं को भोज पर आमंत्रित करने के बाद उसे रद्द कर दिया था। नीतीश कुमार नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी भी उस भोज में आएं, लेकिन इसके लिए तब का भाजपा नेतृत्व तैयार नहीं हुआ। इसके साथ ही कोसी में आई बाढ़ से निपटने के लिए जो पांच करोड़ रुपये गुजरात ने बिहार को दिये थे वे भी नीतीश कुमार ने लौटा दिये थे। इसके बाद झगड़ा शुरू हुआ और जदयू-भाजपा का गठबंधन टूट गया। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी। ऐसा उन्होंने लोकसभा चुनाव में खुद को मिली भारी हार की वजह से तो किया ही था, जानकार इसकी एक और वजह भी मानते हैं। औपचारिकता निभाने के लिए एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री से मिलना जरूरी होता है, प्रधानमंत्री अगर राज्य में आएं तो उनका स्वागत मुख्यमंत्री करता है। ऐसा करना न पड़े शायद इसलिए भी नीतीश ने अपने पद से इस्तीफा दिया होगा। मगर जब हालात बदले तो नीतीश कुमार बिलकुल बदल गए। नये नीतीश कुमार प्रधानमंत्री का स्वागत करने हवाई अड्डे पर जाते हैं, मंच पर नरेंद्र मोदी के साथ ठहाके लगाते हैं, नोटबंदी पर उनका समर्थन करते हैं और शराबबंदी पर नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हैं। भाजपा को ये नए नीतीश कुमार कबूल हैं। बस नीतीश को कहना है कि भाजपा भी उन्हें कबूल है।
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